देशभर के छात्रों के लिए भले ही ऑनलाइन शिक्षा सामान्य हो गई है, लेकिन भारत में अभी भी कई ऐसे इलाक़े हैं जहां के बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देना लगभग नामुमकिन है. इंटरनेट कनेक्टिविटी से लेकर स्मार्टफ़ोन या दूसरे डिजिटस यंत्रों की कमी इनके लिए बड़ी बाधाएं हैं.
इन हालात में ज़रूरी है कि इनके मदद के लिए कोई आगे आए. ऐसा ही कुछ तमिलनाडु के कोयंबत्तूर की इसल तट्टू आदिवासी बस्ती के आदिवासी बच्चों के लिए किया जा रहा है. उनकी मदद करने के लिए तिरुपुर ज़िले के उदुमलई तालुक के दो सरकारी स्कूल शिक्षक आगे आए हैं.
पहाड़ी रास्तों पर कई घंटों पैदल यात्रा कर यह दोनों इसल तट्टू आदिवासी बस्ती जाते हैं, और वहां के आदिवासी बच्चों को पढ़ाते हैं.
उदुमलई के लिंगमावुर में गवर्मेंट ट्राइबल रेज़िडेंशियल प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर एम पांडी और टीचर एस अय्यप्पन – तिरुमूर्ति हिल्स की तलहटी से छह किलोमीटर पहाड़ पर चढ़ाई कर आदिवासी बस्ती तक पहुँचते हैं.
इस आदिवासी बस्ती में प्रमुख रूप से पुलयार और मुदुवान आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं.
पश्चिम घाट की हरी-भरी पहाड़ियों में स्थित इस बस्ती तक पहुंचने के लिए ऊबड़-खाबड़ रास्ते से होकर गुज़रना पड़ता है. बस्ती तक पक्की सड़क की कमी के चलते बस्ती तक यात्रा एक बड़ी चुनौती है.
पांडी और अय्यप्पन हफ़्ते में दो या तीन बार, एक स्कूल सहायक के साथ सुबह 6 बजे इसल तट्टू की यात्रा शुरू करते हैं. उन्हें बस्ती तक पहुंचते-पहुंचते 10 बज जाते हैं.
हेडमास्टर पांडी ने एक अखबार को बताया कि बस्ती तक पहुंचने में लगभग चार से पांच घंटे लगते हैं. अगर बारिश हो जाए तो ऊबड़-खाबड़ इलाके पर पैदल चलना और भी मुश्किल हो जाता है.
इसके अलावा, रास्ता ख़तरनाक है क्योंकि यहां हाथी और बाघ जैसे जंगली जानवर भी होते हैं. लेकिन इन चुनौतियों को पार कर ये दोनों शिक्षक आदिवासी बच्चों को घर-घर शिक्षा देने का अपना कर्तव्य निभा रहे हैं.
अन्य आदिवासी बस्तियों के बच्चे
स्कूल में 13 छात्र एनरोल्ड हैं, जो अलग-अलग आदिवासी बस्तियों में रहते हैं – छह इस्ल तट्टू में रहते हैं. अब दूसरी बस्तियों में भी कक्षाएं संचालित करने की योजना बनाई जा रही है. पांडी और अय्यप्पन सिर्फ़ अपने स्कूल के छात्रों को ही नहीं पढ़ाते, बल्कि बस्ती में जो दूसरे स्कूलों के छात्र हैं उनको भी पढ़ाते हैं.
Great teacher