आंध्र-ओडिशा सीमा (AOB) पर स्थित कोटिया आदिवासी गांव अनिश्चितता और तनाव में डूबे हुए हैं. दोनों आंध्र प्रदेश और ओडिशा के बीच अंतर-राज्य सीमा पर कुछ जगहों पर अधिकार क्षेत्र को लेकर पर विवाद जारी है, और इस वजह से यह आदिवासी गांवों का भविष्य अधर में लटका हुआ है.
वैसे तो यह विवाद कई दशक पुराना है, हाल के दिनों में ताज़ा विवाद तब खड़ा हो गया है जब ज़्यादातर गांवों ने आंध्र प्रदेश में शामिल होन की इच्छा जताई, और इसके लिए विजयनगरम के कलेक्टर को एक ज्ञापन भी सौंपा.
छह पंचायतों, गंजईभद्रा, सारिका, तोनम, कुरुकुट्टी, पगुलु चेन्नुरु, और पट्टुचेनुरु ने आंध्र प्रदेश के प्रशासनिक नियंत्रण में रहने के अपने इरादे को जताते हुए प्रस्ताव पारित किए हैं. जनप्रतिनिधियों समेत 500 से ज़्यादा लोगों ने विजयनगरम कलेक्ट्रेट का दौरा कर, वहां मौजूद अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने के लिए क़दम उठाने को कहा कि उनकी बस्तियों को आंध्र प्रदेश के स्थायी नियंत्रण में लाया जाए.
इन गांववालों के इस क़दम ने पड़ोसी राज्य ओडिशा के अधिकारियों को नाराज़ कर दिया. अब वो ओडिशा राज्य सरकार द्वारा दी जा रही लाभों और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताकर ग्रामीणों को राज्य का हिस्सा बनने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं.
दरअसल, 1960 के दशक की शुरुआत से ही ओडिशा और आंध्र प्रदेश के बीच इस इलाक़े पर नियंत्रण को लेकर क़ानूनी लड़ाई चल रही है.
कोटिया ग्राम पंचायत में 28 गांव हैं, और 1936 में इसके गठन के दौरान ओडिशा ने गलती से 21 गांवों का सर्वेक्षण नहीं किया. 1955 में आंध्र प्रदेश के निर्माण के समय, उन 21 गांवों का आंध्र प्रदेश ने भी सर्वेक्षण नहीं किया था, और इस वजह से यह सीमावर्ती गांव विवाद में फंस गए.
यह गांव आधिकारिक तौर पर ओडिशा के कोरापुट ज़िले का हिस्सा हैं. लेकिन अब विजयनगरम ज़िला प्रशासन ने कोटिया गांवों में रहने वाले लगभग 5,000 लोगों को लुभाने की अपनी कोशिशें तेज़ कर दी हैं. उनका कहना है कि यह गांव विजयनगरम ज़िले के सलुरु विधानसभा क्षेत्र के तहत आते हैं.
गंजईभद्रा के उप-सरपंच गेम्मिली बीसू ने मीडिया को बताया कि आंध्र प्रदेश के विजयनगरम ज़िले का हिस्सा बनने के गांववालों के फैसले के बाद ओडिशा के अधिकारियों द्वारा स्थानीय लोगों को ‘परेशान’ किया जा रहा है. इस पर विजयनगरम के अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया है कि लोगों को परेशान होने से बचाने के लिए एक पुलिस चौकी स्थापित की जाएगी.
1920 के दशक में कोटिया गांवों को लेकर जब विवाद खड़ा हुआ था, तब ब्रिटिश सरकार ने इसका समाधान निकालने की कोशिश की थी. अधिकारियों के अनुसार तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी ने स्पष्ट आदेश देते हुए कहा था कि कोटिया गांव सलुरु ज़मींदारों के अधिकार क्षेत्र में आएंगे.
यह आरोप लगाया गया है कि तत्कालीन ओडिशा शासकों और बाद में ओडिशा सरकार ने पिछले आदेशों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. यह आरोप भी लगाया गया है कि पड़ोसी राज्य आज भी उन गांवों पर अपने अधिकार क्षेत्र का दावा कर रहे हैं क्योंकि यह गांव खनिज संपदा में समृद्ध हैं.
इलाक़े के राजनेताओं ने आंध्र प्रदेश सरकार से इस मुद्दे को अदालत में ले जान का अनुरोध किया है, ताकि इसका कोई स्थायी समाधान निकाला जा सके. इससे पहले मद्रास प्रेसीडेंसी के लगभग सभी पिछले आदेश और अदालत के फैसले आंध्र प्रदेश सरकार के पक्ष में ही थे.