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विशाखापत्तनम: खनन का विरोध करने के लिए आदिवासी महिलाओं ने लगाई नकली फांसी

महिलाओं का कहना है कि अगर खनन के लिए उनके काजू के बागान हटा दिए गए, तो उनके पास अपनी जान देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा.

आदिवासी महिलाओं के एक छोटे से समूह ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले के एक पहाड़ी गांव उरललोवाकोंडा में नायाब, लेकिन डरावना विरोध प्रदर्शन किया.

अपने समुदाया के लिए न्याय और ज़िला प्रशासन द्वारा जांच की मांग करते हुए, इन आदिवासी औरतों ने अपनी साड़ियों से फंदा बनाया, उसे अपने गले में बांधा और साड़ी के दूसरे छोर को पेड़ों से बांधकर, खुद को फांसी लगाने की नकल की.

पांच आदिवासी महिलाएं – सिंगारपु राजुलम्मा, तोकला राजुलम्मा, सोलम लक्ष्मी, तोकला एरुकम और सत्यवती – और उनके परिवार के लोग खनन के लिए अपने काजू के बागानों को हटाए जाने का विरोध कर रहे थे.

महिलाओं का कहना है कि अगर खनन के लिए उनके काजू के बागान हटा दिए गए, तो उनके पास अपनी जान देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा.

महिलाओं ने दावा किया है कि राज्य में सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के कुछ सदस्य, एक खनन कंपनी के अधिकारियों की मिलीभगत से सीधा आदिवासियों के काजू बागानों पर निशाना साध रहे हैं. राज्य सरकार ने खनन की अनुमति दे दी है, और उसके लिए बागानों को हटाया जा रहा है.

उनका आरोप है कि खनन कंपनी राजस्व अधिकारियों के सहयोग से जेसीबी मशीनों से उनके काजू के बागानों को नष्ट कर रही है. आदिवासियों ने यह भी दावा किया है कि वे पिछले कई सालों से एक ही मुद्दे को उठा रहे हैं.

हालांकि खनन कंपनी के प्रतिनिधियों और राजस्व अधिकारियों ने दावा किया है कि आदिवासियों ने कंपनी से पैसे लिए हैं. आदिवासी इस आरोप को ग़लत बताते हैं.

आदिवासी महिलाओं का कहना है कि जब उन्होंने काजू के पेड़ों को काटे जाने से रोकने की कोशिश की तो अधिकारियों ने उनपर आरोप लगाया कि वो सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण कर रहे हैं. उनका आरोप है कि अधिकारियों ने उनके खिलाफ़ झूठे मामले भी दर्ज किए थे.

महिलाओं का कहना है कि अगर काजू के पेड़ों को उखाड़ दिया जाता है तो यह आदिवासी अपनी ज़मीन से भी बेदख़ल हो जाएंगे, जिसका सीधा असर उनकी आजीविका पर पड़ेगा. इन आदिवासी महिलाओं की मांग है कि खनन पट्टों को रद्द किया जाए.

सोशल मीडिया पर आदिवासी महिलाओं की फांसी की नकल करने वाला वीडियो वायरल हो गया है. वीडियो में महिलाओं को यह चिल्लाते हुए सुना जा सकता है कि अगर उनके अधिकार बहाल नहीं किए गए तो वो इन्हीं पेड़ों से लटककर अपनी जान दे देंगी.

आदिवासी कल्याण के लिए काम करने वाले समूह, गिरिजन संघम के नेताओं ने मीडिया को बताया कि यह आदिवासी अतिक्रमण नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें इस ज़मीन के लिए “डी पट्टा” जारी किया गया है. उन्होंने यह भी मांग की है कि अगर खनन के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जाता है, तो आदिवासी परिवारों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अनुसार मुआवजा दिया जाना चाहिए.

आदिवासियों ने एक आईएएस अधिकारी द्वारा मामले की तत्काल जांच की मांग की है और कहा है कि अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वे 11 अप्रैल को अनकपल्ली कलेक्ट्रेट पर विरोध प्रदर्शन करेंगे.

नरसीपट्टनम के आरडीओ आर. गोविंदा राव ने शुक्रवार को इन आदिवासियों के काजू के बागानों का दौरा किया. आरडीओ ने 11 अप्रैल को खनन एवं राजस्व अधिकारियों से ज़मीन का सर्वे करवाकर आदिवासियों के साथ न्याय करने का वादा किया है.

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  1. […] के लिए नकली आत्महत्या करते हुए एक विरोध प्रदर्शन किया था. अपने गले में साड़ी का फंदा […]

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