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कारबोंग आदिवासी समुदाय के अस्तित्व को बचाने के लिए उठें क़दम: त्रिपुरा हाई कोर्ट

कोर्ट ने दोनों सरकारों को यह भी कहा है कि बिना उसके आदेश का इंतज़ार किए स्टडी के दौरान सामने आने वाली मुश्किलों को सुलझाने के लिए ज़रूरी क़दम वो खुद ही उठाएं. मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर को होनी है.

त्रिपुरा हाई कोर्ट ने सोमवार को त्रिपुरी जनजातियों के एक समुदाय कारबोंग, जिसके अस्तित्व को ख़तरा है, पर एक जनहित याचिका (पीआईएल) को स्वीकार कर ली है. कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को कारबोंग समुदाय पर एक अध्ययन करने और 9 नवंबर तक एक हलफ़नामे में इस अध्ययन का परिणाम पेश करने को कहा है.

चीफ़ जस्टिस इंद्रजीत महंती और जस्टिस सुभाशीष तलपात्रा की बेंच ने कारबोंग समुदाय पर एक स्थानीय अखबार में छपे एक लेख के आधार पर जनहित याचिका को स्वीकार किया.

बेंच ने एडवोकेट हरेकृष्ण भौमिक को अदालत का न्याय मित्र (amicus curiae) नियुक्त किया है, और सरकारों को अधिकारियों की एक टीम बनाने का निर्देश दिया है. इन अधिकारियों को उन इलाक़ों का दौरा करने को कहा गया है जहां कारबोंग समुदाय के लोग रहते हैं. अधिकारी समुदाय की ज़रूरतों का आकलन कर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को देंगे.

कोर्ट ने दोनों सरकारों को यह भी कहा है कि बिना उसके आदेश का इंतज़ार किए स्टडी के दौरान सामने आने वाली मुश्किलों को सुलझाने के लिए ज़रूरी क़दम वो खुद ही उठाएं. मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर को होनी है.

इस साल मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) पर, त्रिपुरा ने कारबोंग आदिवासी समूह के एक नेता रबी मोहन कारबोंग को सम्मानित किया था. साथ ही यह घोषणा भी की गई थी कि समुदायों का सम्मान करने और उनको मान्यता देने के लिए जगहों के नाम आदिवासी भाषाओं में बदले जाएंगे.

2011 की जनगणना के अनुसार त्रिपुरा की आबादी 36,73,917 हैं, जिसमें से लगभग 70 प्रतिशत लोग गैर-आदिवासी हैं और बाकि के 30 प्रतिशत 19 आदिवासी समुदायों से हैं. UIDAI के आंकड़ों के अनुसार 2021 में राज्य की आबादी 41 लाख से ज़्यादा होने का अनुमान है.

त्रिपुरा में रहने वाले अलग-अलग जनजातीय समुदायों में, चाईमल या चैमार, बोंग्चर, बोंग और कारबोंग जैसे कुछ समुदायों की आबादी बेहद कम है. यूनेस्को द्वारा भाषाओं के वर्गीकरण के अनुसार, 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली किसी भी भाषा के अस्तित्व को ख़तरा माना जाता है.

यूनेस्को वर्ल्ड एटलस ऑफ लैंग्वेजेस का अनुमान है कि भारत में 600 से ज़्यादा ऐसी मौखिक भाषाएं हैं जिनके अस्तित्व को ख़तरा है. 2010 में अंडमान की बो भाषा हमेशा के लिए ग़ायब हो गई, जब उसे बोलने वाली आखिरी महिला की मृत्यु हो गई. इसी तरह 2015 में सिक्किम की माझी भाषा भी गायब हो गई.

जहां ज़्यादातर त्रिपुरी आदिवासी समुदाय अपनी भाषा बोलते हैं, एक बड़ा बहुमत कोकबोरोक भाषा का इस्तेमाल करता है. सरकारी अनुमानों के अनुसार, त्रिपुरा में रियांग, जमातिया, नोआतिया, कलाई, रूपिनी, मुरासिंग और उचोई समुदायों के 8,14,375 लोग कोकबोरोक भाषा बोलते हैं, जो त्रिपुरी आदिवासी समुदायों में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा बन गई है.

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