प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का उद्घाटन करेंगे. जिसका नाम बदलकर भोपाल की पहली गोंड रानी रानी कमलापति के नाम पर रखा गया है.
जनजातीय गौरव दिवस या आदिवासी गौरव दिवस पर मोदी की भोपाल यात्रा से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रानी कमलापति की बहादुरी और विरासत का सम्मान करने के उद्देश्य से नए नाम की घोषणा की है.
भोपाल के इतिहासकारों के मुताबिक नवाब शाहजहां बेगम के पोते हबीबुल्ला के नाम पर इस स्टेशन का नाम हबीबगंज पड़ा. इतिहासकार रिजवानुद्दीन अंसारी ने कहा, “उन दिनों शाही परिवारों को उनके ‘दुग खारच’ के रूप में कुछ जमीन दी जाती थी. हबीबुल्लाह को दी गई जमीन से शाहपुरा में एक गांव बसा था. जब 1874-76 में इस क्षेत्र में एक रेलवे लाइन का निर्माण किया गया तो एक छोटा स्टेशन आया. 1969 में हबीबुल्लाह के परिवार ने जमीन और स्टेशन के विकास के लिए 15 लाख रुपये दिए. इसलिए हबीबुल्ला के बाद इसे हबीबगंज स्टेशन के नाम से जाना जाने लगा. ”
पीपीपी मॉडल पर 440 करोड़ रुपये की लागत से विकसित स्टेशन का नाम बदलने का निर्णय बीजेपी द्वारा 2018 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी और अनुसूचित जाति के मतदाताओं के बीच खोई हुई पहुंच को फिर से हासिल करने के प्रयास को दर्शाता है. गोंड जिनकी संख्या 1.2 करोड़ से अधिक है वे भारत के सबसे बड़े जनजातीय समूह हैं.
वहीं सितंबर में राज्य सरकार ने आदिवासी प्रतीक शंकर शाह और रघुनाथ शाह के नाम पर छिंदवाड़ा में एक विश्वविद्यालय का नाम रखा और अब उनके लिए एक स्मारक का निर्माण कर रही है. जबकि खंडवा में टांट्या मामा का स्मारक और बड़वानी जिले में भीम नायक का स्मारक स्थापित किया गया है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार को राजा संग्राम शाह के नाम पर आदिवासी कला और संस्कृति के क्षेत्र में 5 लाख रुपये का वार्षिक पुरस्कार देने की घोषणा की.
कांग्रेस ने बीजेपी पर वोटबैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया है और सत्तारूढ़ दल को याद दिलाया है कि चौहान ने पहले खुद इस स्टेशन का नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखने की मांग की थी.
स्टेशन का नाम बदलने से दो दिन पहले भोपाल सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने गुरुवार को ट्वीट किया था, “15/11/2021 को प्रधानमंत्री का आगमन भोपाल के लिए एक अच्छा शगुन है. मुझे विश्वास है कि मोदी जी हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम वाजपेयी जी के नाम पर रखने की घोषणा करेंगे और मेरे पुराने अनुरोध को पूरा करेंगे.”
वहीं विपक्ष के नेता कमलनाथ ने कहा, “ठीक है अगर आपने गोंड रानी की याद में स्टेशन का नाम तो बदल दिया है लेकिन सीहोर में उनके महल का क्या जो खंडहर में पड़ा है?”
दरअसल शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र में स्थित रानी कमलापति की धरोहर खस्ताहाल है. कमलापति का महल उपेक्षा का दंश झेल रहा है. भोपाल से करीब 61 किलोमीटर दूर गिन्नौरगढ़ किला आज भी जर्जर हालत में है. गिन्नौरगढ़ किला गोंडों के गढ़ में था लेकिन बाद में यह भोपाल राज्य के तत्कालीन शासक दोस्त मोहम्मद के हाथों में आ गया.
निजाम शाह को उनके भतीजे चैनशाह ने धोखे से जहर देकर मार दिया था. इसके बाद उनकी विधवा रानी कमलापति और उनके बेटे नवलशाह ने गिन्नौरगढ़ किले में शरण ली और अफगान कमांडर दोस्त मुहम्मद खान से मदद मांगी.
1723 में रानी कमलापति की मृत्यु के बाद उनके बेटे नवलशाह ने किले की कमान संभाली लेकिन दोस्त मुहम्मद खान ने इस पर हमला किया और इसे अपने कब्जे में ले लिया. कहा जाता है कि यह किला समुद्र तल से 1,965 फीट की ऊंचाई पर है जिसे परमार वंश के राजाओं ने बनवाया था. बाद में यह शाह राजवंश की राजधानी बन गया.
कुछ सालों पहले इस किले को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने का नोटिफिकेशन राज्य पुरातत्व संचालनालय ने जारी कर दिया था. इस किले को राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में चिह्नित कर लिया गया था. लेकिन इसके बावजूद इस किले को संरक्षित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया था. इसे पर्यटन के लिए विकसित करने का भी प्रयास नहीं किया गया. इस किले की सुरक्षा के लिए भी अभी तक कोई खास इंतजाम नहीं किए गए हैं.
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