करीब चार साल पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने जंगल महल के बांकुरा की एक आदिवासी छात्रा रचना हांसदा (Rachana Hansda) को इलाज का भरोसा दिया था. रचना गंभीर डायबिटीज़ से पीड़ित है. उसको आश्वासन दिया था कि उसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) इलाज में मदद मिलेगी.
इसके तुरंत बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने बांकुरा के रवीन्द्र भवन में एक प्रशासनिक बैठक के दौरान जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि राज्य सरकार उनके इलाज की पूरी जिम्मेदारी लेगी.
इसके बाद इस गरीब और वंचित परिवार ने यह मान लिया था कि अब उन्हें इलाज के लिए धक्के नहीं खाने पड़ेंगे. रचना के पिता, बिभीषण हांसदा और मां, मोनिका दोनों बांकुरा जिले के छोटूरदाही गांव के ईंट भट्ठा मजदूर हैं.
उनका मानना था कि जब केंद्रीय गृह मंत्री और बंगाल की मुख्यमंत्री ने यह आश्वासन दिया तो उनकी बेटी का इलाज हो जाएगा. हालांकि, उनकी सभी उम्मीदें धराशायी हो गईं.
चार साल बाद भी रचना को दिल्ली के एम्स में इलाज का इंतजार है.
रचना के पिता ने कहा कि उन्हें उम्मीद छोड़नी पड़ी और बांकुरा में ही अपनी बेटी के इलाज की व्यवस्था करनी पड़ी. उन्होंने बताया कि वो भी बीमार हैं क्योंकि पिछले छह महीनों में उनकी दोनों किडनी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई हैं.
वह अपनी बीमारी के कारण काम करने में असमर्थ है. जिसकी वजह से उनकी थोड़ी बहुत आने वाली आमदनी भी बंद हो गई है.
उन्होंने कहा कि बांकुरा से भाजपा सांसद सुभाष सरकार ने परिवार को उनकी बेटी की दवा के लिए कुछ पैसे मुहैया कराए थे.
हालांकि, हांसदा को नहीं पता कि वह अपनी किडनी की बीमारी के महंगे इलाज की व्यवस्था कैसे करेंगे? बेहद निराशा और अवसाद में डूबे इस परिवार की फिलहाल कोई सुध नहीं ले रहा है.
अमित शाह और ममता बनर्जी ने बिभीषण हांसदा से क्यों किया वादा?
बांकुरा नंबर 1 ब्लॉक के आंधरथोल ग्राम पंचायत के अंतर्गत छोटुरडीहा गांव में हाशिए पर रहने वाले राजमिस्त्री हांसदा एक जानी-मानी शख्सियत हैं. यह गांव कोलकाता से लगभग 180 किलोमीटर दूर और बांकुरा जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर, सुनुकपहाड़ी गांव के पास बांकुरा-रानीबंध राज्य राजमार्ग के बाईं ओर स्थित है.
हांसदा यहां अपनी बुजुर्ग मां फुलमोनी, पत्नी मोनिका, बेटी रचना और बेटे के साथ रहते हैं. वो और उनकी पत्नी ईंट भट्टे पर मजदूरी करके अपनी आजीविका कमाते हैं.
हांसदा का परिवार 5 नवंबर, 2020 को एक राजनीतिक कार्यक्रम के दौरान सुर्खियों में आया. इस कार्यक्रम की मेजबानी बीजेपी नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, अन्य पार्टी नेता – कैलाश विजयवर्गीय, मुकुल रॉय, दिलीप घोष और राहुल सिन्हा ने की थी.
इन सभी नेताओं को हांसदा के आवास पर दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था, जिसकी व्यवस्था स्थानीय भाजपा ने की थी.
इस गांव को ऐतिहासिक रूप से ‘जोल्डुबी छोटूरडीही’ (Joldubi Choturdihi) के नाम से जाना जाता है. इसकी स्थापना छह दशक पहले 1960 के दशक में कांगसाबोटी जलाशय के निर्माण से विस्थापित परिवारों को समायोजित करने के लिए की गई थी. खासकर के मुकुटमोनीपुर के बासोंतोपुर के इन परिवारों को उनकी जलमग्न संपत्तियों के मुआवजे के रूप में यहां जमीन मिली.
5 नवंबर, 2020 को दोपहर में आदिवासी रीति-रिवाजों के मुताबिक, ग्रामीणों ने शाह और उनके दल का पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ स्वागत किया. जिसमें शंख बजाना और संताली नृत्य करना शामिल था.
हांसदा का घर संताल चित्रों से सजाया गया था और दीवारों पर संताली, हिंदी और बंगाली भाषाओं में एक स्वागत संदेश लिखा गया था. साथ ही प्रशासन ने उस कार्यक्रम से पहले उनके आवास को सैनिटाइज किया था.
अमित शाह और अन्य नेताओं के दोपहर के भोजन को मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से व्यापक कवरेज मिली. भाजपा नेताओं ने सुगंधित चावल, दाल, रोटी, तली हुई लौकी, खसखस के पेस्ट में पकाए गए आलू और मिठाइयां सहित बंगाली शाकाहारी व्यंजनों का आनंद लिया.
आतिथ्य से प्रभावित हो शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर आभार व्यक्त करते हुए कहा, “चतुर्धी गांव में श्री विभीषण हांसदाजी के घर पर अद्भुत बंगाली भोजन का आनंद लिया. कोई भी शब्द उनकी गर्मजोशी और आतिथ्य को व्यक्त नहीं कर सकता.”
रवाना होने से पहले केंद्रीय गृह मंत्री ने हांसदा के परिवार और ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि ‘हम लोग फिर मिलेंगे.’
शाह के इस भाव ने हांसदा पर गहरी छाप छोड़ी, जिन्होंने बाद में पत्रकारों से साझा किया कि शाह की मेजबानी करना उनके लिए सम्मान की बात थी और उनके जीवन का एक अहम दिन था.
उन्होंने कहा कि उन्होंने शाह को अपनी बेटी के डायबिटीज के बारे में बताया और कुछ वित्तीय सहायता का अनुरोध किया. शाह ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया.
वहीं गांव के दौरे के कुछ दिनों बाद शाह ने नई दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि हांसदा की बेटी रचना का दिल्ली के एम्स में इलाज होगा.
इस घोषणा के बाद 25 नवंबर, 2020 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बांकुरा के रवीन्द्र भवन में एक प्रशासनिक बैठक बुलाई और जिला प्रशासन को रचना के इलाज की जिम्मेदारी लेने का निर्देश दिया.
इन घटनाओं पर विचार करते हुए हांसदा ने कहा, “जब मैं अपनी बीमार बेटी के साथ दिल्ली गया तो मुझे अमित शाह से मिलने का मौका नहीं मिला. दुर्भाग्य से मेरी बेटी को एम्स में इलाज भी नहीं मिला. अच्छा होता अगर वहां पर उसका इलाज किया जाता.”
बांकुरा जिले के मुख्य स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी (CMOH) डॉक्टर श्यामल सारेन ने कहा कि वे रचना को नियमित रूप से इंसुलिन देते हैं.
लेकिन हांसदा ने उनके दावे का खंडन किया और कहा कि शुरू में राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने इंसुलिन दिया लेकिन बाद में कमी का दावा करते हुए नियमित रूप से दवा की आपूर्ति करने में विफल रहे.
हालांकि, उन्होंने बांकुरा के सांसद सरकार का आभार व्यक्त किया, जो व्यक्तिगत रूप से उनकी बेटी की दवा का खर्च वहन करते हैं.
फिलहाल बांकुरा सारदामोनी कॉलेज में स्नातक तृतीय वर्ष की छात्रा रचना का बांकुरा में इलाज चल रहा है. लेकिन उसके ब्लड शुगर के लेवल में उतार-चढ़ाव जारी है. इसलिए रचना के पिता ने बेटी के अच्छे इलाज की इच्छा व्यक्त की.
बिभीषण हांसदा अब कैसे बिता रहे हैं अपने दिन?
उन्होंने मीडिया को बताया, “मैं पिछले छह महीने से किडनी की बीमारी से पीड़ित हूं. मेरी दोनों किडनी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई हैं. मैं विभिन्न मेडिकल टेस्ट और दवाओं पर काफी पैसा खर्च कर रहा हूं.”
उन्होंने बताया कि वे अकेले दवा पर हर महीने 10 हज़ार रुपये खर्च करते हैं.
अपनी बीमारी के कारण हांसदा काम नहीं कर सकते हैं और उनकी पत्नी मजदूरी कर रही हैं. हांसदा ने भारी मन से कहा, “हम बेहद गरीबी में जी रहे हैं. हम अपनी पालतू बकरियां बेचकर और रिश्तेदारों की मदद पर निर्भर होकर मुश्किल से गुजारा कर रहे हैं.”
उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री को अपनी मुश्किल परिस्थितियों के बारे में सूचित करने की तीव्र इच्छा व्यक्त की. साथ ही अपने और अपनी बेटी दोनों के लिए मदद की गुहार लगाई.
आंदरथोल ग्राम पंचायत की सदस्य और भालुकगेंजा गांव की निवासी अनिमा माल ने हंसदा के परिवार की दुर्दशा के बारे में बताते हुए कहा कि अमित शाह ने दिल्ली में उनकी बेटी के इलाज की जिम्मेदारी लेने का वादा करते हुए हांसदा के घर का दौरा किया था और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी समर्थन देने का वादा किया था. लेकिन उनमें से किसी ने भी अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की.
उन्होंने आगे कहा कि लंबे समय तक पंचायत में कोई काम उपलब्ध नहीं होने के कारण, हांसदा और उनका परिवार गरीबी में जी रहा है.
भारतीय जीवन बीमा निगम के कर्मचारी और सुनुकपहाड़ी गांव के निवासी दुलाल परमानिक ने कहा कि शाह और बनर्जी दोनों इस गरीब आदिवासी मजदूर की बेटी के इलाज के संबंध में अपना वादा निभाने में विफल रहे हैं.
रिटायर्ड लाइब्रेरियन और हांसदा के पड़ोसी सुनील घोष ने भी शाह और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के आश्वासन को याद करते हुए कहा कि वह (विभीषण हांसदा) घर चलाने के लिए परिवार की बकरियां बेच रहे हैं. यह कब तक जारी रह सकता है? हम उनके लिए उचित इलाज सुनिश्चित करने के लिए मदद का आग्रह करते हैं.
आख़िर में विभीषण हांसदा ने कहा कि कोई भी सरकार (केंद्र या राज्य) उनकी दुर्दशा पर नज़र नहीं रख रही है.
उन्होंने कहा, “हम बस जीना चाहते हैं.”