बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को राज्य के आदिवासी इलाक़ों में कुपोषण से होने वाली बच्चों की मौत के लिए फटकार लगाई है. कोर्ट ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर इन मौतों पर विराम नहीं लगा तो वो कड़ी कार्रवाई केरगा.
चीफ़ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की बेंच 2007 में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में कुपोषण की वजह से राज्य के मेलघाट इलाक़े में बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की मौतों की ज़्यादा संख्या का ज़िक्र था.
याचिका ने इलाक़े के सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्त्री रोग विशेषज्ञों, बाल रोग विशेषज्ञों और रेडियोलॉजिस्ट की कमी पर भी चिंता जताई. याचिकाकर्ता ने सोमवार को हाई कोर्ट को सूचित किया कि पिछले एक साल में इस इलाक़े में कुपोषण के चलते 73 बच्चों की मौत हुई है.
महाराष्ट्र सरकार की वकील नेहा भिड़े ने कोर्ट में कहा कि इस मुद्दे के समाधान के लिए सभी क़दम उठाए जा रहे हैं. लेकिन कोर्ट ने इसपर राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर सरकारी मशीनरी इतनी अच्छी तरह से काम कर रही है, तो 73 बच्चों की मौत क्यों हुई.
मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार से अप्रैल 2020 से जुलाई 2021 के बीच राज्य के आदिवासी इलाक़ों में कुपोषण की वजह से कितने बच्चों की मौत हुई है इसका ब्यौरा मांगा है. इसके अलावा कोर्ट ने यह भी जानना चाहा है कि आदिवासी इलाक़ों के सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में कितने डॉक्टर भेजे गए हैं.
कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी चेताया है कि अगर अगली सुनवाई तक कुपोषण की वजह से होने वाली बच्चों की मौत की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ, तो उसके लिए राज्य के जन स्वास्थ्य विभाग के चीफ़ सेक्रेटरी को ज़िम्मेदार माना जाएगा.
कोर्ट ने कहा, “हम जन स्वास्थ्य विभाग के चीफ़ सेक्रेटरी को चेतावनी दे रहे हैं. अगर 6 सितंबर (सुनवाई की अगली तारीख़) तक हमें पता चला कि कई और मौतें हुई हैं, तो हम सख्त रुख अपनाएंगे और कार्रवाई करेंगे.”
कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी एक एफ़िडेविट दायर करने का निर्देश दिया है. इसमें कुपोषण के मुद्दे को हल करने के लिए राज्य सरकार को कितना पैसा सैंक्शन किया गया है, और केंद्र स्थिति की निगरानी कैसे कर रहा है, इसकी जानकारी मांगी गई है.
कुपोष आदिवासियों के प्रत्येक परिवार में देखने को मिलता है।यह कुपोषण की बीमारी देश के हर आदिवसी इलाके में है। पर कई जगह मौत नहीं हुई है, अभी भी जुझ रहे है।संघर्ष कर रहे है ,विशेषकर हमारे यहाँ छतीसगढ़ के जशपुर जिले के कोरवा आदिवासी।