पूर्वोत्तर भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है. इस क्षेत्र के प्रत्येक राज्य की अपनी अलग संस्कृति और परंपराएं हैं, जिनमें संगीत, नृत्य, खानपान और त्योहार शामिल हैं.
पूर्वोत्तर भारत के लोक नृत्यों की एक अलग ही बात है. संगीत, कपड़े, प्रॉप्स और डांस स्टेप्स सभी हमें एक कहानी बताने में मदद करते हैं और इनमें हमें एक सदियों पुरानी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है जो आधुनिकता और उपनिवेशवाद से अछूती है.
हम सभी ने बिहू, सत्त्रिया और मणिपुरी नृत्य के बारे में तो सुना ही है. बल्कि सत्त्रिया और मणिपुरी तो भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से दो हैं. लेकिन आज हम बात करेंगे पूर्वोत्तर के उन लोक नृत्यों की जिसकी कम जानकारी उपलब्ध है…
अरुणाचल प्रदेश का शेर और मोर नृत्य
अलग-अलग लोक नृत्य अक्सर क्षेत्र की एक विशेष जनजाति से जुड़े होते हैं. इसी तरह अरुणाचल प्रदेश की मोनपा जनजाति अपने नाटकीय रूप से पेश करने वाले शेर और मोर नृत्य के लिए जानी जाती है.
इस नृत्य में कलाकार शेर और मोर के मुखौटे और पोशाक पहनते हैं और जानवरों की चाल और मुद्राओं की नकल करते हैं. कहानी सुनाना इस कला के केंद्र में है. इसलिए जानवरों (स्नो लायन और मोर) से संबंधित कई कहानियों को “नायक” के साथ चित्रित किया जाता है. जो लंबी, सफेद दाढ़ी वाला एक बुजुर्ग व्यक्ति है.
यह लोक नृत्य नर्तकों की नाटकीय चाल और वेशभूषा पर किए गए अद्भुत काम के कारण व्यापक रूप से पसंद किया जाता है. इसमें आकर्षण का केंद्र स्नो लायन पोशाक होता है क्योंकि एक पोशाक में दो नर्तक होते हैं.
ये पोशाकें नए आविष्कार हैं क्योंकि इनमें मैकेनिकल पलकें हैं जिससे शेरों को आंखें झपकाने, खोलने और बंद करने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है. उनके पास मनमोहक, रोयेंदार कान भी होते हैं जो उठ और गिर सकते हैं और तो और जबड़े भी खुल और बंद हो सकते हैं.
इस जोश और ऊर्जा से भरपूर जंगली नृत्य के साथ बैकअप संगीतकार भी होते हैं जो घंटियां और झांझ बजाते हैं.
इस नृत्य को करने वाली मोनपा जनजाति को चीन में 56 अल्पसंख्यक जातीय समूहों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है (यिज़ू, तू, उइघुर और अन्य के साथ). मोनपा अरुणाचल के पश्चिम कामेंग और तवांग जिले में फैले हुए हैं.
मिज़ोरम का चेराव नृत्य
जब हम मिज़ोरम की संस्कृति के बारे में बात करते हैं तो सबसे पहली चीज जो हमारे दिमाग में आती है वह है चेराव. चेराव नृत्य न केवल पूर्वोत्तर बल्कि पूरे भारत में बेहद लोकप्रिय है. यह मिज़ोरम का सबसे पुराना लोक नृत्य है और पहली शताब्दी ई.पू. का है.
इस सुंदर नृत्य शैली में जमीन पर दो क्षैतिज रूप से बांस की लाठियां बिछाई जाती हैं. फिर छह या आठ पुरुषों का एक समूह बांस की लाठियों को दो लाठियों के ऊपर लंबवत पकड़ता है, जिससे एक ग्रिड बनता है. फिर पुरुष लयबद्ध तरीके से जमीन पर बैठकर लाठियों को बजाते हैं और महिलाएं उन पर उछल-कूद कर नृत्य करती हैं.
नृत्य के स्टेप प्रकृति की गतिविधियों से प्रभावित होते हैं. कुछ पेड़ों के लहराने को व्यक्त करते हैं, कुछ पक्षियों की उड़ान को और कुछ धान की कटाई को व्यक्त करते हैं.
लेकिन कॉस्ट्यूम के बिना परफॉर्मेंस अधूरी है. क्योंकि चेराव नृत्य की खूबसूरती में जो बात जुड़ती है वह है महिला कलाकारों द्वारा पहने जाने वाले रंग-बिरंगे कपड़े. महिलाओं के कॉस्ट्यूम में कावरचेई (लाल, हरे और काले पैटर्न के साथ लंबी आस्तीन वाला सफेद ब्लाउज), पुआनचेई (समान रंगों का सारंग), वाकिरिया (सर पर पहनी गई टोपी जो बांस और पंखों से सजाया गया होता है) और थिहना (एक हार) शामिल हैं.
वहीं पुरुष एक मिज़ो शॉल पहनते हैं जो उनकी छाती के सामने आड़ा-तिरछा होता है. और महिलाओं की तरह ये भी एक सफेद शर्ट पहनते हैं या उनका ऊपरी शरीर नंगा होता है, पतलून या कमर के चारों ओर एक कपड़ा लपेटा जाता है और आख़िर में एक खुम्बू (बांस से बनी टोपी) या बंदना जो सिर के चारों ओर बंधा हुआ होता है.
चेराव की शुरुआत उन महिलाओं की आत्मा को शांति दिलाने के लिए एक पारंपरिक अनुष्ठान के रूप में हुई जो बच्चे को जन्म देते समय मर गईं. लेकिन आज मिज़ोरम के सबसे पुराने नृत्य रूपों में से एक माना जाने वाला चेराव राज्य के लगभग हर त्योहार का एक अभिन्न अंग बन गया है.
इसे बुज़ा ऐह यानि बम्पर फसल के त्योहार और चापचर कुट यानि वसंत ऋतु का त्योहार पर प्रदर्शित किया जाता है. यह शादियों, स्मरणोत्सवों और सांस्कृतिक प्रदर्शनियों में भी किया जाता है.
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह एक सामुदायिक नृत्य है. केवल इस कला में अच्छी तरह से प्रशिक्षित विशेषज्ञ ही सार्वजनिक रूप से और पारंपरिक रूप से चांदनी रातों में इसका प्रदर्शन कर पाते हैं.
लंदन में 2019 अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस कार्यक्रम में नर्तकियों द्वारा चेराव का प्रदर्शन करने के साथ इसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता भी मिली है. इसके अलावा इसने 10,763 प्रतिभागियों के साथ सबसे बड़े नृत्य प्रदर्शन के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (2010) में अपना नाम दर्ज कराया है.
मेघालय का लाहो नृत्य
लाहो मेघालय का एक प्रमुख लोक नृत्य है जो धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों में किया जाता है. इस आनंदमय नृत्य को पन्नार समुदाय द्वारा किया जाता है और इसमें आमतौर पर पुरुषों और महिलाओं दोनों की भागीदारी देखी जाती है. पन्नार लोग संगीत, नृत्य और रंगों के प्रति अपने प्रेम के लिए जाने जाते हैं, जो इस नृत्य में पूरी तरह से दिखता है.
इस नृत्य में महिलाएं सोने-चांदी के आभूषण और रंगीन, पारंपरिक पोशाक पहनती हैं, जबकि पुरुष कुछ एक आभूषण पहनते हैं. इस नृत्य में तालमेल और सामंजस्य सबसे जरूरी है.
अक्सर हम लोक नृत्यों में देखते हैं कि नृतक ड्रम और पाइप और अन्य वाद्य यंत्रों की थाप पर नृत्य करते हैं. लेकिन असाधारण रूप से लाहो को एक आदमी की मधुर मजबूत आवाज पर नृत्य किया जाता है जो दोहे पढ़ता है. ये मनोरंजक, लयबद्ध पाठ दर्शकों को हँसी और उल्लास से लोटपोट कर देते हैं.
जोवाई और वांगला प्रसिद्ध त्योहार हैं जहां नर्तक लाहो का प्रदर्शन करते हैं. लेकिन लाहो सबसे लोकप्रिय रूप से जोवाई में बेहदीएनखलम उत्सव में प्रस्तुत किया जाता है, जहां स्थानीय लोग मेघालयवासियों की भलाई और समृद्धि को पहचानते हैं और जश्न मनाते हैं. वार्षिक कार्निवल का उद्देश्य आशीर्वाद लेना और बुरी आत्माओं से छुटकारा पाना है. बेहदीनखलम का अर्थ है “हैजा के दानव को दूर भगाना”; यह बुआई के बाद जुलाई में मनाया जाता है.
नागालैंड का मेलो फिटा नृत्य
मेलो फ़िटा अंगामी नागाओं द्वारा किया जाने वाला एक पारंपरिक लोक नृत्य है. यह नृत्य फरवरी में सेक्रेनी उत्सव में होता है. यह अंगामी कैलेंडर माह “केज़िया” के 25वें दिन से दस दिनों तक मनाया जाता है. यह बच्चों के वयस्क होने की शुरुआत का भी प्रतीक है.
यह त्योहार शुद्धिकरण है जो लोगों के सभी पिछले पापों को धोने के लिए है. ये विचार, शरीर और आत्मा को शुद्ध करके “नवीनीकृत” और “पवित्र” बनाने का त्योहार है. और समुदाय के भीतर संबंधों को मजबूत करना और खुशी फैलाने के लिए यह त्योहार मनाया जाता है.
ऐसा कहा जाता है कि इस नृत्य की शुरुआत तब हुई जब अंगामी लोग युद्ध में गए और दुश्मन के सिरों का शिकार किया. जब वे विजय प्राप्त करके लौटते थे तो स्त्रियाँ भोजन और शराब के साथ द्वार पर उनका स्वागत करती थीं. इसके बाद वे गाते और नाचते हुए एक साथ घर चले जाते.
फिर वे मेलो फिटा को न सिर्फ एक शुद्धिकरण अनुष्ठान के रूप में बल्कि युद्ध जीतने और अपने प्रियजनों के साथ पुनर्मिलन के लिए एक विजय नृत्य के रूप में भी प्रस्तुत करते.
इस नृत्य में पुरुष और महिलाएं दोनों भाग लेते हैं और अपनी पारंपरिक आदिवासी पोशाक (जिसमें काले, नारंगी, सफेद और हरे रंग होते हैं) पहनते हैं. महिलाएं पोशाक के ऊपर मोतियों का हार पहनती हैं जबकि पुरुष अपने कानों पर पंखों के आभूषण पहनते हैं. पुरुषों के फर से बने बड़े हेडड्रेस एक आकर्षण केंद्र होता है जो इस लुक को पूरा करता है.
इस नृत्य में पुरुष और महिलाएं अपने पैरों पर उछलते हैं और पारंपरिक गीत गाते हुए मंडलियों में घूमते हैं.
सिक्किम का चू-फाट नृत्य
चू-फाट नृत्य लेप्चा जनजाति द्वारा पर्वत चोटियों के सम्मान में किया जाता है. ‘चू’ का अर्थ है बर्फ से ढके पहाड़, जबकि ‘फाट’ का अर्थ है पूजा. यह बौद्ध कैलेंडर के सातवें महीने के 15वें दिन किया जाता है.
पहाड़ सिक्किमी समाज के जीवन और संस्कृति के लिए जरूरी हैं क्योंकि यह उन्हें संसाधन प्रदान करते हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य हिस्सा बनाते हैं. तो यह सवाल है ही नहीं कि जनजातियां पृथ्वी की सबसे पुरानी संरचनाओं के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए पारंपरिक नृत्य क्यों करेंगी. यह एक लोक नृत्य से कहीं अधिक है. पहाड़ समाज की रीढ़ हैं.
चू फाट नृत्य लेप्चा जनजाति द्वारा भक्ति की भावना से किया जाता है. नर्तकियों की भक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण के भाव देखकर आप भावविभोर हो जाएंगे.
माउंट कंचनजंगा सिक्किम की सबसे ऊंची चोटी है जिसके साथ माउंट काबरू, माउंट सिमब्रम, माउंट पांडिम और माउंट नर्शिंग हैं. लेप्चा लोग चू फाट नृत्य के माध्यम से इन पांच पर्वतों की पूजा करते हैं. वे पहाड़ों को खनिज, नमक, औषधि, खाद्यान्न और पवित्र ग्रंथ प्रदान करने के लिए धन्यवाद देते हैं.
चू फाट नृत्य के दौरान मक्खन के लैंप और बांस के ढेरों को सहारा के रूप में उपयोग किया जाता है. ये प्रॉप्स पहाड़ों के उपहारों का प्रतीक हैं और पहाड़ों से सिक्किम की भूमि पर अपना आशीर्वाद बनाए रखने का अनुरोध करते हैं. वे नर्तकों की सुंदरता भी बढ़ाते हैं.
(Image Credit: EastMozo)
[…] Nritya, or Tribal Dance, is an integral part of India’s cultural heritage, embodying the diversity, richness, and […]