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छत्तीसगढ़: पंडो आदिवासियों की कुपोषण से हो रही मौतें स्वास्थ्य प्रणाली की विफलता को उजागर करती हैं

इन मौतों और सरकार की जल्दबाज़ी में की गई प्रतिक्रिया के पीछे ग़रीबी और उपेक्षा से जूझ रहे इन आदिवासी समुदायों की मजबूरी की कहानी छिपी है. सरकारी योजनाओं तक पहुंच की कमी इन्हें इसका फ़ायदा उठाने से रोकती है.

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर ज़िले में इस साल जुलाई से अक्टूबर के पहले सप्ताह के बीच पंडो और पहाड़ी कोरवा आदिम जनजातियों के 29 लोग, जिसमें कई बच्चे भी शामिल हैं, की मौत हुई. लेकिन फिर भी राज्य में कुछ भी बदलता नज़र नहीं आ रहा है.

राज्य सरकार ने 270 लोगों को ज़िला अस्पताल में भर्ती करने का दावा तो किया है, लेकिन गंभीर कुपोषण ने फिर भी 29 लोगों की जान ले ली.

बलरामपुर के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी डॉ बसंत कुमार सिंह ने भी द हिंदू को पुष्टि की, “जुलाई, अगस्त और सितंबर में 29 पंडो और पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग मारे गए थे.”

इन मौतों और सरकार की जल्दबाज़ी में की गई प्रतिक्रिया के पीछे ग़रीबी और उपेक्षा से जूझ रहे इन आदिवासी समुदायों की मजबूरी की कहानी छिपी है. सरकारी योजनाओं तक पहुंच की कमी इन्हें इसका फ़ायदा उठाने से रोकती है.

बलरामपुर के एक आदिवासी, रूपलाल पंडो कहते हैं, “यहां जीवन नर्क है. मैं और मेरे छह बच्चे हर महीने मिलने वाले 20 किलो चावल, 1 लीटर मिट्टी के तेल और 1 किलो चीनी के राशन पर कैसे जीवित रह सकते हैं?”

बलरामपुर ज़िले के ही मुंगापारा के निवासी रूपलाल कहते हैं कि वो और उसकी पत्नी दिहाड़ी मजदूर हैं. उनके हालात इतने बुरे हैं कि रोज़-रोज़ के खाने के लिए उन्हें जद्दोजहद करनी पड़ती है. उनके घर चूल्हा तभी जलता है, जब खाना बनाने के लिए उन्हें कुछ मिलता है.

रूपलाल, उसके दो भाई और उनके परिवार अपनी एक एकड़ भूमि पर पैदा की गई छोटी-मोटी फ़सल पर ज़िंदा रहते हैं.

पिछले कुछ सालों से इन आदिवासी समुदायों के लिए वनोपज इकट्ठा करना भी मुश्किल हो गया है. गांव के निवासी कलावती पंडो का कहना है कि काफ़ी समय से इन्हें जंगलों से पौष्टिक वनोपज नहीं मिल रही है. इसके लिए वो मौसम में लगातार हो रहे बदलाव को ज़िम्मेदार मानती हैं.

ज़िला प्रशासन का कहना है कि इलाक़े में स्वास्थ्य सेवाओं की ख़राब स्थिति लॉकडाउन, और स्वास्थ्य अधिकारियों और कार्यकर्ताओं को कोरोनावायरस प्रोटोकॉल में लगा देने की वजह से है.

भीषण कुपोषण की वजह से इन आदिम जनजातियों की वैसे ही इम्यूनिटी काफ़ी कमज़ोर है. ऐसे में COVID-19 का असर इनपर ज़्यादा होता है.

बलरामपुर कलेक्टर कुंदन कुमार कहते हैं, “स्वास्थ्य अधिकारी COVID-19 में व्यस्त हैं, और इसकी वजह से आदिवासी समुदाय के लोगों को नुकसान हो रहा है. कोविड के चलते लगातार निगरानी और समय-समय पर की जाने वाली स्वास्थ्य जांच को रोक दिया गया. लेकिन अब चीज़ें क़ाबू में हैं. हमने गंभीर रूप से बीमार 153 लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया है, 117 मरीजों को अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज और अन्य मल्टी-स्पेशियलिटी सरकारी अस्पतालों में भी शिफ़्ट किया गया है.”

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