HomeAdivasi Dailyजेनु कुरूबा आदिवासी और टाइगर रिज़र्व का संघंर्ष क्या है?

जेनु कुरूबा आदिवासी और टाइगर रिज़र्व का संघंर्ष क्या है?

जेन कुरूबा समुदाय की एक आदिवासी महिला ने कहा, “मैं अपनी भूमि पर मरना पसंद करूंगी, लेकिन उस स्थानातंरण जगह पर वापस नहीं जाऊंगी.”

जेनु कुरूबा (Jenu kuruba tribe) आदिवासी नीलगिरि (Tribes of Nilgiris) पहाड़ियों में रहते है. 2011 की जनगणना के मुताबिक इनकी कुल जनसंख्या 37,000 हैं.

यह आदिवासी मुख्य तौर पर केरल और कर्नाटक की सीमाओं पर रहते हैं.

जेनु कुरूबा आदिवासियों के नाम से ही इनका पेशा झलकता है. कन्नड़ भाषा में शहद जुटाने को जेनु कहा जाता है.

ये आदिवासी भी सदियों से शहद इकट्ठा करने का काम करते है. इसलिए इनके पेशे पर ही इनका नाम जेनु कुरूबा पड़ा है.

यह आदिवासी निलगिरि के नागरहोल और बांदीपुर में रहते हैं.

1970 से अब तक कई जेनु कुरूबा आदिवासियों को बाघ सुरक्षा और जैव विविधता को बनाए रखने के बहाने से अलग-अलग जगहों पर स्थानांतरण कर दिया गया है.

2006 में वन अधिकार अधिनियम लागू किया गया था. इसके तहत आदिवासियों को उनके वनों पर अधिकार मिले थे.

लेकिन जेनु कुरूबा आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम का कोई फायदा नहीं मिला. यह अभी तक अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं.

स्थानांतरण से पड़ा गहरा प्रभाव

वन अधिकार और डब्ल्यूसीएस (वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी) ने निलगिरि में रहने वाले करीब 20,000 जेन कुरूबा आदिवासियों का स्थानांतरण किया है. निलगिरि में अभी भी 6,000 जेनु कुरूबा आदिवासी रहते हैं.

जेनु कुरूबा आदिवासियों ने वन अधिकार और डब्ल्यूसीएस पर शोषण, रोक-टोक और डराने-धमकाने के कई आरोप लगाए है.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया की अगर उनके समुदाय का कोई व्यक्ति अपनी आवाज उठाता है, तो उसे जेल भेज दिया जाता है.

आदिवासियों ने वन अधिकारी द्वारा किए गए शोषण का एक संवेदनशील किस्सा बताया.

उन्होंने कहा कि 2021 में बसवा में जेनु कुरूबा आदिवासी महिला को कुछ वन अधिकारी शोषण कर रहे थे, तभी उसके भाई ने उसे बचाने की कोशिश की.

वन अधिकारियों ने गुस्से में आकर आदिवासी महिला के भाई पर गोली चला दी और उसकी वहीं मौत हो गई.

इतने अत्याचार होने के बावजूद भी यह आदिवासी अपने बस्तियों से स्थानांतरण करने को तैयार नहीं है.

डब्ल्यूसीएस (वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी) ने स्थानांतरण की तारीफ की है. उनका कहना है कि जेनु कुरूबा के आदिवासी बस्तियों में काफ़ी बाघ रहते है. ऐसे में इन बाघ से आदिवासियों को खतरा हो सकता है.

वहीं जेनु कुरूबा आदिवासियों ने स्थानांतरण को घातक बताया है.

28 जेनु कुरूबा आदिवासी परिवारों को 2010 में अवैध तरीके से विस्थापित करवाया गया था. यह सभी जनवरी 2022 में अपने मूल भूमि पर वापस आए थे.

इन जेनु कुरूबा आदिवासियों ने कहा कि विस्थापित करते समय उनसे यह वादा किया गया था कि उन्हें जंगल में ही रहने दिया जाएगा.

जेन कुरूबा समुदाय की एक आदिवासी महिला ने कहा कि मैं अपनी भूमि पर मरना पसंद करूंगी, लेकिन उस स्थानातंरण जगह पर वापस नहीं जाऊंगी. हमें अक्सर वन अधिकारी परेशान करते है और वैन में बैठाकर पीटते है.

आदिवासी महिला ने यह भी आरोप लगाया कि वन अधिकार के लोगों ने गर्भवती महिला को भी बेहरमी से पीटा है.

आदिवासी महिला ने आगे कहा कि अगर स्थानातंरण इलाकों में जिंदगी इतनी ही अच्छी है, तो क्यों हमारी बस्तियों में अभी तक 6,000 आदिवासी रूके हुए है?

2021 में जेनु कुरूबा आदिवासियों ने अपने साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था.

इस प्रदर्शन में शामिल आदिवासी नेताओं ने यह मांग रखी कि टाइगर रिजर्व बंद हो जाए और जंगल उन्हें सौंप दिया जाए. उन्होंने यह कहा कि हम बाघों और जंगल की बेहतर देखभाल कर सकते हैं.

इसके अलावा उन्होंने भूमि अधिकारों की मांग भी रखी थी.

प्रदर्शन के दौरान आदिवासी नेताओं ने यह भी आरोप लगाए थे कि डब्ल्यूसीएस उन पर नस्लवादी होने का आरोप लगाती है.

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