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नीमच में ‘कन्हैया भील की हत्या’, समाज को किसने भेड़ियों का झुंड बना दिया

इस बर्बरता को आप क्या कहेंगे, भीड़ की मानसिकता? अपराध में शामिल लोग अपने ही अपराध का एक वीडियो बनाते हैं और उसे वायरल करते हैं, इस मानसिकता को क्या कहेंगे?

मध्य प्रदेश के नीमच में एक आदिवासी युवक कन्हैया लाल भील की इलाज के दौरान मौत हो गई है. इस आदिवासी युवक को मामूली विवाद में पहले बुरी तरह पीटा गया और फिर उसके बाद उसे पिकअप से बांध कर दूर तक घसीटा गया.

इस शर्मनाक घटना का एक वीडियो वायरल होने के बाद मीडिया में यह ख़बर दिखाई गई थी. यह अपराध 26 अगस्त को हुआ.  जबकि इस घटना का वीडियो 28 अगस्त को सामने आया.

इस मामले में पुलिस ने आठ लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है. दो मुख्य अभियुक्त समेत दो अन्य को गिरफ़्तार करने का दावा पुलिस की तरफ़ से किया गया है. 

पुलिस के मुताबिक़, ”आदिवासी युवक कन्हैया लाल भील कुछ लोगों के साथ अपने गाँव जा रहे थे. तभी उनकी बाइक गुर्जर समाज के एक व्यक्ति से टकरा गई. इस पर क्षेत्र के दबंग गुर्जर समाज के लोग इकठ्ठा हो गए और उन्होंने कन्हैया लाल को मारना शुरू कर दिया. इसके बाद उन्हें पिकअप वाहन से बांधकर घसीटा गया.”

इस अपराध में शामिल लोगों में से एक इस दौरान इस बर्बरता का वीडियो भी बनाता है. 

नीमच के पुलिस अधीक्षक सूरज कुमार वर्मा ने बताया, “घटना सिंगोली थाने की है. अभी आठ लोगों पर मामला दर्ज किया गया है. चार लोग गिरफ़्तार किये जा चुके हैं. बाकी लोगों को भी जल्द गिरफ़्तार कर लिया जाएगा.” पुलिस ने पिकअप अपने कब्ज़े में ले ली है.

इस अपराध से जुड़े वीडियो में देखा जा सकता है कि आदिवासी युवक लगातार माफ़ी मांग रहा है लेकिन इसके बावजूद लोग लगातार उसे पीटते रहे.

कन्हैया लाल को मारने और घसीटने के इस अपराध को अंजाम देने वाले  ही लोगों ने पुलिस को फ़ोन करके बताया कि उन्होंने एक चोर पकड़ा है. इसके बाद पुलिस मौक़े पर पहुँची और कन्हैया लाल को अपने साथ ले गई. उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उनकी मौत हो गई.

इस बर्बरता को आप क्या कहेंगे, भीड़ की मानसिकता? अपराध में शामिल लोग अपने ही अपराध का एक वीडियो बनाते हैं और उसे वायरल करते हैं, इस मानसिकता को क्या कहेंगे? 

इसके अलाव इस अपराध की सूचना जब पुलिस को मिलती है तो उसकी कार्रवाइ क्या होती है? पुलिस विक्टिम को अपने साथ ले जाती है, मौके़ पर मौजूद अपराधियों में से किसी को भी पुलिस पकड़ती नहीं है. पुलिस के इस व्यवहार को आप कैसे परिभाषित करेंगे ?

इस पूरी घटना को मीडिया किस नज़रिए से कवर करता है ? हम पाते हैं कि नेशनल मीडिया से यह ख़बर ग़ायब होती है या फिर इस ख़बर को एक सनसनीख़ेज़ अपराध के तौर पर पेश किया जाता है. क्या मीडिया इस अपराध के पीछे के सामाजिक और राजनीतिक कारणों को तलाश करने का प्रयास करता है ?

इनमें से एक भी सवाल का जवाब अगर ढंग से तलाश करेंगे तो आप एक नतीजे पर पहुँच सकते हैं. वह नतीजा होगा कि यह अपराध एक भीड़ की मानसिकता को दिखाता है और यह मानसिकता बाक़ायदा तैयार की गई है. इस मानसिकता को तैयार करने में सत्ताधारी दल बीजेपी और उसके संगठनों ने योजनाबद्ध तरीक़े से काम किया है. 

पहली नज़र में यह समझ में आता है कि संघ परिवार और बीजेपी ने सत्ता पाने और सत्ता में बने रहने के लिए बहुसंख्यकवाद (majoritarianism) को बढ़ावा दिया है. देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ दबी नफ़रत को उघाड़ा गया और उसे हवा दी गई. 

अब यह काम सत्ताधारी दल और उसके सहयोगी सिर्फ़ भाषणों या सोशल मीडिया के ज़रिए नहीं कर रहे हैं. बल्कि सरकार के फ़ैसलों और क़ानूनों के निर्माण में भी यह काम किया जा रहा है. 

संघ परिवार ने बहुसंख्यक आबादी के बड़े हिस्से को यह समझा दिया है कि उसका उत्पीड़न हुआ है और मुसलमान ने यह उत्पीड़न किया है. इस मसले पर कुछ लिखा भी गया है और बहस भी हुई है. 

लेकिन एक बात जिस पर ध्यान कम जाता है वो है कि बीजेपी और उसके सहयोगियों ने अलग अलग राज्यों में भी समुदायों को एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया है. दलितों और शोषितों के संगठनों की ताक़त का सामना करने और उसमें सेंध लगाने के लिए कई तरह के हथकंडे इस्तेमाल किए गए हैं. 

पश्चिम बंगाल के चुनाव में जिस तरह से मतुआ समुदाय की ताक़त और संख्या को लगातार बहस में लाया गया, यह एक मिसाल है कि किस तरह से पहचान की राजनीति को बीजेपी इस्तेमाल कर रही है. 

ख़ुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बांग्लादेश में एक मतुआ मंदिर जा कर इस ध्रुवीकरण की शुरुआत की थी. अगर आप एक एक कर अलग अलग राज्यों में बीजेपी की रणनीति देखेंगे तो पाएँगे कि बीजेपी ने यह ख़तरनाक खेल लगभग हर राज्य में खेला है. 

बीजेपी के समर्थक, कार्यकर्ता और नेता ही नहीं बल्कि उसके चुने हुए प्रतिनिधियों ने खुल कर अपराधियों का समर्थन किया है. उसके राज में पुलिस को भी पता है कि उसे पीड़ित नहीं बल्कि उस पक्ष में खड़ा होना है जो अपराध कर रहा है. अब यही नियम बन चुका है. 

यहीं से अपराधी दुस्साहस करता है कि वो नीमच में एक आदिवासी युवक की हत्या जैसे अपराधों की ख़ुद ही रिकॉर्डिंग करता है. इन अपराधियों को पता है कि ना सिर्फ़ पुलिस उनके प्रति नरम रहेगी, बल्कि उन्हें राजनीतिक लाभ भी मिल सकता है. 

जब कोई सरकार लगभग हर बड़े मोर्चे पर बुरी तरह से असफल रही हो तो ज़ाहिर है उसके सत्ता में बने रहने की संभावनाएँ कम होने लगती हैं. ऐसे में सरकारें पैंतरेबाज़ी करती हैं. लेकिन बीजेपी ने जो रास्ता अपनाया है, उससे लोकतंत्र, भीड़तंत्र में तब्दील हो रहा है. 

2 COMMENTS

  1. यह एक निंदनीय अपराध है, आज भी आजादी के इतने सालो बाद जहाँ  आदिवासियों की संख्या कम है ,वहां पर बर्बरता उच्च वर्गों द्वारा किया जाता है, यहाँ तक की गावों में आदिवासियों का आरक्षण,उनको मिलने वाली सरकारी सुविधाओं,जात-पात, कुओ या हेंड पम्प से पानी भरना,हर छोटी बातों को आदिवासियों को सहना पड़ता है, अपने आप को उच्च समझने वाले लोगों की मानसिकता सम्प्रदायिकता को भड़काना होता है आदिवासियों को मात्र हंसी का पात्र बनाकर रख दिया जाता है।।

  2. छोटी व आदिवासी होने के कारण है कन्हैया लाल को अपनी जान गवानी पड़ी,यानि की उच्च लोगों की बुरी मानसिकता का शिकार हुआ है कन्हैया लाल।
    विनम्र श्रद्धांजलि💐💐💐🙏…

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