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संघ परिवार अस्मिता और सम्मान के नाम पर आदिवासियों को जीत रहा है

दत्तात्रेय होसबाले ने भोपाल में वनवासी कल्याण परिषद के नए भवन में एक कौशल केंद्र का उद्घाटन करते हुए कहा कि यह इतिहास में दर्ज है. लेकिन यह भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी शिक्षा प्रणाली (उन्हें) समाज के सामने सफलतापूर्वक नहीं ला पाई.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने रविवार को देश के विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों द्वारा किए गए असाधारण योगदान को प्रमुखता से सामने लाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

एक समारोह को संबोधित करते हुए संघ के वरिष्ठ नेता ने यह भी कहा कि महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को भुला दिया गया था. लेकिन अब उनकी प्रशंसा की जा रही है, उन्हें पहचान दी जा रही है और उन्हें उचित सम्मान मिल रहा है.

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अन्य क्षेत्रों में आदिवासी लोगों के योगदान को प्रमुखता से सामने लाने और उल्लेखित करने की जरूरत है.’’

होसबाले ने कहा कि आदिवासी समुदायों ने व्यापार और वाणिज्य, शिक्षा, ज्ञान और स्वास्थ्य सभी क्षेत्रों में असाधारण योगदान दिया है. उन्होंने भोपाल में वनवासी कल्याण परिषद के नए भवन में एक कौशल केंद्र का उद्घाटन करते हुए कहा कि यह इतिहास में दर्ज है. लेकिन यह भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी शिक्षा प्रणाली (उन्हें) समाज के सामने सफलतापूर्वक नहीं ला पाई.

उन्होंने परिषद परिसर में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी तांत्या भील की प्रतिमा का अनावरण भी किया. होसबाले ने कहा कि झारखंड में जनजातीय लोगों की पीढ़ियां स्टील बना रही हैं. उन्होंने कहा कि यहां के लोगों के पास प्रतिभा और ज्ञान का विशाल खजाना है. उन्होंने आगे कहा कि बड़े शहरों में भी अलग-अलग क्षेत्रों में योगदान देने वाले जनजातीय लोगों की प्रतिभा, कार्यों और योगदान की स्थायी प्रदर्शनी लगाई जानी चाहिए.

उन्होंने जनजातीय वारली पेंटिंग की ओर इशारा किया जो बेहद लोकप्रिय हैं. होसबोले ने कहा, “अगर आदिवासी लोग अपनी पेंटिंग को बाजार में बेचते हैं तो उन्हें अत्यधिक लाभ होगा.”

दरअसल, मध्य भारत के दो प्रमुख राज्य- छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आदिवासी क्षेत्रों में लोगों को लुभाने के लिए ज़्यादा ज़ोर लगाना शुरू कर दिया है.

पिछले महीने ही छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल सरगुजा संभाग में संघ के प्रमुख मोहन भगवत तीन दिवसीय दौरे पर आए थे. वहीं मध्य प्रदेश में ‘पंचायत-अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार-अधिनियम’ यानी ‘पेसा’ कानून हाल ही में लागू हुआ है. संसद से 1996 में पारित होने के बाद पहली बार है जब इस क़ानून को मध्य प्रदेश में लागू किया गया.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पल को ‘ऐतिहासिक’ कहा था. क्योंकि पेसा कानून राज्य के छह जिलों में पूरी तरह से लागू हो हुआ है. इसके अलावा राज्य के 14 ऐसे जिले हैं जहां आदिवासी रहते हैं, वहां के कई इलाक़ों में भी इसे लागू किया जा रहा है.

मध्य प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 21.1 प्रतिशत है और मुख्यमंत्री का कहना है कि उनकी सरकार प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों में आदिवासी नायकों के स्मारकों की स्थापना करेगी जिनमे भीमा नायक, और तांत्या मामा के नाम शामिल हैं.

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. इन दो राज्यों में बीजेपी और आरएसएस सक्रिय हो गया है.

मध्य प्रदेश में कुल 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. पिछले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आदिवासी बहुल इलाकों से सिर्फ 16 सीटें ही जीतीं थीं जबकि कांग्रेस को इन इलाकों में 31 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन आगामी चुनाव के लिए बीजेपी का लक्ष्य बड़ा है इसलिए वो काफी समय से तैयारियों में जुटी हुई है.

हालांकि, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आदिवासी सीटों पर बीजेपी की पैठ कितनी बढ़ती है ये तो आगामी चुनावों के नतीजों के बाद ही पता चलेगा. लेकिन हाल ही संपन्न हुए गुजरात विधानसभा में आदिवासी वोट बैंक ने जिस तरह की करवट ली है उससे आगामी वर्षों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की उम्मीदें बढ़ गई है.

क्योंकि गुजरात चुनाव में एसटी के लिए जितनी सीटें आरक्षित थीं उनमें से 90 फीसदी बीजेपी के पाले में आ गई है. बीजेपी ने राज्य में 27 आदिवासी आरक्षित सीटों में से 24 पर जीत हासिल की है. चुनाव के बाद भी बीजेपी आदिवासियों को साधे रखने की रणनीति पर काम कर रही है.

बीजेपी मध्य प्रदेश, झारखंड,छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में भी उम्मीद करेगी की आदिवासी सीटों पर उसे फायदा मिलेगा. बीजेपी लंबे वक्त से आदिवासियों को अपनी ओर झुकाने की कोशिश में लगी हुई है. वहीं आरएसएस भी काफी सक्रिय है.

गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग सभी रैलियों में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का नाम जरूर लेते थे. क्योंकि द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं. पीएम मोदी ने इसे मुद्दा बनाया और कहा कि कांग्रेस के राज में आदिवासियों को सम्मान नहीं मिला.

पिछले एक साल से बीजेपी ने आदिवासी समुदाय के गुमनाम नायकों की प्रशंसा और सम्मान को एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की है. पिछले साल से केंद्र सरकार ने आदिवासी नायक बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया है.

इसके अलावा बीजेपी की केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम, आंध्र प्रदेश, झारखंड, केरल, मणिपुर, गुजरात और गोवा में आदिवासी संग्रहालय बनाने की योजना बनाई है.

1 COMMENT

  1. आर.एस.एस. एक विदेशी भ्रामणोका सर यांत्रिक non-registered ग्रुप है, संगठन नहीं। शुरू से इस ग्रुप का काम देश को लूटना और जाति के नाम पर विभाजन व उपद्रव फैलाना रहा है।
    आदिवासी समाज ना तो उनके झांसी में आया था ना आने वाला है।
    आदिवासी प्राकृतिक था, प्राकृतिक है, प्राकृतिक रहेगा।

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