भारत के आदिवासी इलाक़ों में घूमते हुए बहुत कुछ सीखने और समझने का मौक़ा मिलता है. इस दौरान हमारी टीम को कभी कभी कुछ तस्वीरें उतारने का समय भी मिल जाता है. आज ऐसी ही कुछ फ़ोटो आपके साथ शेयर कर रहे हैं. इन फ़ोटो को देख कर आपको आदिवासी जीवन का कुछ कुछ अंदाज़ा ज़रूरी हो सकता है.
यह पहली तस्वीर शायद मैंने ही खींची थी. हाँ याद आया, यह फ़ोटो मैंने ही आरकु घाटी (आंध्र प्रदेश) के साप्ताहिक हाट में ख़रीदी थी. यह आदमी हाट की एक तंबाकू की दुकान पर बैठा था. आप इनते मुँह में जो बीड़ी जैसी चीज़ देख रहे हैं, इस आप देसी सिगार कह सकते हैं. जब यह अपने पूरे साइज़ में होता है तो बिलकुल सिगार जैसा ही दिखाई देता है. इसकी ख़ासियत ये है कि बीड़ी, सिगरेट या शराब की तरह इसमें तंबाकू नहीं भरा होता है. बल्कि यह पूरा ही तंबाकू के पत्तों से बना होता है. यहाँ के हाट में तंबाकू की दुकान पर खूब भीड़ होती है.
यह फ़ोटो मेरे कैमरे से ली गई है, पर मैं तो सामने नज़र आ रहा हूँ. अच्छा यह फ़ोटो तो मनोज ने ली थी. मनोज मेरी टीम के कैमरामैन थे. यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के अंतागढ़ ब्लॉक के एक गाँव में ली गई थी. इस गाँव में हम गोंड आदिवासियों के लोकगीत, भाषा और सामाजिक संस्थाओं पर बातचीत कर रहे थे. इस गाँव में हमने पूरा दिन बिताया था.
इस गाँव में हमने पूरा दिन बिताया था. इनसे बातचीत के बाद गोंड आदिवासियों की सामाजिक संस्थाओं, धार्मिक आस्थाओं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी का कुछ अहसास हुआ था.
यह फ़ोटो हमने कोरापुट से आरकु घाटी के रास्ते में एक झरने के पास ली थी. हम लोग इस झरने को देख कर यहाँ रुक गए थे. यहाँ हमें इस उम्र के कई और बच्चे भी नज़र आए. वैसे जब ये बच्चे हमें यहाँ मिले थे, तब इनके स्कूल खुले थे. लेकिन शायद ये बच्चे स्कूल जाने की बजाए, जंगल में घूम रहे थे.
ओडिशा के कोरापुट के साप्ताहिक हाट में यह तस्वीर ली गई थी. जब भी मैं आदिवासी हाट में गया तो मैंने पाया कि यहाँ पर तराज़ू और बाट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. यहाँ अभी भी तोल कर नहीं नाप कर ही मूँगफली या दाल जैसी चीज़ें बिकती हैं. यानि जो डिब्बा आप मूँगफली के इस ढेर पर देख रहे हैं वो मूँगफली का माप है. मुझे आदिवासी हाट की गतिविधियाँ हमेशा रोमांचित करती हैं.
यह तस्वीर जगदलपुर (छत्तीसगढ़) के जंगल में ली गई है. मुझे याद है यह भत्तार आदिवासियों का गाँव था. हम यहाँ सुबह सुबह पहुँचे थे. यह महिला जंगल से लाए गए किसी फल की गुठली छील रही थी.
इस गाँव में घूमते हुए हमने महसूस किया कि यहाँ आदिवासियों में कुपोषण बहुत ज़्यादा है. इसके अलावा ये आदिवासी मामूली सी सुविधाओं से भी वंचित हैं.
यह फ़ोटो शुक्रवार को लगने वाले एक और आदिवासी हाट की है. यह औरत सुबह सुबह ट्रंक में कुछ सामान लेकर हाट में के लिए निकली थी. कठिन ज़िंदगी जीने वाली इन औरतों की आँखों में आपको निराशा या दुख नज़र नहीं आएगा. शायद वो जानती हैं कि उम्मीद और मेहनत ही जीने का रास्ता है…कम से कम आदिवासियों के लिए.
Good one shyam ji.keep it up very knowldge able one for me..