मध्य प्रदेश में हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक के बाद एक ताबड़तोड़ भाषणों में राज्य में आदिवासियों के लिए कई घोषणाएं की हैं. अपने भाषणों को सुने तो लगता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदिवासियों की चिंता में सूखे जा रहे हैं.
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान 15 साल से मुख्यमंत्री हैं. उनके शासन काल का रिकॉर्ड देखेंगे तो उनकी घोषणाओं और नीयत में बड़ा फ़र्क दिखाई देगा.
कुछ सप्ताह पहले ही एक आदिवासी युवक की पुलिस ने हिरासत में पीट पीट कर जान ले ली थी. सरकार ने दोषी पुलिस स्टाफ़ के ख़िलाफ़ तब तक कार्रावाई नहीं की जब तक की आदिवासी तोड़फोड़ पर उतारू नहीं हो गए.
यह घटना खरगोन की थी जहां पुलिस की हिरासत में एक आदिवासी युवक को मामूली से किसी जुर्म की शिकायत पर पकड़ा गया था.
इससे पहले नीमच में एक आदिवासी युवक को लोगों ने एक पिकअप ट्रक से बांध कर घसीटा और उसे इतना पीटा की उसकी मौत हो गई थी. इसके अलावा भी अगर ज़मीनी सच्चाई को देखें तो उनकी सरकार का रिकॉर्ड बेहद ख़राब रहा है.
आदिवासियों के ख़िलाफ़ अत्याचारों और शोषण के मामले में मध्य प्रदेश की रिपोर्ट शर्मनाक है. प्रदेश बाल अपराध और आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में नंबर 1 है. प्रदेश में साल 2020 में आदिवासियों के उत्पीड़न मामले 20% बढ़े हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau-NCRB) की 2020 की रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश में अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत 2,401 केस दर्ज हुए हैं. बीते 3 साल से प्रदेश इन अपराधों में पहले पायदान पर ही है.
देश में मध्य प्रेदश में आदिवासी जनसंख्या सबसे अधिक है. मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या का लगभग 21 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासियों की है. फ़िलहाल राज्य में आदिवासी जनसंख्या करीब 1.5 करोड़ बताई जाती है.
आबादी के लिहाज से आदिवासी समुदाय राज्य की राजनीति में बेहद अहम स्थान रखते हैं. लेकिन यह अहम स्थान इन आदिवासियों को सिर्फ़ संख्याबल की नज़र से ही हासिल है.
सत्ता और संसाधनों के मामले में आदिवासियों को हिस्सेदारी नहीं मिलती है. आदिवासी इलाकों में सेहत और शिक्षा हो या फिर बाकी सुविधाएं, बाकी क्षेत्रों की तुलना में बेहद कमज़ोर हैं.
लेकिन संख्याबल की वजह से आदिवासी राज्य के नेताओं के भाषणों में खूब रहते हैं. फ़िलहाल आदिवासियों के बारे में मुख्यमंत्री और बीजेपी के बड़े नेतआों की जो चिंता दिखाई देती है उसकी बड़ी वजह राज्य में हो रहे उपचुनाव हैं. इन उप चुनावों में खंडवा सीट भी शामिल है.
इस सीट पर आदिवासी निर्णायक स्थिति में बताए जाते हैं. इस सीट के अलावा अन्य सीटों के उप चुनावों में भी आदिवासी आबादी का समर्थन पाना ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का लक्ष्य है.
2018 में बीजेपी आदिवासी समुदायों की नाराज़गी की वजह से ही सत्ता से बाहर हुई थी. कांग्रेस की सरकार को गिरा कर बैकडोर से सत्ता में लौटे शिवराज सिंह चौहान और उनक पार्टी जानती है कि उप चुनाव ही नहीं, बल्कि अगले विधान सभा चुनाव से पहले आदिवासी समुदायों को अपने साथ नहीं लिया तो राह फिर मुश्किल हो जाएगी.
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