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लोकसभा चुनाव 2024 में आदिवासी मुद्दों पर बीजेपी और कांग्रेस में प्रतिस्पर्धा में कितनी ईमानदारी

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) में शायद पहली बार आदिवासी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हो रही है. ख़ासतौर से बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही बड़े राष्ट्रीय दल आदिवासी क्षेत्रों पर फोकस कर रहे हैं.

आदिवासी संकल्प (Adivasi Sankalp) के तहत कांग्रेस (Congress) की ‘जल, जंगल, जमीन की रक्षा’ की पांच गारंटी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दावों को चुनौती देती है कि आदिवासी कल्याण पिछले दशक में मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रहा है.

कांग्रेस ने आदिवासियों को “उनका वाजिब हक” दिलाने के लिए “जल, जंगल, जमीन” की रक्षा के लिए आदिवासी न्याय (Adivasi Nyay) के तहत पांच गारंटियों की घोषणा की.

पार्टी ने आदिवासी कल्याण और सामाजिक न्याय के मुद्दे को आगे बढ़ाया है, जो लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha elections) से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime minister Narendra Modi) के नेतृत्व में भाजपा का विशेष फोकस रहा है.

मंगलवार (12 मार्च) को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने महाराष्ट्र के नंदुरबार में चल रही भारत जोड़ो न्याय यात्रा (Bharat Jodo Nyay Yatra) के दौरान कहा कि आदिवासियों को “देश की उनकी 8 फीसदी आबादी के अनुसार आनुपातिक हिस्सेदारी नहीं दी गई है.”

कांग्रेस ने कहा कि “आदिवासी संकल्प” नाम की पांच गारंटियों में एक समर्पित वन अधिकार प्रभाग के माध्यम से वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए एक राष्ट्रीय मिशन, एक अलग बजट और लंबित एफआरए दावों के निपटान सहित कार्य योजनाएं शामिल होंगी.

इसमें वन संरक्षण और भूमि अधिग्रहण अधिनियमों में मोदी सरकार द्वारा किए गए सभी संशोधनों को वापस लेने का वादा किया गया है. इसके अलावा उन सभी बस्तियों या बस्तियों के समूहों को अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित करने का भी वादा किया गया है जहां अनुसूचित जनजाति (एसटी) सबसे बड़ा सामाजिक समूह है.

कांग्रेस पार्टी के आदिवासियों के लिए संकल्प में अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार अधिनियम (PESA) के अनुरूप राज्य कानून बनाने का वादा शामिल है.

इसमें लघु वन उपज को कवर करने के लिए एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को कानूनी दर्जा देने के अपने वादे को बढ़ाने का भी वादा किया.

इसके अलावा इसमें कहा गया कि वह अनुसूचित जाति योजना और अनुसूचित जनजाति उपयोजना को पुनर्जीवित करेगी और इसे कानून द्वारा लागू करने योग्य बनाएगी जैसा कि कर्नाटक और तेलंगाना जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में है.

राहुल गांधी ने कहा कि जहां कांग्रेस आदिवासियों को देश की जमीन का मूल मालिक मानती है, वहीं भाजपा उन्हें केवल वनवासी के रूप में देखती है.

उन्होंने कहा, “आदिवासी शब्द का अर्थ है इस देश की भूमि के मूल मालिक. जब कोई नहीं था तब इस देश में आदिवासी थे. आप असली मालिक हैं. वनवासी का अर्थ है जो वनों में रहते हैं. ‘वनवासी’ और ‘आदिवासी’ में अंतर यह है कि ‘आदिवासी’ शब्द के साथ जमीन, जल और जंगल का अधिकार जुड़ा हुआ है.

लेकिन ‘वनवासी’ के साथ ऐसे कोई अधिकार नहीं हैं. इसीलिए बीजेपी आपको ‘वनवासी’ कहती है और हम आपको ‘आदिवासी’ कहते हैं.”

नई दिल्ली में अपने आवास पर एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) ने कहा कि कांग्रेस “जल, जंगल, ज़मीन” की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.

उन्होंने कहा, “उन्हें (आदिवासियों को) परेशान किया जा रहा है, उनकी जमीन छीन ली जा रही है, उनसे बंधुआ मजदूर के रूप में काम कराया जा रहा है. हम इस गारंटी के माध्यम से उन्हें इन सब से मुक्ति दिलाएंगे. हम जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं.”

कांग्रेस पार्टी द्वारा घोषित गारंटियां, पिछले साल से सामाजिक न्याय को मुद्दा बनाने नए सिरे से किए गए प्रयास का अनुसरण करती हैं. जिसमें उसने देशव्यापी जाति जनगणना का आह्वान किया है और भाजपा पर आदिवासियों के बदले क्रोनी पूंजीवाद और गौतम अडानी जैसे बड़े व्यापार मालिकों के हितों की रक्षा करने का आरोप लगाया है.

राहुल ने कहा, “जब जमीन लेनी होगी तो आदिवासियों की होगी, पानी लेना होगा तो आपका होगा, जंगल लेना होगा तो आपका होगा. आदिवासियों के लिए कोई हिस्सेदारी नहीं है. निजी स्कूलों, अस्पतालों में कोई आदिवासी मालिक नहीं है. आदिवासियों की आबादी 8 प्रतिशत होने के बावजूद कोई अधिकार नहीं है. हम इसे बदलना चाहते हैं.”

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कांग्रेस की कोशिश

कांग्रेस पिछले साल से देशव्यापी जाति जनगणना (caste census) पर जोर दे रही है और उसने 2023 के विधानसभा चुनावों में सत्ता में आने पर सर्वेक्षण कराने का वादा किया था.

लेकिन तीन हिंदी भाषी राज्यों – छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे, जिनमें देश की लगभग 31 फीसदी आदिवासी आबादी शामिल है. उसने दिखाया कि भाजपा ने आदिवासी आबादी के बीच कांग्रेस की बढ़त को उलट दिया है.

उदाहरण के लिए, भाजपा, जिसने 2018 में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित 76 सीटों में से सिर्फ 19 सीटें जीतीं, 2023 में 44 सीटें हासिल करने में सफल रही.

राजस्थान में भाजपा ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 25 सीटों में से 13 पर जीत हासिल की, जबकि 2018 में यह संख्या 9 थी.

यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी 2023 के विधानसभा चुनावों से उबरने का प्रयास कर रही है, खड़गे ने कहा कि पार्टी का मुख्य उद्देश्य आदिवासियों को “मुख्यधारा” में लाना है.

उन्होंने कहा, “यह ऐसा नहीं है. हमारा इरादा गरीबी दूर करना, उनकी आर्थिक स्थिति सुधारना है. हमारा मुख्य उद्देश्य उन्हें शिक्षित कर मुख्यधारा में लाना है. हम नकली काम नहीं करते, हम असली काम करते हैं और यही कारण है कि आजादी के बाद देश में इतने सारे लोग शिक्षित हैं.”

आदिवासी न्याय के लिए कांग्रेस के प्रयास को भाजपा के रूप में एक विकट चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद दिसंबर विधानसभा चुनावों के साथ-साथ हाल के महीनों में चुनावी रैलियों में आदिवासियों पर अपनी सरकार के फोकस को उजागर किया है.

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आदिवासी कल्याण पर BJP का विशेष फोकस

15 जनवरी को पीएम मोदी ने प्रधान मंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (PM-JANMAN) योजना के तहत ग्रामीण आवास योजना के एक लाख लाभार्थियों को 540 करोड़ रुपये की पहली किस्त जारी की.

इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस योजना के लिए 24 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक के बजट को मंजूरी दी थी, जो नौ प्रमुख संबद्ध मंत्रालयों/विभागों से संबंधित 11 महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों पर केंद्रित है.

इस योजना का लक्ष्य देश भर के 200 जिलों में 22 हज़ार विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) बहुसंख्यक आदिवासी बस्तियों और पीवीटीजी परिवारों तक पहुंचना और सड़क, दूरसंचार कनेक्टिविटी, बिजली, सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण तक बेहतर पहुंच और स्थायी आजीविका के अवसर जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना है.

जनवरी में पहली किस्त जारी करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार के दस साल गरीबों को समर्पित रहे हैं. उन्होंने उनके मार्गदर्शन के लिए भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी श्रेय दिया और कहा कि समुदाय से आने वाले व्यक्ति के रूप में उन्होंने उनके साथ बातचीत में मुद्दों के बारे में बात की.

इस महीने की शुरुआत में मोदी ने ओडिशा और पश्चिम बंगाल में अपनी रैलियों में एक बार फिर इस योजना पर प्रकाश डाला और कहा कि आदिवासी कल्याण पिछले दशक में उनकी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रहा है.

मोदी सरकार ने आदिवासियों के लिए जिन अन्य योजनाओं को अपने फोकस में उजागर करने की कोशिश की है, उनमें नेशनल एजुकेशन सोसाइटी फॉर ट्राइबल स्टूडेंट्स (NESTS) के तहत 2019 में स्थापित आवासीय विद्यालयों के माध्यम से एसटी छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के लिए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) शामिल है.

जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार, आदिवासी समुदाय के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए इसका बजटीय आवंटन 2013-14 में 4295.94 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2023-24 में 12461.88 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के एक विश्लेषण के अनुसार, अंतरिम बजट 2024-25 में अनुसूचित जनजातियों के लिए बजटीय आवंटन 2023-24 की तुलना में 10.8 प्रतिशत बढ़ गया है और अनुसूचित जातियों के लिए भी 12.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

दिल्ली स्थित दलित और आदिवासी अधिकारों की वकालत करने वाले समूह, नेशनल कैंपेन फॉर दलित ह्यूमन राइट्स – दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन, की फरवरी 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, आदिवासियों के लिए लक्षित बजटीय आवंटन आदर्श रूप से केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए आवंटन का 8.2 फीसदी होना चाहिए.

हालांकि, यह 2018-19 में 2.5 प्रतिशत और 2022-23 में 3.6 प्रतिशत के बीच रहा. वहीं 2023-24 में और भी कम होकर 1.7 प्रतिशत हो गया.

समूह ने बजटीय आवंटन का विश्लेषण किया और उदाहरण के लिए पाया कि श्रम और रोजगार मंत्रालय के तहत दलित और आदिवासी बजट से 2895.94 करोड़ रुपये एससी/एसटी उपयोजनाओं का उल्लंघन करते हुए सामान्य योजनाओं की ओर भेज दिए गए.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जो आवंटन एससी और एसटी के कल्याण के लिए होना चाहिए था, उसे “मुख्य रूप से गैर-लक्षित योजनाओं के तहत हटा दिया गया, जो शायद ही कभी समुदाय तक पहुंचते हैं.”

2011-2012 से 2013-14 की अवधि के लिए जनजातीय उप-योजना की CAG परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट में एससी/एसटी उप-योजनाओं से फंड के डायवर्जन का उल्लेख किया गया है और सिफारिश की कि केंद्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे फंड जो गैर-डायवर्टेबल हैं, उन्हें अन्य योजनाओं में डायवर्ट नहीं किया जाए.

मोदी सरकार ने वन अधिकार अधिनियम के अनुसार आदिवासियों को भूमि का मालिकाना हक देने और आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अपराधों सहित कल्याणकारी उपायों पर भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है.

सरकारें आदिवासियों के प्रति ईमानदार नहीं रही हैं

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी ने राष्ट्रपति पद के लिए द्रोपदी मुर्मू को चुन कर एक बड़ा काम किया है. द्रोपदी मुर्मू एक ऐसी आदिवासी नेता हैं जो वक्त पड़ने पर स्टैंड ले सकती है.

लेकिन इसके अलावा बीजेपी ने आदिवासी समुदायों के विकास के लिए जो भी दावा किया है, आंकड़े उसकी गवाही नहीं देते हैं. आदिवासी मामलों को देखने वाली संसदीय कमेटी ने एकलव्य मॉडल रेसिडेंसियल स्कूलों की बात हो या फिर आदिवासी विकास के लिए पैसे बढ़ाने का दावों को ग़लत बताया है.

हाल ही में जिस पीए्म आदिवासी न्याय (PM-Adivasi Nyaya Maha Abhiyan) की चर्चा हो रही है वह भी जल्दबाज़ी में कर दी गई एक घोषणा है.

क्योंकि सरकार के पास आदिम जनजातियों की जनसंख्या के सही सही आंकड़े ही नहीं हैं.

कांग्रेस पार्टी यह दावा ज़रूरी कर सकती है कि उसने वन अधिकार अधिनियम 2006 बना कर एक ऐतिहासक काम आदिवासियों के लिए किया है.

लेकिन कांग्रेस की राज्य सरकारों ने भी पेसा या वन अधिकार कानून 2006 को लागू करने में कोई तत्परता नहीं दिखाई है.

इस सब के बावजूद लोकसभा चुनाव 2024 में आदिवासी क्षेत्रों के लिए ख़ास तौर पर चर्चा की जा रही है और आदिवासी मुद्दों को घोषणापत्र में शामिल किया जा रहा है. इसे अच्छा ही माना जा सकता है.

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