आंध्र प्रदेश की उपमुख्यमंत्री पी पुष्पा श्रीवाणी ने एक गर्भवती आदिवासी औरत और उसके नवजात बच्चे की मौत पर रिपोर्ट मांगी है. इंटिग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी (ITDA) के परियोजना अधिकारी को यह रिपोर्ट बनाने का निर्देश दिया गया है.
25 साल की आदिवासी औरत कोर्रा जानकी की प्रसव के दौरान मौत हो गई थी. दूरदराज़ के उसके गांव गिडुतुरु से उसे प्रसव के लिए ‘डोली’ में ब्लॉक के मुख्य अस्पताल ले जाया जा रहा था.
रास्ते में जानकी ने अपने बच्चे को जन्म दे दिया. अस्पताल पहुंचने से पहले मां और नवजात दोनों की मौत हो गई.
उपमुख्यमंत्री श्रीवाणी ने घटना पर कड़ा रुख अपनाते हुए परियोजना अधिकारी से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा है कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों.
दरअसल, पक्की सड़कों के अभाव में आंध्र प्रदेश के कई आदिवासी (एजेंसी) इलाक़ों में पहुंचना बेहद मुश्किल है. इन गांवों और बस्तियों के निवासियों को किसी अस्पताल तक पहुंचने के लिए वाहनों की कमी के चलते डोलियों का इस्तेमाल करना पड़ता है.
ऐसा ही जानकी के साथ भी हुआ, जब उन्हें प्रसव के लिए अस्पताल ले जाया गया. अब इस घटना के बाद आदिवासी गांवों में रहने वाली सभी गर्भवती महिलाओं के बारे में जानकारी इकट्ठा करने का निर्देश दिया गया है.
उपमुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि इन महिलाओं को उनकी अपेक्षित प्रसव तिथि से पहले ही अस्पताल में शिफ़्ट किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा है कि एजेंसी इलाक़ों से गर्भवती महिलाओं को डोली में अस्पताल ले जाने की समस्या को ख़त्म करने के लिए स्थायी योजना बनाई जा रही है.
आईटीडीए के परियोजना अधिकारी आर गोपालकृष्णा ने एक अखबार को बताया कि शिशु और मातृ मृत्यु को रोकने के लिए भी क़दम उठाए जा रहे हैं. उन्होंने जांच करने के लिए अतिरिक्त डीएम और एचओ को नियुक्त किया है.
9 जुलाई को चिकित्सा अधिकारियों, 108 अधिकारियों और फीडर एम्बुलेंस ऑपरेटरों के साथ एक बैठक की जाएगी. एजेंसी इलाक़ों की गर्भवती औरतों को आवास और आईसीडीएस सेवाओं के प्रावधान पर सीपीडीओ के साथ भी एक बैठक आयोजित की जाएगी.
क्या हैं एजेंसी इलाक़े?
आईटीडीए परियोजना इलाक़ा आमतौर पर एक तहसील या ब्लॉक के आकार का होता है, जिनमें आदिवासी लोग कुल आबादी का 50 प्रतिशत या उससे ज़्यादा हिस्सा होते हैं.
आंध्र प्रदेश और ओडिशा ने सोसायटी अधिनियम के पंजीकरण के तहत एजेंसी मॉडल को चुना है, और यहां इंटिग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट को को आईटीडी एजेंसियों के रूप में जाना जाता है.
आईटीडीए का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना है. इसके लिए आय सृजन योजनाएं बनाने के अलावा आदिवासी समुदायों को शोषण से बचाने के लिए एजेंसी द्वारा विशेष क़दम उठाए जाते हैं.
जय हिंद सर अधिकतर आदिवासी समुदाय के लोग अपने अभाव के कारण उनको अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है रही बात चिकित्सा की तो उनके घरों से बहुत दूर अस्पताल होने के कारण भी लोग बीमार पड़ जाते हैं और जंगल में पानी का शुद्धीकरण भी नहीं होता अधिकतर जनजातीय लोग बरसात के दिनों में जैसे तैसे रहन सहन के कारण मलेरिया टाइफाइड जैसे अनेक रोगों से ग्रसित हो जाते हैं और इलाज के अभाव में उन लोगों की जान तक चली जाती है अतः सरकार से आग्रह करता हूं कि उन लोगों के क्षेत्र में जाकर पीने वाले पानी में चूना फिटकरी आदि चीजों का छिड़काव करें जलजमाव को रोके एक जगह पानी नहीं जमा रहने से पानी जमा रहने के कारण उसमें बैक्टीरिया जीवाणु फंगस आदि प्रकार के जीव पनपते हैं जिससे वह लोग बीमार हो जाते हैं अतः आगरा करता हूं की जनजातीय लोगों को भी इस विषय पर चर्चा करने की बात है अगर जहां पर पानी जमा हो रही है उसमें केरोसिन तेल का छिड़काव करें जिससे मच्छर नापन पर और गर्म पानी का सेवन करें इन्हीं सब बातों को मैं कह के अपनी वाणी को विराम देता हूं जय हिंद आपका दोस्त आपका बेटा
धन्यवाद
अभिषेक कुमार