HomeAdivasi Dailyतेलंगाना सरकार गैर-आदिवासी किसानों को जंगलों से करेगी स्थानांतरित

तेलंगाना सरकार गैर-आदिवासी किसानों को जंगलों से करेगी स्थानांतरित

वन अधिकारियों का कहना है कि विरोध कर रहे आदिवासियों ने जमीनों पर ‘अतिक्रमण’ किया हुआ है और उसपर अवैध रूप से खेती कर रहे हैं. राज्य वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, राज्य में करीब 66 लाख एकड़ जमीन वन भूमि के तौर पर चिन्हित है और 8 लाख एकड़ से अधिक जमीन अतिक्रमण का शिकार है.

तेलंगाना सरकार जंगलों के अंदर खेती करने वाले भूमिहीन, गैर-आदिवासी किसानों को जंगल के आसपास के इलाक़ों में शिफ़्ट करेगी. यह पेड़ों की कटाई की समस्या से निपटने के लिए किया जा रहा है.

इस अभियान के तहत मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अधिकारियों को वन संरक्षण समितियों की नियुक्ति के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा है.

मुख्य सचिव सोमेश कुमार जंगलों में आदिवासियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली पोडु भूमि (Shifting Cultivation) पर शिकायतों और आवेदनों को सीधे स्वीकार करेंगे. अधिकारी विवादित ज़मीन का सर्वे कर कार्रवाई शुरू करेंगे. राज्य में जंगलों का सर्वेक्षण नवंबर से शुरू होगा और सीमाएं तय की जाएंगी.

कई विधायकों ने पहले किसानों द्वारा जंगलों के अतिक्रमण का मुद्दा उठाया था. उनका कहना था कि किसान एक सीजन में फ़सल उगाने के लिए ज़मीन के एक हिस्से को साफ़ करते हैं और अगले सीज़न में दूसरी जगह पर चले जाते हैं. इसके लिए जंगलों के बड़े इलाक़े साफ किए जाते हैं.

कुमारम भीम-आसिफाबाद के विधायक अतरम सक्कू ने कहा कि जंगलों के ठीक बीच में खेती हो रही है जिससे पर्यावरण और वन्यजीवों को खतरा है.

विधायकों द्वारा मुद्दे को उठाए जाने के बाद मुख्यमंत्री राव ने विधानसभा में आश्वासन दिया कि उनकी सरकार मामले को निपटाने के लिए कार्रवाई शुरू करेगी.

वन मंत्री ए इंद्रकरण रेड्डी ने कहा कि जंगलों के बीच में खेती करने वाले किसानों को सीमा पर शिफ़्ट कर दिया जाएगा और उन्हें खेती के लिए अलग से ज़मीन दी जाएगी. उन्हें रायतु बंधु कार्यक्रम जैसी कल्याणकारी योजनाओं के तहत लाने के अलावा ज़मीन के पट्टे, बिजली आपूर्ति और पानी दिया जाएगा.

मुख्यमंत्री ने कहा कि वन भूमि का अतिक्रमण न हो इसके लिए अधिकारी सभी सुरक्षात्मक उपाय करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों और आजीविका की रक्षा की जाएगी.

उन्होंने कहा, “उनकी संस्कृति जंगलों से जुड़ी हुई है. वे जंगलों को अपने जीवन के समान प्रिय मानते हैं, तो वो जंगलों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते. यह लोग जंगलों का इस्तेमाल शहद, जलाऊ लकड़ी और वनोत्पाद को इकट्ठा करने के लिए करते हैं. सरकार उनकी आजीविका और जन्म अधिकार की रक्षा करेगी. समस्या उनकी है जो बाहर से आते हैं, वन भूमि का अतिक्रमण करते हैं, वन संपदा को नष्ट करते हैं और संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं. हम ऐसे तत्वों को वन संपदा को लूटने और जंगलों को नष्ट करने की अनुमति नहीं देंगे.”

मुख्यमंत्री राव ने कहा, “एक बार पोडु भूमि का मुद्दा सुलझने के बाद सरकार वन भूमि की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाएगी. जंगलों में किसी भी अवैध घुसपैठ को रोकने की ज़िम्मेदारी वन अधिकारियों की है.”

क्या है मामला

तेलंगाना में पोडु भूमि को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है. कुल मिलाकर 2019 के बाद से कम से कम आठ बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें आदिवासियों का वन अधिकारियों से टकराव हुआ है.

टकराव की जड़ पर वो ज़मीनें है जिन्हें आदिवासी ‘पोडु भूमि’ कहते हैं जिनका इस्तेमाल वो खेती के लिए करते हैं, लेकिन जिसे सरकार जंगल भूमि बताती है. पोडु खेती का एक पारंपरिक सिस्टम है, जो मध्य भारत के आदिवासियों में काफी आम है.

इन जमीनों के मालिकाना हक को लेकर दशकों से सवाल उठते रहे हैं और ये मुद्दा अविभाजित आंध्र प्रदेश की पिछली सरकारों के समय से चला आ रहा है. लेकिन अब स्थिति इस वजह से और बिगड़ गई है कि मौजूदा तेलंगाना सरकार अपने फ्लैगशिप वनरोपण कार्यक्रम ‘हरिता हरम’ के ज़रिए ग्रीन कवर बढ़ाना चाहती है और जैव विविधता को भी बढ़ावा देना चाहती है.

हरिता हरम, जो 2015 में शुरू किया गया था, एक विशाल वृक्षारोपण अभियान है जिसका लक्ष्य राज्य के ग्रीन कवर को बढ़ाकर कम से कम 33 फीसदी करना है.

तेलंगाना के वन्यजीव विभाग में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी, ए शंकरन के मुताबिक पिछले छह चरणों में कुल मिलाकर 2.2 करोड़ पौधे लगाए गए हैं, जिनमें से 1.6 करोड़ पौधे जंगलों के बाहर और 60.81 लाख पौधे उनके अंदर लगाए गए हैं.

इस साल ये अभियान 1 जुलाई को शुरू हुआ और राज्य ने 19.91 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य तय किया है. लेकिन सरकारी अधिकारियों को आदिवासियों और जंगलों में रहने वाले दूसरे लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है, जिन्होंने कुछ जमीनों पर अपना हक जताया है.

वन अधिकारियों का कहना है कि विरोध कर रहे आदिवासियों ने जमीनों पर ‘अतिक्रमण’ किया हुआ है और उसपर अवैध रूप से खेती कर रहे हैं.

राज्य वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक राज्य में करीब 66 लाख एकड़ जमीन वन भूमि के तौर पर चिन्हित है और 8 लाख एकड़ से अधिक जमीन अतिक्रमण का शिकार है.

क्या है कानून?

आदिवासियों और कार्यकर्ताओं ने बताया है कि एक समस्या ये है कि कथित रूप से तेलंगाना सरकार ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 को लागू नहीं किया है.

अधिनियम के मुताबिक सिर्फ़ उन अधिकारों को मान्यता दी जा सकती है, जहां आदिवासियों का 13 दिसंबर 2005 से पहले से भूमि पर क़ब्जा रहा हो.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मार्च में पोडु जमीनों के 94,774 पट्टे, वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को दिए गए थे. इसमें 2008 के बाद से वन अधिनियम के तहत करीब 3.03 लाख एकड़ जमीन आती है.

2005 में कानून बनने के बाद से 6.31 लाख एकड़ जमीन के लिए करीब 1.84 लाख दावे किए गए थे. आदिवासी कल्याण मंत्री सत्यावती राठौड़ के मुताबिक 2018 के बाद से कानून के तहत, पट्टों के लिए 27,990 और दावे दाखिल किए गए हैं जिनमें 98,745 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक जताया गया है.

आवेदनों को प्रोसेस करने की प्रक्रिया से जुड़ी इकाई, जिला स्तरीय समिति (DLC) ने इनमें से 4,248 एकड़ जमीन से जुड़े 2,401 दावे वैध पाए. जबकि 40,780 एकड़ जमीन के लिए 9,976 दावे अवैध पाए गए. राठौड़ ने मार्च में कहा था कि 53,565 एकड़ जमीन से जुड़े 15,558 दावे अभी जिला-स्तरीय समितियों के पास लंबित पड़े हैं.

लेकिन भद्राद्री कोठागुडम जिले में स्थित एक कार्यकर्ता वासम रामकृष्ण दोरा के मुताबिक लंबित मामलों की संख्या राज्य सरकार के आंकड़ों से तीन गुना से अधिक हो सकती है.

राइट्स एंड रीसोर्स इनीशिएटिव और ऑक्सफैम की एक स्टडी के मुताबिक 2016 में तेलंगाना में 7.61 लाख एकड़ में फैली जमीनों के लिए करीब 2,11,973 निजी वन अधिकार दावे दायर किए गए थे. जिनमें से 3.31 लाख एकड़ जमीन से जुड़े सिर्फ 9,486 दावों (44 फीसदी) को वैध माना गया.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments