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नागालैंड हत्याकांड: कल से सात दिन का शोक, पूर्वोत्तर से AFSPA रद्द करने की मांग भी हुई तेज़

नागालैंड कैबिनेट ने 14 नागरिकों की हत्या पर हॉर्नबिल महोत्सव (Hornbill Festival) को बंद करने का फैसला किया है. साथ ही राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर AFSPA को भी निरस्त करने की मांग की है.

नागालैंड के मोन में शीर्ष आदिवासी निकाय कोन्याक यूनियन (KU) ने सुरक्षा बलों द्वारा 14 नागरिकों की हत्या के विरोध में मंगलवार को जिले में एक दिन का बंद रखा और अगले दिन से सात दिन के शोक की घोषणा की है.

कोन्याक यूनियन ने सुरक्षा बलों से सात दिनों के शोक की अवधि के दौरान कोन्याक क्षेत्र में गश्त से दूर रहने का अनुरोध किया है और चेतावनी भी दी कि अगर कानून लागू करने वाले इसका पालन नहीं करते हैं तो वे “किसी भी अप्रिय घटना के लिए जिम्मेदार होंगे”.

यूनियन ने सोमवार को भेजे गए एक पत्र में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से विशेष जांच दल (SIT) का गठन करने का अनुरोध किया. जिसमें ईस्टर्न नागालैंड पीपल्स ऑर्गनाइजेशन (Eastern Nagaland People’s Organisation, ENPO) के दो सदस्य भी शामिल हों – और घटना में शामिल सैन्यकर्मियों की पहचान करें. साथ ही उनके खिलाफ की गई कार्रवाई को 30 दिनों के भीतर सार्वजनिक करें.

कल से 7 दिन के शोक की घोषणा

कोन्याक यूनियन के अध्यक्ष होइंग कोन्याक ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा कि हमने मंगलवार को मोन जिले में एक दिन का बंद रखा है और यह पूरी तरह शांतिपूर्वक तरीके से चल रहा है. हमने बुधवार से सात दिन के शोक की भी घोषणा की है.

साथ ही यह भी मांग की गई है कि 27 असम राइफल्स को नागरिकों की रक्षा करने में विफल रहने के कारण मोन को तुरंत खाली कर देना चाहिए और ऑर्म्ड फोर्सेस (स्पेशल पावर) एक्ट को पूरे पूर्वोत्तर से हटा दिया जाना चाहिए.

राज्य सरकार की AFSPA निरस्त करने की मांग

इस बीच नागालैंड कैबिनेट ने 14 नागरिकों की हत्या पर हॉर्नबिल महोत्सव (Hornbill Festival) को बंद करने का फैसला किया है. राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर AFSPA को भी निरस्त करने की मांग की है.

असल में, आफ्सपा यानी सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून एक विवादास्पद क़ानून है जो विद्रोहियों के ख़िलाफ़ सुरक्षा बलों को तलाशी और ज़ब्ती का अधिकार देता है. ये कानून किसी कार्रवाई के दौरान गलती से या ज़रूरी हालात में किसी नागरिक को मार देने वाले सैनिकों को भी बचाता है.

आलोचक इस क़ानून को “फर्जी हत्याओं” के लिए दोषी ठहराते हैं और कहते हैं कि अक्सर इसका दुरुपयोग होता है.

आफ्सपा क्या है?

पूर्वोत्तर में बढ़ते अलगाववाद की समस्या को देखते हुए और सेना को कार्रवाई में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को आर्म्ड फ़ोर्सेज़ स्पेशल पावर एक्ट और आफ्सपा पारित किया गया था.

बाद में आतंकवाद से निपटने के लिए 1990 में इस कानून को जम्मू-कश्मीर में लागू किया गया. आफ्सपा कानून कहीं भी तब लगाया जाता है जब उस क्षेत्र को वहां की सरकार अशांत घोषित कर देती है.

इसके लिए संविधान में प्रावधान किया गया है और अशांत क्षेत्र कानून यानी डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट मौजूद है जिसके अंतर्गत किसी क्षेत्र को अशांत घोषित किया जाता है.

जिस क्षेत्र को अशांत घोषित कर दिया जाता है वहां पर ही आफ़स्पा क़ानून लगाया जाता है और इस क़ानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं.

आख़िर 4 और 5 दिसंबर को क्या हुआ था?

पिछले हफ्ते 4 और 5 दिसंबर को सुरक्षा बलों की गोलीबारी में मारे गए 14 नागरिकों का सोमवार को मोन जिला मुख्यालय में अंतिम संस्कार किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो (Neiphiu Rio), उनके कैबिनेट सहयोगी और कई आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए.

इस हत्याकांड के बारे में संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान के बारे में पूछे जाने पर होइंग कोन्याक ने कहा, “फिलहाल हम उनके बयान को मानने या खारिज करने की स्थिति में नहीं हैं. हम अपने लोगों की निर्मम हत्या से दुखी हैं. असम में इलाज करा रहे दो जीवित बचे लोगों के होश में आने के बाद मामले के बारे में जाना जा सकता है.’ यूनियन ने कहा कि यह घटना ‘सैन्य खुफिया की पूर्ण विफलता’ का परिणाम प्रतीत होती है और “इसे गलत पहचान का मामला नहीं कहा जा सकता.”

यूनियन के प्रमुख केयू ने कहा, “मारे गए लोग ग्रामीण थे जिनका किसी भी तत्व से कोई संबंध नहीं था, जो किसी भी तरह से सुरक्षा बलों या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए थोड़ी सी भी चिंता का कारण हो सकता है.”

उन्होंने कहा कि यह तर्क से परे अत्याचार का काम है. कोई स्पष्टीकरण मानवता के खिलाफ जानबूझकर हुए अपराध के इस जघन्य कृत्य को सही नहीं ठहरा सकता है.

इस बीच, नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने सोमवार को राज्य से सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 को निरस्त करने की मांग की. जहां एक उग्रवाद विरोधी अभियान में मोन जिले में सुरक्षा बलों द्वारा 14 नागरिकों की मौत हो गई और कहा कि राज्य के पास भी विशेष शक्तियां हैं.

अफस्पा लगाने और इसे कैसे रद्द किया जाए, इस पर चर्चा और विचार-विमर्श किए जाने की जरूरत है. रियो ने एक कोयला खदान के 14 दैनिक वेतन भोगियों के सार्वजनिक अंतिम संस्कार के दौरान कहा, जिन्हें सुरक्षा बलों ने शनिवार को ओटिंग गांव में काम से घर जाते समय गोली मार दी थी.

संविधान का अनुच्छेद 371 (ए) नागालैंड को विशेष प्रावधान प्रदान करता है. इसमें कहा गया है कि संसद का कोई भी अधिनियम नागालैंड पर तब तक लागू नहीं होगा जब तक कि उसकी विधान सभा एक संकल्प द्वारा ऐसा निर्णय नहीं लेती.

अंतिम संस्कार के बाद, मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया, “नागालैंड और नागा लोगों ने हमेशा #AFSPA का विरोध किया है. इसे निरस्त किया जाना चाहिए.”

मारे गए निर्दोष खनिकों को अंतिम श्रद्धांजलि देते हुए, रियो ने कहा, “उनके बलिदानों को भुलाया नहीं जाएगा. हम इसमें एक साथ हैं. हम लोगों के साथ एकजुटता में खड़े हैं.”

उन्होंने जोर देकर कहा कि चूंकि सुरक्षा बलों ने नागरिकों की पहचान के लिए उन्हें रोके बिना सीधे उन पर गोलियां चलाईं, इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू की जाएगी.

उन्होंने कहा, “उन्होंने (खनिकों ने) भारत के लिए नहीं, बल्कि नागाओं के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है.” उन्होंने कहा और घटना में मारे गए हर के परिजनों को पांच लाख रुपये और घायलों को एक लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की.

रियो ने यह भी कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रत्येक पीड़ित के परिवारों को 11 लाख रुपये की अनुग्रह राशि और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है.

हत्या पर पूर्वी नागालैंड के पीड़ितों और लोगों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए, रियो ने कहा कि उन्होंने अमित शाह को सूचित किया है कि राज्य में स्थिति “ठीक” है. लेकिन यह सेना थी जिसने निर्दोष नागरिकों की हत्या करके “गलती” की है.”

उन्होंने कहा, “अफस्पा सेना को बिना किसी वारंट के नागरिकों को गिरफ्तार करने, घरों पर छापेमारी करने और लोगों को मारने का अधिकार देता है. लेकिन सुरक्षा बलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है.”

मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्वी नागालैंड के लोगों के साथ एकजुटता से राज्य भर में मोमबत्ती की रोशनी में जुलूस निकाले गए और सरकार ने किसामा में चल रहे वार्षिक हॉर्नबिल महोत्सव को स्थगित कर दिया.

अंतिम संस्कार सेवा के बाद 14 नागरिकों के शवों को उनके संबंधित गांवों में दफनाने के लिए ले जाया गया.

हत्याकांड पर आंतरिक जांच शुरू

नागालैंड के मोन जिले में 4 दिसंबर को सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत हो गई. यही नहीं, इस घटना के बाद हुई हिंसा में एक सैन्यकर्मी की भी जान चली गई और ढेरों जवान घायल हो गए. सैन्य अधिकारियों ने बताया कि NSCN (K-YA) कैडरों की आवाजाही के बारे में विशेष खुफिया जानकारी के आधार पर असम से पैरा स्पेशल फोर्स (Para Special Forces) को ऑपरेशन के लिए लाया गया था.

अफसर के मुताबिक, सेना ने गलत लोगों को निशाना बनाया. उन्हें शक था कि गाड़ी में आतंकवादियों का समूह बैठा हुआ है. इसलिए उन्होंने नागरिकों पर गोलियां चला दीं. इसके बाद ग्रामीणों ने इकट्ठा होकर राइफलें और रेडियो सेट छीन लिए. गुस्से में सैनिकों पर चाकू से हमला भी कर दिया. इन झड़पों में आठ और नागरिकों की मौत हो गई.

इस बीच भारतीय सेना ने एक मेजर जनरल-रैंक के अधिकारी के तहत नागालैंड में नागरिकों की हुई हत्याओं की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (Court of Inquiry) की स्थापना कर दी. मेजर जनरल रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में आंतरिक जांच भी शुरू हो गई है.

(Image Credit: AP)

1 COMMENT

  1. I protest and condemn the killing of 14 Naga Adiwasis in Nagaland on 4th Dec. 2021. This is definitely a heinous crimical act with the racial discrimination against the tribal people of India. Shame on the Govt. Stop killing Adiwasis of India by the Army and police forces. Repeal Armed Forces Special Powers Act (AFSPA), 1958 from North East states.
    Hul Johar!

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