HomeAdivasi Dailyमणिपुर में मुख्यमंत्री और बीजेपी सांसद की ग़ैर ज़िम्मेदाराना भूमिका

मणिपुर में मुख्यमंत्री और बीजेपी सांसद की ग़ैर ज़िम्मेदाराना भूमिका

मणिपुर ने पहले भी हिंसा को दौर देखा है. यह अफ़सोस की बात है कि यह राज्य एक बार फिर हिंसा की चपेट में आ गया है. एक महीना बीतने के बाद भी अभी तक शांतिवार्ता का माहौल बनता नज़र नहीं आ रहा है. इस हिंसा में दोनों ही तरफ जान-माल का भारी नुकसान हो चुका है. अभी भी करीब 50 हज़ार लोग राहत कैंपों में शरण लिये हुए हैं. इसलिए शांति वार्ता का माहौल तैयार करना बेहद ज़रूरी है.

मणिपुर में हिंसा और तनाव का एक महीना पूरा हो चुका है. लेकिन अभी भी शांति कायम होने की कोई उम्मीद नहीं बंध रही है. इसका एक बड़ा कारम है कि खुद राज्य के मुख्यमंत्री पर ग़ैर ज़िम्मेदाराना रुख अपनाने का आरोप है.

राज्य के आदिवासी संगठन ये मानते हैं कि मुख्यमंत्री के पद पर बिरेन सिंह के रहते हुए कोई शांति वार्ता नहीं हो पाएगी.

मणिपुर ट्राइबल्स फोरम, दिल्ली (Manipur Tribals’ Forum, Delhi) ने केंद्र सरकार से बीते 3 मई को मणिपुर में मैती समुदाय (Meitei community) और कुकी-जोमी समुदाय (Kuki-Zomi community) के बीच शुरू हुए हिंसक जातीय संघर्ष को भड़काने में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह (N. Biren Singh) और बीजेपी के राज्यसभा सांसद लीशेम्बा सनाजाओबा (Leishemba Sanajaoba) की कथित भूमिका की जांच करने का आह्वान किया है.

मणिपुर में हिंसा शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की अपील करने वाले एमटीएफडी ने बीते बुधवार को दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन किया.

इस प्रेस कॉंफ्रेंस में कुकी-जोमी समुदाय की राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने और उनके लिए एक अलग प्रशासन बनाने की प्रक्रिया शुरू करने संबंधी मांग को दोहराया.

एमटीएफडी ने मणिपुर सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि मैती चरमपंथियों द्वारा मार दिए गए आदिवासी लोगों के शव, जो क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान (RIMS) और जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान में रखे हैं उनकी पहचान होनी चाहिए.

संगठन ने आरोप लगाया कि मणिपुर में कुकी-जोमी-मिजो-हमार समुदायों के खिलाफ हिंसा अरंबाई तेंगगोल और मेईतेई लीपुन जैसे चरमपंथी मैतेई गुटों द्वारा की जा रही थी, जिन्हें इंफाल घाटी में राज्य सुरक्षा बलों के कार्यालयों से हथियार चुराने दिए गए.

दूसरी तरफ एमटीएफडी ने कहा कि कुकी-जोमी ग्रामीण अपने बचाव के लिए हैंडमेड हथियारों और गोला-बारूद और कुछ लाइसेंसी बंदूकों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

एमटीएफडी के महासचिव डब्ल्यूएल हागसिंग ने कहा कि एन. बीरेन सिंह सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही मणिपुर में ध्रुवीकरण की राजनीति देखी जा रही है.

उन्होंने कहा, “कुकी लोग पारंपरिक रूप से लंबे समय तक घाटी में मैतेई के निकटतम भौगोलिक पड़ोसी रहे हैं. सत्ता को मजबूत करने के लिए दुश्मन की तलाश का यह एक बढ़िया उदाहरण है.”

अरंबाई तेंगगोल और मेईतेई लीपुन ने लगभग चार से पांच साल पहले ही सांस्कृतिक युवा संगठनों के रूप में लोकप्रियता हासिल की थी. मणिपुर में ज्यादातर लोगों ने कुछ महीने पहले तक उनकी गतिविधियों के बारे में सुना भी नहीं था.

जबकि सार्वजनिक बयानों से पता चलता है कि अरंबाई तेंगगोल सरकार समर्थक हैं. जबकि मेईतेई लीपुन सांसद सजानाओबा से जुड़ाव रखते हैं. मुख्यमंत्री सिंह पिछले कुछ सालों में इन संगठनों द्वारा आयोजित कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल हुए हैं.

हागसिंग ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार के सामने आत्मसमर्पण करने वाले मैतेई विद्रोहियों के घाटी-आधारित समूहों को अरंबाई तेंगगोल और मेईतेई लीपुन में समाहित किया जा रहा है.

एमटीएफटी ने दावा किया कि बदले में वे उन लोगों का कुकी-जोमी-मिजो-हमार समुदायों के खिलाफ हिंसा में नेतृत्व कर रहे हैं और कहा कि इसके लिए राज्य सरकार के साथ मिलकर महीनों से काम किया जा रहा था.

एमटीएफडी ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस संकट के समाधान के लिए पूरी तरह से केंद्र सरकार और गृहमंत्री से उम्मीद लगा रहे हैं.

हंजसिंग ने यह भी दावा किया कि राज्य सरकार लगातार अपने बयान से बदल रही है.

उन्होंने कहा, “पहले उन्होंने कहा कि हिंसा के पीछे अफीम की खेती करने वाले हैं फिर उन्होंने कहा कि अवैध अप्रवासी हैं और अब वे कह रहे हैं कि उग्रवादी और आतंकवादी हैं, हालांकि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) ने हिंसा को उग्रवाद से जोड़ने की किसी भी धारणा को खारिज कर दिया है.”

इस बीच, दिल्ली में कुकी-जोमी-हमार छात्र संगठन बुधवार दोपहर जंतर-मंतर पर एक प्रदर्शन करने इकट्ठे हुए साथ ही उन्होंने मणिपुर में तुरंत राष्ट्रपति शासन लागू करने और कुकी-जोमी-हमार समुदायों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग की. उन्होंने अपनी मांगें एक ज्ञापन में प्रधानमंत्री कार्यालय को भी सौंपीं.

राज्य में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पैदा हुआ तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला गया.

दरअसल, इस हिंसा की चिंगारी तब भड़की थी जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.

ऐसा माना जाता है कि इस आदेश से मणिपुर के गैर-मैतेई निवासी जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, के बीच काफी चिंता पैदा हो गई थी.

हालांकि, बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.

मणिपुर ने पहले भी हिंसा को दौर देखा है. यह अफ़सोस की बात है कि यह राज्य एक बार फिर हिंसा की चपेट में आ गया है. एक महीना बीतने के बाद भी अभी तक शांतिवार्ता का माहौल बनता नज़र नहीं आ रहा है.

इस हिंसा में दोनों ही तरफ जान-माल का भारी नुकसान हो चुका है. अभी भी करीब 50 हज़ार लोग राहत कैंपों में शरण लिये हुए हैं. इसलिए शांति वार्ता का माहौल तैयार करना बेहद ज़रूरी है.

इसके लिए सरकार को तुरंत अलग अलग समुदायों के नेताओं, कार्यकर्ताओं औरि सामाजिक संगठनों को भरोसे में लेना चाहिए.

(Photo Credit: PTI)

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