झारखण्ड में आदिवासी धर्म कोड की मांग फिर तेज हो गई है. विभिन्न आदिवासी संगठन जनसम्पर्क में जुट गए हैं. अपनी अलग धर्म कोड की लेकर 25 अप्रैल को दिल्ली के जंतर मंतर पर एक दिन का धरना प्रदर्शन किया जाएगा.
आदिवासी जन परिषद के राष्ट्रीय महासचिव प्रेम शाही मुंडा कहा ने कहा कि संपूर्ण भारतवर्ष के आदिवासियों के लिए धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान है धर्म कोड. देश भर से आदिवासी समाज के लोग जंतर-मंतर पर जुटकर अपनी आवाज बुलंद करेंगे. कार्यक्रम में झारखण्ड से पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव और देव कुमार धान विशेष रूप से शामिल होंगे.
प्रेम शाही ने कहा कि भारतवर्ष में आदिवासी समाज प्राकृतिक पूजक हैं. आदिवासियों की जनसंख्या हिंदू, मुस्लिम, के बाद तृतीय स्थान पर आता है. भारत में आदिवासियों की धार्मिक एवं सांस्कृतिक मान्यता है जबकि पूरे देश में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध जैन लोगों का अपना अपना धर्म कोड है. जबकि 15 करोड़ आदिवासियों को देश में धर्म कोड में से वंचित किया गया है.
भारत में कम से कम 781 आदिवासी समुदाय रहते हैं. सभी आदिवासी समुदाय अपने क्षेत्र में सरना, सारी, आदि, विदिन बिरसाईट, भिली, गोंडी, कोयापुनेम साफाहोड़, डोनी पोलो, सनमाही खासी , हाथी धानका आदि अपने-अपने क्षेत्र में क्षेत्रीय स्तर पर अपना आस्था रखते हैं.
राष्ट्रीय सचिव मेघलाल मुंडा ने कहा कि जो आदिवासी अपना शादी- विवाह, मरखी कर्मकांड में पाहान पुरोहितों से नहीं करता है, धर्म परिवर्तन कर चुके हैं उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए.
देश में आदिवासी अपना शक्ति दिखाना चाहते हैं तो आदिवासी धर्म में आना होगा. धर्म के नाम पर अलग-अलग टुकड़े में नहीं बैठेंगे बल्कि एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है.
मेघलाल मुंडा ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के समय 1871 की जनगणना में मूलनिवासी, 1881 में (एग्रोजिनल) आदिवासी, 1891 में (एंब्रॉजिनल ) आदिवासी, 1901 में एनीमिस्ट(जीवत्म वादी ), 1911 में एनिमिस्ट (जीवताम्बादी), 1921 में एनिमिस्ट (जीवताम्बादी), 1931 में ट्राइबल रिलीजन(आदिवासी धर्म ), 1941 में ट्राइबल (कुटुम), 1951 में (शेड्यूल ट्राइब) अनुसूचित जनजाति के नाम से धर्मकोड दी गई थी.
बहत महत्योपुर्ण जानकारी धन्यवाद sir