अल्लूरी सीताराम राजू (ASR) जिले के मुख्यालय पडेरू के आदिवासी क्षेत्र में दल्लापल्ली घाटी पर पर्यटन रिसॉर्ट बनाने का विरोध हो रहा है. आंध्र प्रदेश पर्यटन विभाग के इस प्रस्ताव के खिलाफ़ पर्यावरणविदों और गैर सरकारी संगठनों ने आवाज़ उठाई है.
दल्लापल्ली पडेरू अपने शांत वातावरण और मनोरम दृश्य के लिए मशहूर है.यह इलाका लगभग 15 किमी दूर, तत्कालीन विशाखापत्तनम के पर्यटक सर्किट मैप पर रहा है. 2015 में इस जगह को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव दिया गया था. लेकिन अगस्त 2017 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में मामला दायर होने के बाद इस प्रस्ताव को रोक दिया गया था.
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में बुधवार को दर्ज एक शिकायत में जाने माने पर्यावरणविद् और पूर्व आईएएस अधिकारी ईएएस सरमा ने कहा कि राज्य सरकार स्थानीय आदिवासी बस्तियों की ग्राम सभाओं की अनिवार्य सहमति के बिना दल्लापल्ली क्षेत्र में पर्यटन रिसॉर्ट के निर्माण को पुनर्जीवित करने की योजना बना रही है.
उन्होंने कहा कि दल्लापल्ली पांचवीं अनुसूची के तहत अधिसूचित क्षेत्र का एक हिस्सा है. जहां पेसा (अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पंचायत विस्तार अधिनियम) और एफआरए (वन अधिकार अधिनियम) दोनों कानून लागू हैं. स्थानीय ग्राम सभा योजनाओं पर निर्णय लेने के लिए सशक्त हैं. इस तरह की परियोजनाएं और अन्य आर्थिक गतिविधियां उनके जीवन को प्रभावित कर सकती हैं.
सरमा ने कहा कि सरकार द्वारा ग्राम सभाओं के साथ पूर्व बातचीत के बिना लिया गया कोई भी निर्णय प्रथम दृष्टया अवैध होगा. उन्होंने कहा कि विचाराधीन पर्यटन गतिविधि अवैध मानी जाएगी क्योंकि पेसा के तहत ग्रामसभा की मंजूरी जरूरी है.
सरमा का कहना है, “पिछले कुछ वर्षों में राज्य पर्यटन विभाग द्वारा दल्लापल्ली घाटी को बढ़ावा देने के कारण उस क्षेत्र में पर्यटकों की लगातार वृद्धि हुई है. अधिकारियों द्वारा निगरानी और नियंत्रण न होने के कारण पर्यटकों ने क्षेत्र में शराब का सेवन और प्लास्टिक की बोतलें फेंक कर क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया है. स्थानीय संस्कृति पर आक्रमण करने वाले इस तरह के पर्यटन ने आदिवासियों के सुखद माहौल को बर्बाद कर दिया है.”
उन्होंने कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों में प्राकृतिक माहौल के व्यावसायीकरण से हरे-भरे जंगलों का विनाश होगा और आदिवासियों की आजीविका पर भी प्रभाव पड़ेगा.
धात्री नाम के संगठन की भानुमति कल्लूरी ने कहा कि स्थानीय आदिवासी लोगों ने दल्लापल्ली को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के पर्यटन विभाग की कोशिशों का कड़ा विरोध किया और 2017 में रैलियां भी निकाली थी.
कल्लूरी ने कहा, “पर्यटन विभाग का कहना है कि वो इस क्षेत्र में सिर्फ इको-टूरिज्म विकसित कर रहा है. लेकिन इस संबंध में उसकी कोई नीति नहीं है. पर्यटकों के लिए कोई दिशा निर्देश नहीं हैं और कोई अपशिष्ट प्रबंधन प्रयास नहीं हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि विभाग ने आदिवासियों से कोई सहमति नहीं ली है.”
उन्होंने कहा कि इन आदिवासी बस्तियों के निवासी विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) खोंड हैं. जो राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पर्यटकों से संक्रमण के ख़तरे का सामना कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, “पर्यटक इन आदिवासियों की कृषि भूमि को रौंद रहे हैं जो अपनी कृषि भूमि पर खेती करने में असमर्थ हैं.”
उन्होंने आरोप लगाया कि दल्लापल्ली के आसपास के गांवों को कमर्शियल हित समूहों द्वारा बेनामी लेनदेन के माध्यम से पर्यटन रिसॉर्ट्स के लिए अपनी जमीन बेचने के लिए लगातार दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
वहीं ईएएस सरमा ने एनसीएसटी से हस्तक्षेप करने और राज्य सरकार को इस पर्यटन गतिविधि पर पूरी तरह से रोक लगाने और पेसा के प्रावधानों को लागू करने की सलाह देने की अपील की है.
जोहार आदिवासियों इलाका में रिसोर्ट बनाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा आदिवासी समुदाय को जल और जंगल जमीन से बेदखल किया जाए और उनका विस्थापित किया जाए यह मानसा केंद्र सरकार और राज्य सरकार का रहता है आखिर पूरा भारत में आदिवासियों का हक और अधिकार पर ही क्यों हमला होते रहता है यह समस्त आदिवासी संगठन और बुद्धिजीवी और जो मंत्री विधायक आदिवासी रिजर्व सीट से जीत कर जाते हैं उन सारे माननीय लोगों को सूचना और विचार करना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं जो पूरा आदिवासी समुदाय को किसी ना किसी बाना से विस्थापित करने का काम जारी रहेगा और 1 दिन भारत देश में आदिवासियों को देखने तो क्या सुनने तक के लिए भी नहीं मिलेगा कि आदिवासी प्रदेश में है भी या नहीं यह सोचने वाले विचार हैं