मध्यप्रदेश के श्योपुर ज़िले के सीरिया आदिवासियों में कोरोना वैक्सीन अभियान कमज़ोर रहा है. इसकी दो मुख्य वजह नज़र आती हैं.
इसमें पहली वजह है कि अभी तक स्थानीय प्रशासन ने इन आदिवासियों को वैक्सीन देने के लिए कोई विशेष अभियान नहीं चलाया है. दूसरी वजह है इन आदिवासियों में वैक्सीन के प्रति भ्रम की स्थिति.
दरअसल सहरिया आदिवासी दैनिक यानि दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं. जब इन आदिवासियों ने यह देखा कि वैक्सीन लेने के बाद कुछ लोगों को बुख़ार हो गया तो वो इससे घबरा गए.
स्थानीय मीडिया में छपी रिपोर्ट्स के अनुसार सीरिया आदिवासियों के लिए एक दिन भी मज़दूरी किये बिना अपना परिवार पालना मुश्किल है.
इन आदिवासियों में यह धारणा बन गई है कि वैक्सीन की वजह से कई दिन तक बुख़ार आ सकता है. इसके अलावा वैक्सीन के बाद कुछ दिन तक थकान और कमज़ोरी का अनुभव हो सकता है.

इसलिए सहरिया आदिवासी वैक्सीन लगवाने में झिझक रहे हैं. स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट बताती हैं कि सोंईकलां इलाके के भीखापुर, ज्वालापुर, खुरखुड़ा, ग्लास, नंदापुर जैसी सीरिया बस्तियों में एक भी आदिवासी को टीका नहीं लगा है.
सहरिया आदिवासियों को पीवीटीजी यानि आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा गया है. इस आदिवासी समुदाय में भयानक कुपोषण व्याप्त है. सहरिया आदिवासी बस्तियों में कुपोषण की वजह से बच्चों की मौत का प्रतिशत बहुत अधिक रहता है.
एक समय में इन आदिवासियों को अपराध में लिप्त रहने वाले समुदायों के तौर पर पहचान दी गई थी. अंग्रेज़ों ने बाक़ायदा क़ानून तौर पर इस समुदाय को अपराधी समुदाय के तौर पर चिन्हित किया था.
आज भी इस समाज के बारे में यह धारणा पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है. इसलिए इनके साथ आम समाज काफ़ी भेद-भाव का व्यवहार करता है.
स्थानीय प्रशासन को इन आदिवासियों में वैक्सीन के प्रति झिझक कम करने के लिए विशेष अभियान चलाना होगा. क्योंकि इन आदिवासियों को वैक्सीन देना बेहद ज़रूरी है.
इसकी वजह है कि ये आदिवासी पहले से ही कुपोषण से ग्रस्त हैं. कुपोषण की वजह से इन आदिवासियों की औसत आयु मुख्य धारा के समाज की तुलना में काफ़ी कम है.

कुपोषण की वजह से इन आदिवासियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) काफ़ी कम है. इस वजह से ये आदिवासी कई तरह की बीमारियों से हार जाते हैं.
श्योपुर में सहरिया आदिवासी समुदाय के कुपोषण का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश भी दिया था.
इस आदेश के अनुसार सीरिया बस्तियों में कुपोषण को ख़त्म करने के लिए सभी ज़रूरी उपाय करने को कहा गया था. लेकिन उसके बावजूद यहाँ पर कुपोषण हर तरफ़ पसरा हुआ नज़र आता है.
सीरिया आदिवासी बेशक पीवीटीजी की श्रेणी में आते हैं, लेकिन ये आदिवासी मज़दूरी के लिए अपनी बस्तियों से बाहर आते जाते हैं. इसलिए कोरोनावायरस की चपेट से बचना इनके लिए मुश्किल है.
देश भर में फ़िलहाल वैक्सीन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है. ऐसा लगता है कि पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध होने में कई महीने लग सकते हैं.
इसलिए ज़रूरी है कि उन समूहों की पहचान की जाए जिन्हें प्राथमिकता पर वैक्सीन दिए जाने की ज़रूरत है.
इस लिहाज़ से सहरिया आदिवासियों को वैक्सीन के मामले में प्राथमिकता देनी ज़रूरी है. क्योंकि यह समुदाय अगर कोरोनावायरस की चपेट में आ गया तो इनके लिए यह सामान्य वर्ग से ज़्यादा घातक होगा.