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पश्चिम बंगाल: पुलिस विभाग की दीवार काट देगी आदिवासियों का बाहरी दुनिया से संपर्क

ख्वाबगांव झारग्राम से चार किलोमीटर की दूरी पर है, जो इस गांव के लिए सबसे नज़दीकी शहर है. अब पुलिस विभाग से संबंधित भूमि के एक विशाल खंड को सुरक्षित करने के लिए एक चारदीवारी का निर्माण किया जा रहा है.

पश्चिम बंगाल के एक गाँव के निवासी एक दीवार के निर्माण को रोकने की कोशिश में लगे हैं. यह दीवार उनके गांव को बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग कर देगी.

जंगलों से घिरा यह छोटा सा गांव, लालबाज़ार, झारखंड की सीमा के क़रीब है. इस गांव में लगभग 80 लोग बसते हैं. लालबाज़ार को ख्वाबगाँव भी कहा जाता है. इसे यह नाम कला प्रेमियों ने दिया. यहां के निवासी लोधा आदिवासी समुदाय से हैं.

ख्वाबगांव के घरों की दीवारें भी खूबसूरत चित्रों से सजी हैं

ख्वाबगांव झारग्राम से चार किलोमीटर की दूरी पर है, जो इस गांव के लिए सबसे नज़दीकी शहर है. अब पुलिस विभाग से संबंधित भूमि के एक विशाल खंड को सुरक्षित करने के लिए एक चारदीवारी का निर्माण किया जा रहा है.

इस चारदीवारी से दो बस्तियों को जोड़ने वाली सड़क बंद हो जाएगी. इससे लालबाज़ार और खोआराशुली दोनों बस्तियां झारग्राम तक पहुंच खो देंगी.

गांवों के निवासियों ने मुख्य सचिव सहित कई अधिकारियों के सामने अपना विरोध दर्ज कराया है, और उन्हें उम्मीद है कि सड़क का निर्माण रोक दिया जाएगा.

2018 में कोलकाता के कलाकार मृणाल मंडल ने ग्रामीणों को कला सिखाकर लालबाज़ार को कला केंद्र में बदला. वो झारग्राम में रहते हैं और हर दिन लालबाज़ार जाते हैं. अगर दीवार बन जाती है तो वो ऐसा नहीं कर पाएंगे.

ख्वाबगांव एक मशहूर पर्यटन केंद्र है

झारग्राम और लालबाज़ार के बीच यात्रा के लिए यह सड़क ही एकमात्र रास्ता है. मंडल ने एक अखबार को बताया कि यह गाँव पश्चिम बंगाल के सांस्कृतिक मानचित्र पर है, और पर्यटक अक्सर यहां आते हैं. हस्तशिल्पों की बिक्री से ग्रामीणों को मदद मिलती है.

वो उम्मीद करते हैं कि उनकी इस पहल से लोधा आदिवासी ग़रीबी और अशिक्षा के चक्र से बाहर आ सकेंगे. लेकिन सड़क के ब्लॉक होने से गांव तक पहुंच भी बंद हो जाएगी, और इससे आदिवासियों के जीवन पर असर पड़ेगा.

गांव के निवासियों द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प ही नहीं, बल्कि उनके घरों की दीवारें भी खूबसूरत चित्रों से सजी हैं.

इस कला के उनके जीवन में आने से पहले, यहां के लोधा आदिवासी मुख्य रूप से पास के खेतों में मज़दूरी करते थे, या खुद छोटे किसान थे.

आज वो कुटुम-काटुम (टहनियों और जड़ों से बने हस्तशिल्प), कांथा वर्क (कढ़ाई का एक रूप), पॉटरी और भित्ति चित्र बनाने में माहिर हैं.

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