छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले में तंवर समुदाय खुद को राजपूत मानता है. इस समुदाय के लोग ‘ठाकुर साहब’ का संबोधन पसंद करते हैं. लेकिन क़ानूनी तौर पर इस समुदाय को आदिवासी समुदाय में गिना जाता है.
इस पहेली से हमारा सामना हुआ जब हम छत्तीसगढ़ के कवर आदिवासियों से मिलने के सिलसिले में लाफ़ा नाम के गांव में पहुंचे. इस गांव में हमें पता चला कि इस गांव में कवर आदिवासी समुदाय के अलावा गोंड और तंवर आदिवासी भी रहते हैं.
इस सिलसिले में और बात हुई तो गांव के लोगों ने बताया कि वैसे तो तंवर राजपूत हैं. लेकिन यहां पर उनको आदिवासी गिना जाता है. इसके बाद तंवर समुदाय के कुछ लोगों से मुलाक़ात हुई. इन लोगों ने दावा किया कि वो दिल्ली और आस-पास के इलाके में रहने वाले तंवर राजपूतों के ही वंशज हैं.
उनका दावा था कि वो मुगल काल में बार बार के आक्रमणों से तंग आ कर यहां आ बसे थे.
अगले दिन हमारी मुलाक़ात यहां के ज़मींदार परिवार से हुई. इस परिवार का एक समय में यहां क्या जलवा रहा होगा, उनके महल के खंडहर बता रहे थे.
इसके बाद जो कहानी सामने आई वो बेहद दिलचस्प कहानी थी. दरअसल यह एक और मामला था जब किसी शोषित समुदाय के संपन्न लोगों ने शोषण करने वाले समाज में सम्मान तलाश करने के लिए अपने समाज से खुद को दूर कर लिया.