भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की अधिकारी सुप्रिया साहू ने अपने सोशल मीडिया पर एक हैरान कर देने वाला वीडियो शेयर किया है. वीडियो में दिखाया गया है कि एंटीडोट बनाने के लिए स्नेक वेनम (Snake venom) को कैसे निकाला जाता है.
साथ ही दिखाया गया है कि कैसे सांप को बिना नुक्सान पहुंचाए जहर निकाला जा रहा है. दरअसल, वीडियो में इरुला जनजाति के सदस्य हैं, जो तमिलनाडु में एक जातीय समूह है और यह सांप के जहर निकालने के लिए जाने जाते हैं यानि ये समुदाय इस काम का एक्सपर्ट है.
इरुला जनजाति को सांप के जहर को निकालने और औषधीय प्रयोजनों के लिए इसका इस्तेमाल करने के लिए सरकार से विशेष अनुमति प्राप्त है. वीडियो में एक आदमी को सांप को सावधानी से संभालते हुए और एक छोटे कंटेनर में जहर निकालते हुए दिखाया गया है.
सुप्रिया साहू ने ट्विटर के कैप्शन में लिखा है कि “इरुला जनजाति को कोबरा, रसेल के वाइपर, क्रेट आदि जैसे सांपों को नुकसान पहुंचाए बिना सांप का जहर निकालते हुए देखना किसी आकर्षण से कम नहीं है. एंटी स्नेक वेनम बनाने के लिए जहर को फार्मा कंपनियों को बेचा जाता है. 1978 में स्थापित इरुला स्नेक कैचर सोसायटी में 300 सदस्य हैं.”
इस वायरल वीडियो को अबतक 6,518 बार देखा जा चुका है, 377 लाइक और कई कमेंट्स मिल चुके हैं. इस वीडियो ने सोशल मीडिया यूजर्स के मन में कई सवाल खड़ा कर दिए. लोगों ने जहर निकालने की प्रक्रिया और इरुला जनजाति के सदस्यों के बारे में जानना शुरू कर दिया. कई यूजर्स ने कमेंट करते हुए कहा इस क्लिप को शेयर करने के लिए धन्यवाद.
एक शख्स ने कहा कि इस जनजाति के लोगों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए सरकार को अधिक ध्यान देने की जरूरत है. कुछ ने कहा कि उन्होंने कोई सुरक्षात्मक गियर नहीं पहना है! इसलिए यह बहुत खतरनाक है.
इरुला जनजाति
इरुला जनजाति को सांपों के बारे में उनके सदियों पुराने तजुर्बे की वजह से ख़ास माना जाता है. वो भारत की स्वास्थ्य सेवा में एक अहम रोल निभाते हैं. मगर इरुला जनजाति की इस खूबी के बारे में बहुत कम ही लोगों को पता है.
इरुला जनजाति, जो अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आती है, ख़ासतौर सपेरे का समुदाय है. उनके पास एक कल्याणकारी निकाय भी है ‘इरुला स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल कोऑपरेटिव सोसाइटी’ जो उनके मुद्दों को देखती है.
भारत में हर साल क़रीब 50 हज़ार लोग सांप के काटने से मर जाते हैं. सांप के काटे का एक ही इलाज है कि इसके ज़हर वाला एंटी वेनम इंजेक्शन लगाया जाए. भारत में छह कंपनियां ये दवा बेचती हैं. वो हर साल क़रीब 15 लाख एंटी वेनम सीरम बनाती हैं. इनमें से ज़्यादातर को इरुला जनजाति के निकाले सांप के ज़हर से तैयार किया जाता है.
इरुला जनजाति के लोगों को बचपन से ही सांपों की हरकतों और आवाज़ों के बारे में पता होता है. उन्हें पता होता है कि किस निशान का पीछा करना है और किसे छोड़ देना है. हालांकि, वो ऐसा किस आधार पर करते हैं, वो ये नहीं बता पाते.
ऐसे निकाला जाता है जहर
तमिलनाडु के चेन्नई में प्रचलित प्रक्रिया के तहत सांप का एक माह में महज चार बार जहर निकाला जाता है. इस जहर को तुरंत 10 डिग्री सेल्सियस तापमान में रखा जाता है और फिर तत्काल इसके पाउडर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. चार बार जहर निकालने के बाद सांप को ठीक एक माह में वापस जंगल में छोड़ना पड़ता है.
चेन्नई में काम कर रही संस्था के मुताबिक एक मीटर या उससे अधिक लंबाई के इंडियन कोबरा, रसेल वाइपर, 90 सेमी या उससे अधिक लंबे कॉमन करैत और नौ से 12 इंच लंबाई के सॉ स्किल्ड वाइपर के जहर की बाजार में मांग होती है.
lalit