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आदिवासी भोजन में है समुदाय का दर्शन, सागों के नाम ही विस्मित कर देंगे

आदिवासियों के खानपान में मुख्य रुप से जंगल,जमीन से मिलने वाले खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं. भारत के आदिवासी समुदाय खाद्य पौधों सहित अन्य पौधों की 9,000 से अधिक प्रजातियों के इस्तेमाल से परिचित हैं. जबकि खासतौर पर उपचार के उद्देश्य से वे पौधों की लगभग 7,500 प्रजातियों के इस्तेमाल के बारे में जानते हैं.

भोजन हमारी पहचान और संस्कृति का एक अहम हिस्सा है. हम जो खाते हैं उससे हम जाने जाते हैं. यह उस इलाके के बारे में भी इशारा करता है जहां से हम संबंधित हैं. क्योंकि आमतौर से हम अपने इलाके में उपलब्ध संसाधन हमारे खाने में इस्तेमाल करते हैं.

वहीं आदिवासी भोजन प्रणाली स्थानीय संस्कृति और परंपराओं से जुड़ी है. दरअसल आदिवासियों का जीवन जीने का तरीका प्रकृति और इसके संसाधनों से बहुत करीब से जुड़ा हुआ है.

आदिवासी अपनी समृद्ध सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं के अलावा अपने खानपान के लिहाज से भी समृद्ध है. भारत के आदिवासी (Bharat ke Adivasi) समुदाय स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों और तकनीकों पर निर्भर करते हैं. ऐसी आदिवासी खाद्य प्रणालियाँ इन समुदायों की संप्रभुता और आत्मनिर्भरता बनाए रखने में सहायक रही हैं.

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केकड़ा फ्राई

आदिवासियों का खाना क्या होता है?

आदिवासी समाज अपने आहार को समृद्ध करने के लिए साथ ही कैल्शियम, लौह, खनिज और विटामिन जैसी ज़रूरतों को ध्यान में रखता है. इसी आधार पर यह समाज जंगलों से कई तरह के फल और दूसरी खाने की वस्तु अलग अलग मौसम में जमा करता है.

अध्ययनों से पता चलता है कि आदिवासी खानपान में ऐसे साग, कंदमूल, खाद्यान्न और औषधिय गुण युक्त भोजन शामिल हैं जो प्राकृतिक रूप से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सक्षम हैं.

आदिवासियों के खानपान में मुख्य रुप से जंगल,जमीन से मिलने वाले खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं. आदिवासी समुदाय खाद्य पौधों सहित अन्य पौधों की 9,000 से अधिक प्रजातियों के इस्तेमाल से परिचित हैं. जबकि खासतौर पर उपचार के उद्देश्य से वे पौधों की लगभग 7,500 प्रजातियों के इस्तेमाल के बारे में जानते हैं.

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मड़ुआ की रोटी

झारखंड एक प्राकृतिक निवास स्थान है और कई आदिवासी समुदायों का घर है, जो कुल आबादी का 25 फीसदी से थोड़ा अधिक है. ऐसे में आज हम बात करेंगे झारखंड के आदिवासी समूह के खानपान के बारे में जो कई मायनों में बहुत अलग है.

आदिवासियों के खान-पान में मुख्य रुप से जंगल,जमीन से मिलने वाले खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं. आदिवासी उबले हुए भोजन जैसे चावल, दालें, जड़ी-बूटियाँ या ‘साग’ और मांस खाते हैं और कुछ अवसरों पर पशु या पक्षी के मांस को आग में भूनते हैं.

आदिवासी खाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री स्वाद के साथ-साथ पोषण का भी बड़ा स्रोत है.

झारखंड के आदिवासी भोजन को कुछ अलग विशेषताओं के संदर्भ में परिभाषित किया जा सकता है. दरअसल भोजन शारीरिक आवश्यकताओं और भौगोलिक परिस्थितियों से प्रभावित होता है साथ ही आदत के साथ निकटता से जुड़ी होती है. इसका मतलब है कि भोजन की आदतें स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों द्वारा निर्देशित होती हैं.

झारखंड के आदिवासी भोजन की एक विशेषता इसकी सादगी और महान विविधता है जिसमें कई हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल हैं. जिनमें से ज्यादातर बिना खेती के सिर्फ जंगलों से एकत्र की जाती हैं. झारखंड में एक विशेष आदिवासी थाली में उबले हुए चावल, माढ़ झोर या उड़द की दाल, एक चटनी और कोई भी मांसाहारी डिश होती हैं जो बड़े से लेकर छोटे मांस, स्थानीय मछलियों, केकड़ों आदि तक होती हैं.

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बुडु मछली

वहीं त्योहार के मौके पर थाली में तरह-तरह के पीठे डाले जाते हैं. पीठा चावल के आटे से बने पकौड़े होते हैं और इन्हें दाल, सब्जी या मीट की स्टफिंग के साथ परोसा जाता है.

जैसा कि हमने बताया झारखंड के आदिवासियों का भोजन सरल है, वैसे ही खाना पकाने के तरीके भी एकदम सरल है. खाना पकाने की प्रक्रिया में तेज आंच की जगह धीमी आंच पर खाना बनाना और बहुत कम तेल के साथ तलना शामिल है. वहीं खाना बनाने में उबालना और भाप देना सामान्य तरीके हैं और बहुत सारे व्यंजन सिर्फ हाथों से मसलकर या पत्थर से पीसकर बनाए जाते हैं.

झारखंड के आदिवासियों का पसंदीदा नाश्ता धुस्का है. जिसे ये लोग हर मौसम में खाते है. इसे चावल के घोल से डीप फ्राइ कर के बनाया जाता है. इसे चटनी या घुगनी के साथ खाते हैं. लेकिन इसका स्वाद मटन या देसी चिकन करी के साथ सबसे अच्छा लगता है.

इन लोगों की शाकाहारी थाली में बुर्रा, चिल्का रोटी, पीठा, मालपुआ, शुक्ति झोरी, भरता और चटनी शामिल होता है.

इसके अलावा झारखंड के आदिवासियों के खाने की थाली का अहम हिस्सा साग है. ये लोग अपने खाने में कई तरह के सागों का शामिल करते हैं. जो इस तरह है…

बेंग साग- इसे कच्चा या सूखाकर दोनों रुप में खाने में इस्तेमाल किया जाता है. इनकी पत्तियों का जूस पीने से कई तरह के रोगों से छुटकारा मिल सकता है. खास तौर पर पीलिया रोग के लिए यह काफी फायदेमन्द है.

फूटकल साग- यह पेड़ से तोड़ा जाता है. यह पेट के लिए अच्छा होता है, जब पेट गरम हो.

चाकोड़ साग- चाकोड़, पौधे से फूल लगे पत्तियों को तोड़कर सुखाया जाता है. इसके सेवन से चर्म रोग होने से बचा जा सकता है.

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चाकोड़ साग

सनई साग- यह एक प्रकार का फूल है, जिसे साग के रुप में प्रयोग किया जाता है. सनई पौधे के छालों से रस्सी भी बनाई जाती है.

कटई साग- यह साग जंगलों में कटीले पौधे में पाया जाता है. यह पेट के लिए काफी अच्छा है.

सुनसुनियाँ साग– यह गर्मी के दिनों में नदी किनारे पाया जाता है. यह साग खाने से अनिंद्रा की शिकायत दूर होती है क्योंकि इसके सेवन से नींद बहुत आती है.

कोइनार साग- कोइनार साग को गर्मी के मौसम में कोइनार पेड़ों के कोमल पत्तियों को तोड़ा जाता है. इस साग के अधिक सेवन से पेट गरम भी हो सकता है इसलिए बड़े-बूढ़े इसमें फूटकल साग मिला के पकाते हैं.

टुम्पा साग- यह कोइनार का फूल है. इसका स्वाद थोड़ा कड़वा होता है, जो पेट के लिए काफी अच्छा है.

झारखण्ड में सागों के रुप में आलू की पत्तियां, मटर की पत्तियां, चने की पत्तियों को भी सब्जी के रुप में प्रयोग होता है. आदिवासी हर मौसम के सागों को सूखाकर अन्य दिनों के लिए रख लेता है.

वहीं इन लोगों की मांसाहारी थाली भी विविधता से भरी हुई है. इनमें चींटी के अंडे से लेकर छोटे-बड़े मांस शामिल है. इसके अलावा इसमें अलग-अलग मौसमों के दौरान उपलब्ध स्थानीय मछलियों की एक विशाल विविधता है.

Fresh Water Fish

जिसे आमतौर पर करी या मसल कर तैयार किया जाता है. वहीं सूअर का मांस भी एक प्रमुख विकल्प है जो स्थानीय रूप से आसानी से उपलब्ध होता है.

ये तो हुई झारखंड के आदिवासियों के खाने की बात लेकिन इनके पेय पदार्थ भी विविध है. हंडिया झारखंड के आदिवासियों के बीच एक लोकप्रिय मादक पेय है. यह चावल या मडुआ या दोनों को स्थानीय जड़ी-बूटियों के साथ मिला कर बनाया जाता है. इसे राइस बियर या राइस वाइन भी कहा जाता है.

इसके अलावा महुआ यहां का एक और लोकप्रिय स्थानीय मादक पेय है. जो महुआ के पेड़ के फूलों से घर पर बनाया जाता है और औपचारिक अवसरों, अनुष्ठानों और अन्य पारिवारिक समारोहों के दौरान इसका सेवन विशेष रूप से किया जाता है. परंपरागत रूप से महुआ प्रसव के बाद महिलाओं को दी भी जाती है. जिससे महुआ में मौजूद आयरन सप्लीमेंट से महिलाओं को ताकत मिले.

आदिवासी का भोजन एक सांस्कृतिक यात्रा है, जो स्वाद, सेहत, और समृद्धि को एक साथ मिलाती है। इसे समझना और मान्यता देना हमारे सांस्कृतिक संपत्ति का हिस्सा है।

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