तमिलनाडु के कोयंबटूर ज़िले के पिचनूर के पास की एक आदिवासी बस्ती की एक लड़की ने अपने दूसरे प्रयास में 720 में से 202 अंक हासिल कर मेडिकल की पढ़ाई के लिए NEET परीक्षा पास कर ली है.
19 साल की एम शांगवी मालासर आदिवासी समुदाय की हैं, और यह उनकी पहली उपलब्धि नहीं है. शांगवी 2018 में अपनी आदिवासी बस्ती में बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी करने वाली पहली व्यक्ति बनी थीं. और अब वो अब अपनी बस्ती में NEET परीक्षा पास करने वाली भी पहली महिला बन गई हैं.
फ़िलहाल मदुक्करई तालुक में रोट्टीगाउंडेन पुदूर के पास रहने वाली शांगवी 2020 में सामुदायिक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए अपने लंबे संघर्ष के लिए चर्चा में आई थीं, जो बाद में उसे कलेक्टर के हस्तक्षेप के बाद मिला.
उसने द हिंदू से बातचीत में बताया कि सामुदायिक प्रमाण पत्र मिलने के उसके दो साल के संघर्ष के बीच, उसके पिता की मृत्यु हो गई और उसकी मां का दोनों आंखों में मोतियाबिंद का इलाज चल रहा था. अलग-अलग गैर सरकारी संगठनों की मदद से शांगवी ने इस साल की शुरुआत में सरवनमपट्टी में एक निजी कोचिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला लिया, लेकिन लॉकडाउन में ऑफ़लाइन क्लास में हिस्सा नहीं ले पाईं.
फिर उसने राज्य बोर्ड की किताबों और इंस्टिट्यूट द्वारा दी गई किताबों का उपयोग करके NEET की तैयारी की. उसने बारहवीं कक्षा पूरी करने के बाद 2018 में पहली बार NEET का प्रयास किया, लेकिन परीक्षा पास नहीं कर सकीं. इस बार की कोशिश उसकी दूसरी थी.
नीट 2021 लिखने वाले आदिवासी उम्मीदवारों के लिए कट-ऑफ स्कोर 108 से 137 के बीच है. कट-ऑफ रेंज से ऊपर स्कोर करने के बाद शांगवी ने कहा कि वह सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना चाहती हैं.
उधर, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली और मेलघाट के दूरदराज़ के गांवों के कई आदिवासी छात्रों ने भी NEET परीक्षा पास की है. गढ़चिरौली के भामरागढ़ तालुका के नागरगुंडा गांव के रहने वाले 19 साल के सूरज पुंगती ने 720 में से 378 अंक हासिल किए हैं.
विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह ‘मारिया गोंड’ से आने वाले सूरज अपनी तालुक से किसी मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले पहले व्यक्ति होंगे. 60 परिवारों वाले अपने गांव से साइंस स्ट्रीम चुनने वाले भी सूरज पहले ही थे. वो खुश हैं कि अब वो मेडिकल की पढ़ाई कर डॉक्टर बन सकेंगे.
एक और आदिवासी छात्र, 21 साल के सावन शिलास्कर ने NEET में 720 में से 294 अंक हासिल किए हैं. सावन अमरावती ज़िले के मेलघाट इलाक़े के डहरनी तालुक के घोटा नाम के एक छोटे से गाँव से आते हैं.
शांगवी, सूरज और सावन अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वर्ग के तीन-चौथाई ऐसे छात्रों में से हैं, जिन्होंने इस साल NEET में क्वॉलिफ़ाई किया है. और वो भी सामान्य वर्ग के लिए कट-ऑफ़ अंक़ों के अंदर. इसका मतलब यह है कि उन्हें मार्क्स रिलैक्सेशन की ज़रूरत नहीं है.
NEET में एससी, एसटी, ओबीसी उम्मीदवारों का प्रदर्शन
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा सोमवार को घोषित परिणामों में 3.97 लाख ओबीसी उम्मीदवारों में से 83 प्रतिशत से ज़्यादा, 1.14 लाख एससी उम्मीदवारों में से 80 प्रतिशत से ज़्यादा, और 40,000 एसटी उम्मीदवारों में से 77 प्रतिशत ने सामान्य वर्ग के अंक हासिल किए हैं.
परीक्षा में पास हुए 8.7 लाख उम्मीदवारों में से 7.7 लाख ने सामान्य मेरिट कट-ऑफ से ज़्यादा अंक हासिल किए हैं, जबकि लगभग 1 लाख को 40वीं पर्सेंटाइल की कट-ऑफ में छूट दी गई है.
योग्य उम्मीदवारों को अब काउंसलिंग के लिए बुलाया जाएगा, जो मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस और बीडीएस (डेंटल) पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए फ़िल्टरिंग का अंतिम चरण है. पूरे देश में लगभग 75,000 एमबीबीएस और 25,000 बीडीएस सीटें हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि NEET में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी उम्मीदवारों की सफलता सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की योग्यता पर सामान्य वर्ग द्वारा उठाए जाने वाले सवालों का करारा जवाब है. यह इस बात का सुबूत है कि अगर एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों को उचित प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिया जाए, तो वो सामान्य वर्ग से मुक़ाबला कर सकते हैं.
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के उम्मीदवार जिन्होंने 138 से ज़्यादा अंक हासिल किए हैं, उनके पास आरक्षण का लाभ उठाने या सामान्य योग्यता श्रेणी में एडमिशन पाने का विकल्प होगा. हालांकि, बड़े पैमाने पर ये छात्र आरक्षित श्रेणी का चयन करते हैं क्योंकि कॉम्पेटीशन की कमी की वजह से उन्हें उनके पसंदीदा कॉलेज में एडमिशन मिलने की संभावना होती है.
सबसे पहले शांगवी को ढेर सारी बधाई. शांगवी की तरहा हर आदिवासी युवाओ को संघर्ष करणा चाहीए. मैं (मैं भी भारत )इस संस्था का शुक्रीया करता हुं.