HomeAdivasi Dailyओडिशा में पहले चरण के चुनाव में आदिवासियों का दबदबा

ओडिशा में पहले चरण के चुनाव में आदिवासियों का दबदबा

रायगड़ा में आदिवासी मतदाता एक प्रमुख ताकत हैं. अधिकांश आबादी डोंगरिया, झोडिया, परजा, कोंध, परजा, लांजिया और सौरा हैं. नियमगिरि पहाड़ियों में 7,098 डोंगरिया रहते हैं, जिन्हें बिस्सम कटक विधानसभा सीट में निर्णायक कारक माना जाता है.

ओडिशा में 2024 के चुनावों (Odisha Election 2024) का पहला चरण 13 मई को होने वाला है. राज्य में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं.

आदिवासी बहुल नबरंगपुर, कोरापुट, रायगड़ा और मलकानगिरी जिलों में तीन प्रमुख पार्टियों भारतीय जनता पार्टी (BJD), बीजू जनता दल (BJD) और कांग्रेस (Congress) के चुनावी भाग्य की चाबी आदिवासियों के पास है.

रिपोर्ट के मुताबिक, चार विधानसभा क्षेत्रों वाले नबरंगपुर में 8 लाख 52 हज़ार 524 मतदाता हैं. इनमें से 6 लाख मतदाता आदिवासी हैं. करीब 50 प्रतिशत आदिवासी भतरा समुदाय से हैं.

इसके अलावा कोरापुट में भी मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा भतरा समुदाय का है और उनकी संख्या 7 लाख है. अपनी प्रभावी आबादी को देखते हुए यह आदिवासी समुदाय पार्टियों और उनके नेताओं के भाग्य का फैसला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

आदिवासी नाखुश

कहा जा रहा है कि आदिवासी केंद्र सरकार के पेसा एक्ट, 1996 (PESA) के कार्यान्वयन के प्रति राज्य सरकार की उदासीनता से नाखुश हैं.

का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों के विभिन्न स्तरों पर ग्राम सभाओं और पंचायतों को लघु खनिजों, लघु जल निकायों, प्रथागत संसाधनों, लघु वन उपज, लाभार्थियों के चयन और परियोजना मंजूरी जैसे मुद्दों के लिए स्व-शासन प्रणाली लागू करने की अनुमति देना है.

अविभाजित कोरापुट जिला परजा समाज के अध्यक्ष हरिश्चंद्र मुदुली ने कहा कि विशेष विकास परिषद केवल नाम के लिए है. बोंडा, सौरास और परजा के लिए कोई विकास परियोजना नहीं चलाई जा रही है.

वहीं कुछ अनसुलझे मुद्दों पर नाराजगी व्यक्त करते हुए अखिल भारतीय भतरा परिषद, नबरंगपुर के जिला अध्यक्ष अर्जुन भातरा ने कहा कि हमने अलग-अलग समय पर मुद्दों और मांगों को उठाया है लेकिन उनका समाधान नहीं किया गया है. आदिवासियों को व्यवसाय और आवास के लिए लोन नहीं दिया जाता है.

आदिवासी अब जागरूक हैं

आदिवासी नेता रवीन्द्र माधी ने कहा कि आदिवासी अधिक जागरूक हो गए हैं. वे राजनीतिक दलों की ओर नहीं देख रहे हैं. लेकिन वे योग्य उम्मीदवार को वोट देंगे.

रायगढ़ा में आदिवासी मतदाता एक प्रमुख ताकत हैं. अधिकांश आबादी डोंगरिया, झोडिया, परजा, कोंध, परजा, लांजिया और सौरा हैं. नियमगिरि पहाड़ियों में 7,098 डोंगरिया रहते हैं, जिन्हें बिस्सम कटक विधानसभा सीट में निर्णायक कारक माना जाता है.

मल्कानगिरि अपनी आदिम जनजाति बोंडा पर गढ़ है, जो मतदाताओं का प्रमुख हिस्सा हैं. बोंडा के अलावा इस जिले में दिदाई, भूमिया, परजा, कोंध और दुरुआ जैसे अन्य आदिवासी समुदायों हैं, जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

चित्रकोंडा विधानसभा सीट में 2 लाख 4 हज़ार मतदाता हैं और उनमें से 50 हज़ार मतदाता भूमिया और 40 हज़ार मतदाता परजा हैं. यहां 50 फीसदी से ज्यादा मतदाता आदिवासी हैं.

आदिवासी अब जागरूक हैं

आदिवासी नेता रवीन्द्र माधी ने कहा कि आदिवासी अधिक जागरूक हो गए हैं. वे राजनीतिक दलों की ओर नहीं देख रहे हैं. लेकिन वे योग्य उम्मीदवार को वोट देंगे.

रायगड़ा में आदिवासी मतदाता एक प्रमुख ताकत हैं. अधिकांश आबादी डोंगरिया, झोडिया, परजा, कोंध, लांजिया और सौरा हैं. नियमगिरि पहाड़ियों में 7,098 डोंगरिया रहते हैं, जिन्हें बिस्सम कटक विधानसभा सीट में निर्णायक कारक माना जाता है.

एक आदिवासी नेता जालंधर पुसिका ने भी कहा कि आदिवासी जागरूक हैं. वे किसी विशेष पार्टी को वोट नहीं देंगे. वे गांव और समुदाय प्रमुखों के निर्देशों के मुताबिक वोट करेंगे.

हालांकि, बीजेपी, बीजेडी और कांग्रेस के नेता अपनी जीत को लेकर आशान्वित हैं.

कांग्रेस नेता ताराप्रसाद बाहिनीपति ने कहा कि सभी आदिवासी और ईसाई मतदाता कांग्रेस के साथ हैं क्योंकि बीजद और भाजपा ने उनके लिए कुछ नहीं किया है.

वहीं बीजद नेता रबी नंदा ने दावा किया, “बीजद शासन के पिछले 25 वर्षों में आदिवासियों का वास्तविक विकास संभव हुआ है. हमने वह दयनीय स्थिति देखी है जिसमें काशीपुर के आदिवासी 2000 से पहले रहते थे.”

बीजेपी नेता बलभद्र माझी ने कहा, “बीजद सरकार सुस्त हो गई है और आदिवासियों के लिए कोई काम नहीं कर रही है, जो सरकार बदलने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे.”

साप्ताहिक हाटोंमें प्रचार कर रहे राजनेता

इसके अलावा पार्टियों के राजनेताओं ने ओडिशा की कोरापुट और नबरंगपुर लोकसभा सीटों पर लोगों तक पहुंचने के लिए साप्ताहिक ‘हाट’ का सहारा लिया है.

कोरापुट लोकसभा सीट से बीजेडी उम्मीदवार कौशल्या हिकाका ने कहा, “इस तरह के आदिवासी क्षेत्रों में हम सिर्फ हाई-टेक प्रचार तरीकों पर निर्भर नहीं रह सकते क्योंकि कई लोग गरीब और अशिक्षित या थोड़ा-बहुत पढ़े-लिखे हैं और उनके पास स्मार्टफोन या टेलीविजन तक सीमित पहुंच है.”

उन्होंने कहा, “इसके अलावा आदिवासी गांव एक-दूसरे से काफी दूरी पर स्थित हैं लेकिन लोग साप्ताहिक ‘हाट’ में जुटते हैं, जहां प्रचार करना आसान हो जाता है.”

वहीं निवर्तमान सांसद और कोरापुट के कांग्रेस उम्मीदवार सप्तगिरी उलाका ने पार्टी के लक्ष्मीपुर विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार पबित्रा सौंटा के साथ काकिरीगुमा साप्ताहिक ‘हाट’ में प्रचार किया.

उलाका ने कहा, “साप्ताहिक बाजार विभिन्न स्थानों से बड़ी संख्या में लोगों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं, जिससे समय और धन दोनों की बचत होती है.”

‘हाट’ हर हफ्ते विशेष दिनों में निश्चित स्थानों पर आयोजित किए जाते हैं और स्थानीय निवासियों की आवश्यक जरूरतों को पूरा करते हैं. इसके अलावा आदिवासी समुदायों के भीतर सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों के लिए महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में भी काम करते हैं. ये बाज़ार अब राजनीतिक चर्चा का केंद्र बिंदु बन गए हैं.

इन ‘हाटों’ में राजनीतिक नेताओं की अचानक आमद ने भी माहौल को बदल दिया है क्योंकि व्यापार और सामाजिक संपर्क की दिनचर्या के आदी ग्रामीणों को अब राजनीतिक रूप से चार्ज किए गए माहौल का सामना करना पड़ रहा है.

रिपोर्टों के मुताबिक, कोरापुट, रायगड़ा, नबरंगपुर और मलकानगिरी जिलों में लगभग 200 बड़े और छोटे ‘हाट’ हैं.

ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा के लिए कुल चार चरणों में चुनाव होंगे. पहले चरण के लिए 13 मई को मतदान होगा तो वहीं दूसरे चरण के लिए 20 मई को मतदान होगा. तीसरे चरण के लिए 25 और चौथे चरण के लिए 1 जून को मतदान होगा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments