HomeAdivasi Daily'द्रोपदी मूर्मु' पर सर्व सम्मति बन सकती थी - ममता बनर्जी

‘द्रोपदी मूर्मु’ पर सर्व सम्मति बन सकती थी – ममता बनर्जी

द्रोपदी मूर्मु को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद विपक्षी दलों के फ़ैसले की आलोचना भी हुई है. इस आलोचना के दो पहलू हैं. पहला यह कहा जा रहा है कि विपक्ष ने एक प्रतीकात्मक लड़ाई में बीजेपी के पूर्व नेता को चुना है. दूसरा कम से कम प्रतीकात्मक लड़ाई में आदिवासी या फिर किसी और वंचित तबके से किसी नेता को इस पद का दावेदार बनाया जा सकता था.

राष्ट्रपति पद के लिए द्रोपदी मूर्मु सर्वसम्मति की उम्मीदवार हो सकती थी बशर्ते बीजेपी ने कोशिश की होती. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेता ममता बनर्जी ने यह बात कही है.

उन्होंने कहा कि जब बीजेपी ने विपक्षी दलों से बातचीत की थी तो यह नहीं बताया था कि वो किसे उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रहे हैं. ममता बनर्जी का कहना है कि अगर बीजेपी ने कहा होता कि वो आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाने के बारे में सोच रही है तो विपक्षी दलों की बैठक में इस बारे में चर्चा की जा सकती थी.

ममता बनर्जी ने कहा कि वो हमेशा महिला सशक्तिकरण की पक्षधर रही हैं. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद तो द्रोपदी मूर्मु की जीत का चांस और भी बढ़ गया है.

ममता बनर्जी ने कहा कि राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन हो चुके हैं. इसलिए अब विपक्ष के पास यह गुंजाइश नहीं है कि वो अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करे. उन्होंने कहा कि विपक्ष की 17-18 पार्टियों ने मिल कर एक फ़ैसला लिया है. उस फ़ैसले को कोई एक नेता या पार्टी बदल नहीं सकता है.

ममता बनर्जी ने द्रोपदी मूर्मु की जीत को आसान बताया है

उन्होंने कहा कि बीजेपी का यह आरोप बेकार है कि जो द्रोपदी मूर्मु को वोट नहीं देंगे वो पार्टी आदिवासियों के ख़िलाफ़ वोट करेंगी. उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों में भी आदिवासी और दूसरे समुदायों के लोग हैं. 

द्रोपदी मूर्मु पहली आदिवासी महिला हैं जिन्हें देश के सर्वोच्च पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया है. जबकि विपक्ष की तरफ़ से पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया है.

द्रोपदी मूर्मु को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद विपक्षी दलों के फ़ैसले की आलोचना भी हुई है. इस आलोचना के दो पहलू हैं. पहला यह कहा जा रहा है कि विपक्ष ने एक प्रतीकात्मक लड़ाई में बीजेपी के पूर्व नेता को चुना है. दूसरा कम से कम प्रतीकात्मक लड़ाई में आदिवासी या फिर किसी और वंचित तबके से किसी नेता को इस पद का दावेदार बनाया जा सकता था.

विपक्ष की तरफ़ से राष्ट्रपति पद का उम्मदीवार ढूँढने और तय करने की प्रक्रिया की शुरुआत तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ही की थी.

अब यह लगभग औपचारिकता ही बची है वरना द्रोपदी मूर्मु का राष्ट्रपति बनना तो तय ही है. लेकिन इस राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर धारणा की लड़ाई (perception battle) में बाजी मार ली है. 

पश्चिम बंगाल में कई ज़िलों में आदिवासी आबादी है और चुनावी राजनीति में यह आबादी मायने रखती है. वैसे भी संताल समुदाय वहाँ का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है जिससे द्रोपदी मूर्मु आती हैं. इस लिहाज़ से ममता बनर्जी पर दबाव थोड़ा ज़्यादा है.

इसलिए वह विनम्रतापूर्वक द्रोपदी मूर्मु के बारे में बात कर रही हैं. अन्यथा ममता बनर्जी अपने तीखे बयानों और तेवरों के लिए जानी जाती हैं.  

1 COMMENT

  1. जोहार पश्चिम बंगाल उड़ीसा झारखंड बिहार और आसाम छत्तीसगढ़ और भी जितने आदिवासी राज्य है उन सारे राज्य के नेता लोग द्रोपति मुर्मू को सपोर्ट करना ही पड़ेगा क्योंकि वह एक आदिवासी महिला हैं और भारत का पहला आदिवासी राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं इसलिए उनको सपोर्ट करना ही पड़ेगा तमाम पार्टी के लोग को चाहे कोई भी हो

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