HomeAdivasi Dailyआदिवासियों की 'दिल्ली दस्तक', सरना धर्म कोड की माँग

आदिवासियों की ‘दिल्ली दस्तक’, सरना धर्म कोड की माँग

आदिवासी संगठनों का कहना है कि आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग पिछले 16 सालों से चल रही है. लेकिन अब आदिवासी संगठनों ने फ़ैसला कर लिया है कि इस मांग को मनवाने के लिए केन्द्र सरकार पर लगातार दबाव बनाया जाएगा.

सरना धर्म कोड की माँग के लिए आदिवासी दिल्ली दस्तक देने पहुँच रहे हैं. झारखंड, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल के अलावा भी कई राज्यों के आदिवासी नेताओं और कार्यकर्ता दिल्ली पहुँच रहे हैं.

इस कार्यक्रम में आदिवासियों के कई संगठन शामिल हो रहे हैं. इन संगठनों के नेताओं ने जानकारी दी है कि वो कम से कम दो दिन दिल्ली में रहेंगे. इन दो दिनों में पहले दिन दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक चर्चा का आयोजन किया जाएगा. इस आयोजन में क़रीब 100 आदिवासी प्रतिनिधि शामिल होंगे.

इसके अगले दिन दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिन का धरना दिया जाएगा. आदिवासी नेताओं ने दावा किया है कि इस धरने में बड़ी संख्या में आदिवासी हिस्सा लेंगे. 

सरना धर्म कोड या आदिवासियों के लिए अलग धर्म की मांग करने वाले संगठनों का कहना है कि भारत की जनगणना में सभी धार्मिक समुदायों की पहचान दर्ज की जाती है. लेकिन आदिवासियों के लिए यह प्रावाधान नहीं है. 

इन संगठनों का कहना है कि जिन आदिवासियों ने धर्म परिवर्तन कर लिया है उन्हें तो धार्मिक पहचान मिल जाती है. लेकिन जो आदिवासी अभी भी अपनी परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं के साथ रह रहे हैं, उन पर जबरन हिंदू धर्म की पहचान थोप दी जाती है.

सरना धर्म की माँग लगातार ज़ोर पकड़ रही है

इस सिलसिले में झारखंड के आदिवासी नेता प्रोफ़ेसर करमा उराँव ने मैं भी भारत को बताया कि दिल्ली में 6 और 7 दिसंबर को इस मसले पर चर्चा भी होगी और धरना भी दिया जाएगा.

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार पहले ही विधानसभा में सरना धर्म कोड के समर्थन में एक प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार को भेज चुकी है. झारखंड के अलावा सरना धर्म की माँग कर रहे संगठनों को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी समर्थन हासिल है. 

आदिवासी संगठनों का कहना है कि आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग पिछले 16 सालों से चल रही है. लेकिन अब आदिवासी संगठनों ने फ़ैसला कर लिया है कि इस मांग को मनवाने के लिए केन्द्र सरकार पर लगातार दबाव बनाया जाएगा.

आदिवासी संगठनों का कहना है कि अगर केन्द्र सरकार ने सरना कोड को संसद से पास नहीं किया तो 2021 में होने वाली जनगणना का विरोध किया जाएगा.

आदिवासियों के लिए जनगणना में अलग पहचान और एक अलग धर्म कोड के समर्थन में कई आदिवासी संगठन लंबे समय से सक्रिय हैं. कुछ आदिवासी नेताओं का दावा है कि क़रीब 16 साल से आदिवासी यह माँग कर रहे हैं. इस सिलसिले में ये संगठन झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बड़े बड़े कार्यक्रम और रैली कर चुके हैं. 

ये संगठन अब केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने की मंशा से दिल्ली पहुँच रहे हैं. 

1 COMMENT

  1. कैसे स्वीकार करे कोई आदिवासी सरना धर्म! क्यूँ करे,किस लिये करे??? अपने धूर्त राजनीतिक लालसा, स्वार्थ, देश की एकता और अखंडता को तोड़ने की साजिश के तहत देश के बड़े नेताओं द्वारा, देश विरोधी लॉबी जो कई सालों से आदिवासी राज्यो में धर्म परिवर्तन की आड़ में अपना लक्ष्य साधे हुए! मेरे जैसे आदिवासी अपनी संस्कृति,परंपरा प्रकृति पूजक वाली छवियों को क्यूँ छोड़ें जहाँ मेरी जड़े कही ना कही सनातन संस्कृति को स्पर्श करती हैं । भगवान बिरसा मुंडा ने क्यूँ छोड़ा उस धर्म को जिसके प्रभाव मे वो आ गये थे फिर वो क्यूँ लौट आये थे अपने मुल धर्म मे क्यूँ लौट आये । इसका जवाब उन्हें देना चाहिये ओर वे वही लोग है जो आदिवासियों के जड़ को मिटाने वाले हैं ।

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