HomeAdivasi Dailyद्रोपदी मूर्मु पर विपक्ष के बयानों में आदिवासियों के प्रति पूर्वाग्रह की...

द्रोपदी मूर्मु पर विपक्ष के बयानों में आदिवासियों के प्रति पूर्वाग्रह की बू आती है

राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारने के बाद विपक्ष को पीछे नहीं हटना चाहिए. यह बिलकुल ज़रूरी नहीं है कि राष्ट्रपति का चुनाव सर्वसम्मति से ही हो. लेकिन राष्ट्रपति पद के लिए पहली बार एक आदिवासी महिला उम्मीदवार हैं. विपक्ष को अपने बयानों में आदिवासियों और महिलाओं के ख़िलाफ़ आम पूर्वाग्रह नहीं दिखाना चाहिए. अफ़सोस अभी तक वही हो रहा है.

बिहार में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा है कि राष्ट्रपति भवन में किसी मूर्ति की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने यह बात द्रोपदी मूर्मु को राष्ट्रपति चुने जाने के संदर्भ में कही है. इसके बाद उनकी काफ़ी आलोचना भी हो रही है.

तेजस्वी यादव ने कहा है कि राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा अलग अलग विषयों पर बोलते रहे हैं. लेकिन एनडीए की उम्मीदवार ने एक बार भी किसी विषय पर ना तो प्रैस वार्ता की है और ना ही कुछ कहा है.

यह बयान देते हुए तेजस्वी यादव भूल गए कि जब उनकी माता जी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया था तो उनके बारे में भी इसी तरह की बातें कही गई थीं. ख़ुद एक पिछड़े समुदाय से आने वाले तेजस्वी यादव की पार्टी सामाजिक न्याय के मुद्दे पर राजनीति करती है.

लेकिन एक आदिवासी महिला को मूर्ति कहते हुए नो सोचते ही नहीं है कि वो कह क्या रहे हैं.

राष्ट्रीय जनता दल ने राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया है. हालाँकि विपक्ष के ख़ेमे से कई दल एनडीए उम्मीदवार द्रोपदी मूर्मु के समर्थन की घोषणा कर चुके हैं.

झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिव सेना ने कहा है कि वो द्रोपदी मूर्मु को समर्थन देंगे. 

NDA ने जब से द्रोपदी मूर्मु को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है, विपक्ष दलों में कई तरह के विरोधाभास और दुविधा देखी जा रही है. इस सिलसिले की शुरुआत ममता बनर्जी ने की थी.

ममता बनर्जी के प्रस्ताव पर ही यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था. लेकिन द्रोपदी मूर्मु के राष्ट्रपति पद पर आने के बाद से वो लगातार दुविधा में दिखाई दे रही हैं.

उन्होंने एक बयान दिया था कि अगर बीजेपी ने पहले यह बताया होता कि वो द्रोपदी मूर्मु को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना रहे हैं तो विपक्ष अपना उम्मीदवार नहीं उतारता. इस तरह से राष्ट्रपति का चुनाव सर्वसम्मति से हो सकता था. 

तेजस्वी यादव से पहले कांग्रेस के नेता अजय कुमार ने भी द्रोपदी मूर्मु के बारे में कहा था कि वो आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने की बजाए एक बुरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती हैं.

उनके इस बयान की भी काफ़ी आलोचना हुई थी. उनके इस बयान को आदिवासियों के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह की तरह से देखा गया था. 

भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपति का चुनाव प्रतीकात्मक ज़्यादा है. लेकिन फिर भी इस चुनाव के ज़रिए अलग अलग राजनीतिक और सामाजिक संदेश देने के प्रयास किये जाते हैं.

मसलन इस पद अल्पसंख्यक, दलित, महिलाओं और वंचित तबकों से आने वाले व्यक्ति को चुन के संदेश देने की कोशिश होती है कि भारत का लोकतंत्र समावेशी है. 

यह पहला मौक़ा है जब इस पद के लिए एक आदिवासी महिला को उम्मीदवार बनाया गया है. यह भी निश्चित माना जा रहा है कि वो चुनाव जीत रही हैं. यानि देश को आज़ादी के बाद पहली बार एक आदिवासी राष्ट्रपति मिलने जा रहा है.

राजनीति में सर्वसम्मति से चुनाव हो यह कोई ज़रूरी नहीं है. इसलिए विपक्ष को इस दबाव में नहीं आना चाहिए कि वो एक आदिवासी महिला के दावेदारी के ख़िलाफ़ अपना उम्मीदवार लड़ा रहा है.

लेकिन विपक्ष को अपने बयानों में संयम और समझदारी दिखाने की ज़रूरत है. विपक्ष सत्ताधारी दल के आदिवासी मसलों पर फ़ैसलों पर सवाल उठाए. सरकार का रिकॉर्ड दिखा कर उसकी आलोचना करे और यह भी साबित करे कि एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बना कर सरकार अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकती है.

लेकिन राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाई गई एक आदिवासी महिला के ख़िलाफ़ व्यक्तिगत हमले से बचना चाहिए. इसके अलावा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कोई ऐसा बयान ना दिया जाए, जिससे आदिवासी समुदायों के ख़िलाफ़ आमतौर पर देखे जाने पूर्वाग्रहों की बू आती है.  

1 COMMENT

  1. जोहार दोस्तों ऐसा नेता को मैं एक कहावत के तौर पर मुंह में तमाचा मारना चाहता हूं (लिख लोड़ा पड़ पत्थर) पढ़ लिख कर के बुद्धि तो अर्जित कर लिया लेकिन पत्थर के ही समान उसका दिमाग रह गया

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments