HomeAdivasi Dailyकर्नाटक में आदिवासी-दलित विकास का फंड अन्य कामों पर ख़र्च - रिपोर्ट

कर्नाटक में आदिवासी-दलित विकास का फंड अन्य कामों पर ख़र्च – रिपोर्ट

कर्नाटक विधानसभा मेंं पिछले हफ्ते अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के संदर्भ में एक रिपोर्ट पेश की गई. रिपोर्ट में कर्नाटक के आदिवासी और दलित समुदायों की स्थिति के बारे में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.

कर्नाटक विधान सभा (Karnataka assembly) में पिछले हफ्ते अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति (Schedule caste and schedule tribe) के संदर्भ में एक रिपोर्ट पेश की गई. इस कमेटी के अध्यक्ष कांग्रेस विधायक पीएम नरेंद्र स्वामी (Congress MLA P M Narendra Swamy) हैं.

इस रिपोर्ट में कर्नाटक के आदिवासी और दलित समुदायों की स्थिति के बारे में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन सालों से ग्रामीण विकास और पंचायत राज विभाग में मौजूद 5,000 करोड़ रुपयों का अभी तक कहीं भी इस्तेमाल नहीं हुआ है.

दूसरी तरफ कई आदिवासी और दलित इलाके बिजली और सड़क जैसी सुविधाओं से वंचित है.

रिपोर्ट में ये बताया गया है कि 2013 के बाद से ही सरकार ये दावा करती आई है की वो हर साल 2.5 लाख करोड़ रुपये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याणकारी कार्यो के लिए देती है.

दरअसल कांग्रेस सरकार द्वारा एससीएसपी-टीएसपी एक्ट (SCSP -TSP) पारित किया गया था. जिसे कर्नाटक शेड्यूल कास्ट सब पलान और ट्राइबल सब प्लान [प्लानिंग, ऐलोकेशन एंड यूटिलाइजेशन ऑफ फिनांसियल रिसोर्स (planning, Allocation And utilization of financial resources)] एक्ट कहा जाता है.

इसके अनुसार हर साल आदिवासी और अनुसूचित जाति की जनसंख्या के हिसाब से बजट में अलग से धनराशि आवंटित करने का प्रावधान है. इस धनराशि का उपयोग आदिवासी और दलित इलाकों में विकास कार्यो के लिए होता है.

लेकिन प्रशासन ने इस कानून को नज़रअंदाज़ किया है. यह रिपोर्ट ऐसा खुलासा करती है जिससे पता चलता है कि प्रशासन ने आदिवासियों के विकास के लिए तय पैसा अन्य योजनाओं पर ख़र्च कर दिया.   

रिपोर्ट बताती है कि आदिवासी और दलितों के लिए अलग बजट का प्रावधान करने वाले एक्ट के खंड 7 (डी) (डीम्ड एक्सपेंडिचर) इसकी सबसे बड़ी ख़ामी बन गई है.

इस खंड के प्रावधानों की वजह से राज्य में दलित, आदिवासी और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के सशक्तिकरण के लिए कार्य नहीं हो पाते.

रिपोर्ट के मुताबिक सरकार डीम्ड एक्सपेंडिचर के बहाने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए बजट में आरक्षित राशि को सड़क और बिजली के बुनियादी ढांचों के निर्माण में इस्तेमाल करती है.

इसीं संदर्भ में एक आईएएस ऑफिसर ने बताया की 7(डी) खंड गैर विभाजित इंफ्रास्ट्रक्चर पर तो लागू होता है, लेकिन जब सिंचाई नहरों, जलाशयों, अदालत, अस्पताल की बात आती है तो विभाजन में दिक्कत आती है.

क्योंकि इस तरह की सुविधाओं के बनने के बाद इनका कितने आदिवासी या अनुसूचित जाति द्वारा उपयोग किया जाएगा, इसके बारे में कुछ सपष्टीकरण मौजूद नहीं है.  

फलस्वरूप राज्य के कई आदिवासी और दलित इलाकें बिना बिजली, यहां तक की साफ पेयजल और सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित रहे जाते है.

इस रिपोर्ट में यह भी पता चलता है कि जल जीवन मिशन और कई अन्य बहुचर्चित योजनाओं के लिए भी आदिवासी और दलित समुदायों का बजट इस्तेमाल कर लिया जाता है.

जबकि जल जीवन मिशन के लिए पहले से ही बजट में अलग से फंड रखा जाता है. आदिवासी इलाकों के विकास कार्य फंड की इस गड़बड़ी से प्रभावित हो रहे है.

क्योंकि आरक्षित राशि होने के बावजूद भी ये दोनों ही समाज आज भी कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित है.

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