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लोकसभा चुनाव के साथ होंगे अरूणाचल प्रदेश के विधान सभा चुनाव, जानिए राज्य की ख़ास बातें

लोकसभा चुनाव 2024 के साथ-साथ उत्तर-पूर्व के राज्य अरुणाचल प्रदेश के विधान सभा चुनाव भी होगा. आईए देखते हैं इस राज्य की ख़ास बातें क्या हैं.

इस साल के चुनाव में सभी पूर्वोत्तर राज्यों में से अरूणाचल प्रदेश (Tribes of Arunachal Pradesh) विशेष है. क्योंकि राज्य में सिर्फ लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Shaba Election) ही नहीं बल्कि विधानसभा चुनाव (Arunachal Pradesh Assembly election 2024) की तैयारी भी की जा रही है.

ऐसे कयास लगाए जा रहे है की राज्य में अप्रैल 2024 से पहले विधानसभा चुनाव हो जाएंगे.

हालांकि अभी तक लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव की कोई पक्की तारीख घोषित नहीं की गई है.

मौजूदा वक्त में सत्ताधारी बीजेपी का वर्चस्व यहां अधिक है. बीजेपी के अलावा यहां कई पार्टियां है, जिन्होंने पिछले विधानचुनाव में 60 सीटों पर अपना नाम दर्ज किया है.

इनमें कांग्रेस, जनता दल, एनडीपी, इंडिपेंडेंट और पीपुल्स पार्टी ऑफ अरूणाचल शामिल हैं.

पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजें कुछ इस प्रकार है:-

पिछले विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों के मुकाबले बीजेपी के खाते में सबसे ज्यादा सीटे दर्ज हुई है.

ऐसा भी देखा गया है की राज्य में चाहे कोई सी पार्टी जीते वह केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी के साथ सरकार बनाती है.

यहीं कारण है की यहां पर दलबदल जैसे मुद्दे पार्टियों के बीच देखने को मिले हैं.

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राज्य के दिग्गज नेता

किरेन रिजिजू (Kiran rijiju) राज्य के प्रमुख नेताओं में से एक है. फिलहाल यह बीजेपी के सदस्य हैं और वर्तमान में देश के पृथ्वी विज्ञान के कैबिनेट मंत्री है.

इन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2004 से की थी. 2014 से 2019 तक इन्होंने गृह राज्य मंत्री सहित कई बड़े मंत्री पद पर काम किया है.

पेमा खांडू (Pema Khandu) 37 की उम्र में मुख्यमंत्री बनने वाले सबसे युवा नेताओ मे से एक है.

वर्तमान में ये राज्य के मुख्यमंत्री हैं.अपने पिता के मृत्यु के बाद इन्होंने जल संसाधन विकास और पर्यटन मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था.

2011 में अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र मुक्तो से इन्होंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. उस समय वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप खड़े हुए थे.

इन्होंने 37 वर्ष में 17 जुलाई 2016 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. 16 सितम्बर 2016 को पेमा खांडू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का साथ छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल की सदस्यता ली और भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाई.

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इनके अलावा राज्य की राजनीति में कुछ बड़े नाम ये हैं –

तुकम बागरा – बीजेपी

तापिर गाओ – बीजेपी

पुंजी मारा – पीपुल्स पार्टी ऑफ़ अरुणाचल

पेमा खांडू – बीजेपी

पसांग दोरजी सोना – पीपुल्स पार्टी ऑफ़ अरुणाचल

नबम तुकी – कांग्रेस

कुसमी सिदिसोव – बीजेपी

इरिंग निनोंग

अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य

अरूणाचल प्रदेश का क्षेत्रफल 83,743 Sq. Km. है और यह सभी पूर्वोत्तर राज्यों में क्षेत्रफल में सबसे बड़ा है.

लेकिन जनसंख्या के मामले में यह देश में सबसे आखिरी स्थान पर है. 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की जनसंख्या करीब 14 लाख है. यहां की कुल जनसंख्या का 65 प्रतिशत आदिवासी है.

यहां ज़्यादातर जनसंख्या घाटी क्षेत्रों मे रहती है. इसलिए देश में यहां प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या सबसे कम है.

क्यों है आदिवासी बहुल राज्य महत्वपूर्ण

राज्य की भगौलिक स्थिति के कारण सुरक्षा हेतु यह देश के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

यह राज्य तीन देश और दो राज्यों के साथ अपनी सीमा बांटता है. पश्चिम में भूटान, उत्तर में चीन और तिब्बत, दक्षिण-पूर्वी में म्यांमार के साथ सीमा बांटता है.

वहीं दक्षिण-पूर्वी में नागालैंड और दक्षिण-पश्चिम में असम राज्यों के साथ सीमा बांटता है.एक ज़ामने में यह राज्य केंद्रशासित प्रदेश हुआ करता था.

फिर साल 1986 में 55 संशोधन के अंतर्गत असम से अलग करके अरूणाचल प्रदेश देश का 24 वां राज्य बन गया.

यहां पर मौजूद पहाड़, झरने और प्राकृतिक सौंदर्य किसी का भी मन मोह लेते है.

इन्हीं मनमोहक जंगलों में बसे है, “यहां के आदिवासी”

आदिवासी और उनके मुद्दे

2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की जनंस्ख्या का 65 प्रतिशत आदिवासी है. इन 65 प्रतिशत आदिवासियों में 26 प्रमुख जनजातियां और 110 उप जनजातियां है.

राज्य में ऐसी भी कई जनजातियां है, जिन्हें पहचाना नहीं गया है. इन प्रमुख जनजातियों में आदि, निशि, अपतानी, तागीन, मिशमी, खम्पटी नोक्टे, वांचो, तांगशांग, सिंगफो, मोनपा,शेरडु-केपेन और अका इत्यादि शामिल है.

निशि आदिवासी आबादी के मामले सबसे बड़े जनजाति हैं.

आदिवासी मुद्दे

चकमा और हाजोंग आदिवासी राज्य के छोटे जनजाति समूह है. 2023 की शुरूआत में इन आदिवासियो ने अपनी मांग के समर्थन में प्रदर्शन किया था. उनकी यह मांग थी कि उनके नाम से शरणार्थीयो का टैग हटा दिया जाए.

जब बांगलादेश पूर्वी द पाकिस्तान हुआ करता था. उस समय यह आदिवासी शणार्थीयों के रूप में भारत आए थे.

इन आदिवासियों का आरोप है की राज्य में इनके साथ भेदभाव होता आया है.

इसके साथ ही यहां के आदिवासी नेता इनकी मांग को नज़रअंदाज कर देते है. क्योंकि वे राज्य के बड़े आदिवासियों को नराज़ नहीं करना चाहते.

स्वायत्त परिषद की मांग

तिराप, चांगलांग और लोंगडिंग (टीसीएल) ज़िलों की 2004 से मांग है की इन्हें स्वायत्त परिषद बना दिया जाए.

स्वायत्त परिषद के अंतर्गत आने वाले ज़िलों को छठवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है. छठवीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाले ज़िलों को अपने कानून या कस्टमरी लॉ के अनुसार ज़िले में होने वाले विभिन्न कार्यों के लिए परिचालन की अनुमति होती है.

लेकिन कई बार केंद्र सरकार अनुसूचि छ: के अंतर्गत आने वाले अधिकारों का झांसा देकर आदिवासियों को कानूनी तकनीकियों में उलझाये रखती हैं.

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