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महाराष्ट्र में लगभग 20 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित, आदिवासी इलाक़ों में हाल सबसे बुरा: ICDS

कुपोषित बच्चों के मामले में, नंदुरबार, जो एक आदिवासी बहुल इलाक़ा है, में 48.26 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट और 15.12% गंभीर रूप से अंडरवेट हैं, जबकि सांगली में 7.80% अंडरवेट और 1.45% गंभीर रूप से कम वज़न वाले बच्चे हैं. कुपोषित बच्चों के मामले में नंदुरबार के बाद पालघर और यवतमाल का नंबर आता है.

एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) के मुताबिक़ महाराष्ट्र में लगभग 15.88% कम वज़न (underweight) वाले बच्चे और 4.05% गंभीर रूप से कम वज़न (severely underweight) वाले बच्चे हैं, जिसमें भी आदिवासियों के बीच ऐसे बच्चों की संख्या सबसे ज़्यादा है.

जून 2020 की आईसीडीएस रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में शून्य से छह आयु वर्ग के लगभग 7.858 मिलियन बच्चे हैं, जिनमें से 5.11 मिलियन ग्रामीण इलाक़ों में हैं, 1.08 मिलियन आदिवासी इलाक़ों से हैं; और शहरों में 1.655 मिलियन बच्चे हैं. इनमें से छह साल से कम उम्र के 15.88% बच्चे अंडरवेट हैं और 4.05% गंभीर रूप से अंडरवेट हैं.

कुपोषित बच्चों के मामले में, नंदुरबार, जो एक आदिवासी बहुल इलाक़ा है, में 48.26 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट और 15.12% गंभीर रूप से अंडरवेट हैं, जबकि सांगली में 7.80% अंडरवेट और 1.45% गंभीर रूप से कम वज़न वाले बच्चे हैं. कुपोषित बच्चों के मामले में नंदुरबार के बाद पालघर और यवतमाल का नंबर आता है.

अंडरवेट और गंभीर रूप से अंडरवेट बच्चों के मामले में राज्य के सबसे ख़राब ज़िलों में नंदुरबार, पालघर, यवतमाल, गोंदिया, गढ़चिरौली, नांदेड़, परभणी, अमरावती, वर्धा, रत्नागिरी, औरंगाबाद, नासिक, सतारा, जालना और मुंबई उपनगरीय इलाक़े हैं. मुंबई में लगभग 5.25% गंभीर रूप से अंडरवेट और 15.64% अंडरवेट बच्चे हैं.

पुणे ज़िले में लगभग 7.53% अंडरवेट बच्चे हैं और 1.94% गंभीर रूप से अंडरवेट बच्चे हैं. आंकड़ों के हिसाब से उस्मानाबाद और सांगली में राज्य में सबसे स्वस्थ बच्चे हैं.

पिछले एक सप्ताह में शहरी और ग्रामीण प्रशासन दोनों के साथ समीक्षा बैठक करने वाले आईसीडीएस आयुक्त रुबल अग्रवाल ने मीडिया को बताया, “हमने प्रशासन से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि हर बच्चे के स्वास्थ्य की सूचना इकट्ठा की जाए. स्थानीय प्रशासन और केंद्रीय टीम द्वारा बताई गई संख्या में बड़ा अंतर है, इसलिए ज़िला प्रशासन से कार्रवाई में तेज़ी लाने और यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि कोई भी बच्चा कुपोषित न रहे.”

महाराष्ट्र में कुपोषण से होने वाली मौतों पर पहले से ही मुंबई हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है. राज्य सरकार को कोर्ट से कई बार फटकार भी लग चुकी है.

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