HomeAdivasi Dailyडोली उठती है तो आदिवासियों को मौत का डर सताता है

डोली उठती है तो आदिवासियों को मौत का डर सताता है

अतियूर ग्राम पंचायत के सरकारी मिडिल स्कूल से एक टेंपररी उप-स्वास्थ्य केंद्र चलाया जा रहा है, लेकिन इसमें न तो कर्मचारी हैं और न ही दवाएँ. एक ग्राम स्वास्थ्य नर्स (Village Health Nurse - वीएचएन) यहां हफ़्ते में एक बार आती है.

तमिल नाडु में गंभीर रूप से बीमार 31 साल की एक आदिवासी महिला को इलाज के लिए कुरुमलई पहाड़ी पर अतियूर ग्राम पंचायत के आदिवासी गांव वेल्लकल से एक कपड़े की डोली में डालकर तलहटी तक ले जाया गया. पहाड़ी पर बसे आदिवासी गांवों में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी के चलते उसके गांव से लगभग 15 किमी दूर उसूर गांव के एक निजी अस्पताल में उसका इलाज किया गया.

यह कोई एक बार की घटना नहीं है. आदिवासी गांवों के निवासियों के लिए यह आम बात है. स्वास्थ्य सेवाओं ततक पहुंच की कमी उन्हें इस तरह के जोखिम उठाने  को अकसर मजबूर करती है.

वेल्लकल निवासी एल सौंदर्या पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं. सोमवार को जब उसकी हालत बिगड़ी तो गांववालों ने उसे एक अस्थायी कपड़े के स्ट्रेचर में डाला और उसे उसूर ले गए. उनके गांव में स्वास्थ्य केंद्र की कमी के अलावा, वहां तक पक्की सड़कें भी नहीं जातीं. ऐसे में इन आदिवासी गांवों में एम्बुलेंस नहीं पहुंच सकती.

अतियूर ग्राम पंचायत के सरकारी मिडिल स्कूल से एक टेंपररी उप-स्वास्थ्य केंद्र चलाया जा रहा है, लेकिन इसमें न तो कर्मचारी हैं और न ही दवाएँ. एक ग्राम स्वास्थ्य नर्स (Village Health Nurse – वीएचएन) यहां हफ़्ते में एक बार आती है.

यह उप-स्वास्थ्य केंद्र कुरुमलई बस्ती में चलता है, जो अतियूर ग्राम पंचायत के तहत आने वाली चार आदिवासी बस्तियों में से एक है. पहाड़ी पर स्थित दूसरी बस्तियों – वेल्लकल, नचिमेडु और पल्लकोलाई – को मिलाकर कुल आबादी लगभग 900 है. कुरुमलई तलहटी से 4 किमी की दूरी पर स्थित सबसे निचला गांव है.

इन बस्तियों के आदिवासी निवासियों का कहना है कि वेल्लोर के कलेक्टर पी. कुमारवेल पांडियन ने पिछले साल जुलाई में पहाड़ी पर स्थित बस्तियों का निरीक्षण किया था, और उन्हें आश्वासन दिया था कि कुरुमलई बस्ती में उप-स्वास्थ्य केंद्र के लिए एक नई बिल्डिंग बनाई जाएगी.

लेकिन लगभग एक साल बाद भी इस आश्वासन को पूरा करने की दिशा में कोई कोशिश नहीं की गई है. वह भी तब जब जिला ने उप-स्वास्थ्य केंद्र बनाने के लिए 30 सेंट ज़मीन और ज़रूरी फ़ंड आवंटित कर दिया है.

उधर, अधिकारी भी मानते हैं कि इन आदिवासी बस्तियों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच एक चुनौती बनी हुई है. अधिकांश बस्तियों में ग्रामीण स्वास्थ्य नर्स (वीएचएन) हैं, लेकिन वो बस्ती में पहुंचसने की मुश्किल की वजह से अनियमित दौरे करते हैं.

कुछ महीने पहले प्रमोशन के बाद इन गांवों से तीन वीएचएन को हटा दिया गया था, जिसके चलते आदिवासी लोगों को अपने बीमारों को इलाज के लिए तलहटी तक ले जाना पड़ता है. स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि एक चिकित्सा अधिकारी, जो बस्तियों के प्रभारी हैं, को नया ट्रांस्फ़र ऑर्डर मिल गया है, लेकिन उनसे वैकल्पिक व्यवस्था होने तक अपनी पोस्ट पर जारी रखने का अनुरोध किया गया है.

निवासी चिकित्सा अधिकारी

स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि उचित सड़क संपर्क न होने की वजह से इन बस्तियों में से किसी एक में पर्मनेंट रहने वाला एक चिकित्सा अधिकारी होना चाहिए. अधिकारी मानचते हैं कि स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के मुद्दे को संबोधित करने का यही एकमात्र समाधान है.

हालाँकि, इसके लिए राज्य सरकार से एक आदेश की ज़रूरत होती है. जब तक वह नहीं आता, तब तक स्टॉप-गैप उपाय के रूप में, चिकित्सा कर्मचारियों की एक टीम बारी-बारी से इन आदिवासी बस्तियों का दौरा करेगी.

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments