2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर नज़र के साथ त्रिपुरा और मेघालय में आदिवासी पार्टियों ने आदिवासियों के लिए अलग राज्य बनाने की अपनी मांग को फिर से तेज़ कर दिया है.
मेघालय में आदिवासी समुदाय राज्य की कुल आबादी का 86 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा हैं, जबकि त्रिपुरा में आदिवासियों की आबादी 31 प्रतिशत है. दोनों पूर्वोत्तर राज्यों में विधानसभा चुनाव 2023 में होने हैं.
त्रिपुरा में सत्तारूढ़ भाजपा की सहयोगी पार्टी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (IPFT), और मेघालय में हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (HSPDP), जो सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व वाले डेमोक्रेटिक एलायंस का हिस्सा है, अलग राज्य आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं.
IPFT 2009 से त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) के दायरे को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है. TTAADC का अधिकार क्षेत्र त्रिपुरा का दो-तिहाई इलाक़ा है, और यहां 12,16,000 लोग रहते हैं, जिसमें 90 प्रतिशत आदिवासी हैं.
IPFT पिछले 12 सालों से अपने दम पर अलग राज्य के लिए आंदोलन चला रहा है, लेकिन पार्टी ने शनिवार को कई दूसरी आदिवासी पार्टियों, गैर सरकारी संगठनों और राज्य के प्रमुख आदिवासी नेताओं के साथ इस मांग को आगे बढ़ाने के लिए एक अहम बैठक की.
राजनीति के जानकारों का मानना है कि IPFT की यह नई रणनीति हाल ही में TTAADC के लिए हुए चुनावों में पार्टी को मिली ज़बरदस्त हार का नतीजा है. त्रिपुरा राजघराने के प्रमुख प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन के नेतृत्व वाली TIPRA ने अप्रैल में हुए उस चुनाव में 28 में से 18 सीटें जीती थीं.
TIPRA ने अलग ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की मांग के साथ परिषद पर क़ब्ज़ा कर इतिहास रचा. TIPRA ने 2019 में पहली बार यह मांग उठाई थी. TTAADC में हाल ही में ग्रेटर टिपरालैंड बनाने के लिए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसे राज्यपाल, राज्य और केंद्र सरकारों को भेजा गया.
प्रद्योत देब बर्मन ने हाल ही में कहा कि ग्रेटर टिपरालैंड के तहत आठ पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश सहित पड़ोसी देशों में रहने वाले आदिवासियों के संपूर्ण सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए एक शक्तिशाली परिषद का गठन किया जाएगा.
उन्होंने यह भी कहा कि ग्रेटर टिपरालैंड सिर्फ़ आदिवासियों की सुरक्षा और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए है, और यह मांग किसी गैर-आदिवासी समुदाय के खिलाफ़ नहीं है, न ही राजनीतिक है और न ही यह वोट बैंक की राजनीति है.
IPFT के महासचिव और त्रिपुरा के आदिम जाति कल्याण मंत्री मेवार कुमार जमातिया ने भी बैठक के बाद कुछ ऐसा ही बयान दिया कि यह मांग त्रिपुरा में आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक हितों की रक्षा के लिए है.
जमातिया ने आईएएनएस को बताया, “अगर उचित क़दम नहीं उठाए गए, तो आदिवासियों का सामाजिक-आर्थिक और पारंपरिक जीवन और संस्कृति बर्बाद हो जाएंगे. इसलिए आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य ज़रूरी है.”
उधर मेघालय में, पिछले हफ्ते हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (HSPDP) और गारो हिल्स स्टेट मूवमेंट कमेटी (GHSMC) ने अपने दावे को तेज़ करने के लिए एक समन्वय समिति का गठन किया. इसमें मेघालय को विभाजित कर अलग खासी-जयंतिया और गारोलैंड राज्यों का प्रस्ताव रखा गया.
HSPDP के अध्यक्ष के.पी. पंगियांग ने कहा कि मेघालय के विभाजन के बाद एक राज्य गारो आदिवासी समुदाय के लिए और दूसरा खासी-जयंतिया समुदायों के लिए होगा.
पिगियांग ने यह भी कहा कि दोनों प्रस्तावित राज्यों के बीच सीमाओं का निर्धारण किया जाएगा, ताकि भविष्य में असम और मेघालय के बीच मौजूदा अंतर-राज्यीय समस्याओं जैसी कोई स्थिति न हो.
समन्वय समिति दोनों प्रस्तावित राज्यों के तहत आने वाले क्षेत्रों की पहचान और सीमांकन करेगी. अलग राज्यों की मांग को स्पष्ट करने के लिए स्थानीय भाषाओं में पुस्तिकाएं जल्द ही जारी की जाएंगी.
GHSMC ने दिसंबर 2018 में अलग गारोलैंड की मांग उठाई थी.
गारो हिल्स क्षेत्र, जिसमें मेघालय के 11 ज़िलों में से पांच और 60 विधानसभा सीटों में से 24 शामिल हैं, 10,102 वर्ग किमी में फैला हुआ है. 2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में 13.94 लाख लोग रहते हैं, जबकि खासी-जयंतिया हिल्स क्षेत्र में 22.44 लाख लोग 15,546 वर्ग किमी इलाक़े में रहते हैं.
2014 में, मेघालय विधानसभा ने राज्य के पश्चिमी हिस्से में एक अलग गारोलैंड के निर्माण की मांग को खारिज कर दिया था.
खासी आदिवासी राज्य की कुल आदिवासी आबादी का आधे से ज़्यादा हिस्सा हैं (56.4 प्रतिशत), जबकि गारो 34.6 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर हैं. दोनों राज्य की 30 लाख (2011 की जनगणना के हिसाब से) की कुल आबादी का 91 प्रतिशत (26 लाख) हैं.
भाजपा, कांग्रेस, माकपा और अन्य सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने त्रिपुरा और मेघालय में अलग राज्य की मांगों को पहले ही खारिज किया है.