तमिलनाडु ट्राइबल एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि हाल ही में बने राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग में एक भी आदिवासी सदस्य नहीं है.
इसके अलावा हाई कोर्ट जस्टिस शिवकुमार आयोग के अध्यक्ष होंगे और ‘दलित मुरसु’ पत्रिका की संपादक पुनीता पांडियन उपाध्यक्ष होंगी. आयोग में पांच और व्यक्ति भी होंगे, एडवोकेट कुमारदेवन, लेखक एझिल इलंगोवन, सामाजिक कार्यकर्ता लीलावती धनराज, जो आदिवासी बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में काम करती हैं, एडवोकेट इलांचेज़ियन और प्रोफेसर रघुपति.
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होगा, और उनपर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के कानूनी अधिकारों की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी होगी. आयोग राज्य सरकार को समाज के हाशिए पर रह रहे लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर सलाह भी देंगे.
‘विकल्पों की कमी नहीं’
लेकिन आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि एक भी आदिवासी सदस्य का न होना आयोग को कमज़ोर बनाता है. इसके अलावा लीलावती धनराज को आयोग में शामिल किए जाने पर भी सवाल उठे हैं, क्योंकि वह सिर्फ़ आदिवासियों के साथ काम करती हैं. ऊपर से यह भी आरोप है कि लीलावती कर्नाटक से हैं, न कि तमिलनाडु से.
कार्यकर्ता कहते हैं कि राज्य में कई आदिवासी समुदाय हैं, और उनके साथ काम करने वाले कई संगठन भी, लेकिन सरकार उनमें से एक सदस्य भी क्यों नहीं खोज पाई.
आयोग को लेकर चिंताएं
तमिलनाडु की DMK सरकार जब राज्य आयोग की स्थापना के लिए विधेयक लेकर आई थी, तब भी दलित और आदिवासी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने प्रस्ताव पर कई चिंताएं जताई थीं.
इन नेताओं और कार्यकर्ताओं को डर था कि प्रस्तावित आयोग महज़ एक नौकरशाही व्यवस्था बन कर रह जाएगा. इसलिए उन्होंने राज्य सरकार से आग्रह किया था कि आयोग राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) की तर्ज़ पर काम करे.
प्रस्तावित बिल में यह भी कहा गया था कि आयोग के अध्यक्ष 70 साल की उम्र तक, और बाकि सदस्य 65 की उम्र तक पद पर रह सकते हैं. आदिवासी कार्यकर्ताओं का मानना था कि जब नीति आयोग और एनसीएससी में भी कोई ऊपरी आयु सीमा नहीं है, तो इस आयोग में क्यों हो.
उम्र की सीमा लागू होने से योग्य व्यक्ति पद पर नहीं रह पाएंगे, और आयोग का काम प्रभावित होगा. इसलिए, राज्य सरकार से मानदंड बदलने पर विचार करने को कहा गया था.