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बिहार में 184 गाँवों में आदिवासी रहते हैं, 2018 तक सरकार को पता नहीं था

2018 के मिशन अंत्योदय के डेटा से पता चला की बिहार में 184 गाँवों में आदिवासी रहते हैं. ये उन गाँवों की संख्या है जिन गाँवों में कम से कम आधी या उससे अधिक जनसंख्या आदिवासियों की है.

भारत के जनजातीय कार्य मंत्री से संसद में एक सवाल पूछा जाता है. इस सवाल के 5 भाग है. सवाल बिलकुल मामूली है और कुछ सूचनाएँ इस सवाल में माँगी गई हैं. सवाल पूछने वाले बिहार के लोकसभा सांसद संजय जयसवाल हैं. 

डॉक्टर संजय जयसवाल लोकसभा में पश्चिम चंपारण का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने जो सवाल किया था वो कुछ यूँ हैं, “क्या सुदूर और दुर्गम स्थानों के कारण बिहार के जनजातीय छात्रों की शिक्षा और जनजाततियों की आजीविका प्रभावित हो रही है?”

सवाल के अगले भाग में वो पूछते हैं कि अगर इस सवाल का जवाब हाँ है तो फिर सरकार इसका ब्यौरा प्रस्तुत करे. यानि सरकार ये बताए कि किन इलाक़ों में इस तरह की मुश्किलें आ रही हैं. 

अपने सवाल में सांसद ने समस्याओं की तरफ़ इशारा भी किया है. शायद सांसद को उम्मीद थी कि सरकार समस्याओं को स्वीकार कर लेगी.

अगर ऐसा होता है तो सांसद महोदय सरकार से आगे जवाब माँग सकते हैं कि इसके समाधान के लिए क्या किया जा रहा है. 

वो सरकार से पूछते हैं कि क्या इन गाँवों तक जाने के लिए ऐसी सड़क है जिन पर कोई गाड़ी चल सकती है. इसके साथ वो यह भी पूछते हैं कि क्या उन सभी गाँवों में बिजली पहुँच गई है जहां आदिवासी रहते हैं.

उन्होंने जनजातीय मंत्रालय से यह भी पूछ ही लिया कि क्या स्मार्ट गाँव (smart village) योजना के तहत इन गाँवों में बिजली पहुँचाई जा सकती है. 

बिहार के पश्चिम चंपारण में एक उराँव गाँव में ली गई तस्वीर

हमारी या आपकी नज़र में अगर पहले सवाल का जवाब हाँ है, तो फिर सरकार के पास उनके सवाल के बाक़ी भागों का भी जवाब होगा. 

लेकिन अगर सरकार पहले ही सवाल का जवाब ना में देती है तो फिर बाक़ी के प्रश्न प्रासंगिक ही नहीं रहते हैं. लेकिन जैसा हमें या आपको लगता है वैसा सरकार को थोड़ी लगता है. 

सरकार के पास इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि देश में कुछ आदिवासी इलाक़े ऐसे हैं जो दुर्गम पहाड़ियों पर हैं और आज भी वहाँ तक मोटर गाड़ी चलाए जाने लायक़ सड़क नहीं है. 

मतलब सवाल के पहले हिस्से का जवाब हाँ में नहीं है. लेकिन फिर भी बात यहीं ख़त्म नहीं होती है. सरकार जवाब देती है और ऐसा जवाब देती है कि सांसद महोदय सोचते रह गए होंगे कि उन्हें सरकार से यह सवाल पूछ कर सरकार का समय ख़राब नहीं करना चाहिए था.

पश्चिम चंपारण में थारू आदिवासी भी रहते हैं

क्योंकि बेशक सरकार के पास उनके सवाल का जवाब नहीं था, ना सही, लेकिन सरकार लाजवाब थोड़ी हो सकती है. सो सरकार ने उन्हें लंबा सा जवाब दिया.

सरकार ने 2011 यानि दस साल पहले की जनगणना में प्राप्त आँकड़ों के आधार पर सांसद जयसवाल को जानकारी दी. 

सरकार ने उन्हें यह भी बताया कि 2018 के मिशन अंत्योदय के डेटा से पता चला की बिहार में 184 गाँवों में आदिवासी रहते हैं. ये उन गाँवों की संख्या है जिन गाँवों में कम से कम आधी या उससे अधिक जनसंख्या आदिवासियों की है. 

अब हो सकता है कि कुछ और गाँव हों जिनमें आदिवासी रहते हैं. लेकिन फ़िलहाल तो सरकार को यही पता चला है.

यह हो ही सकता है कि भविष्य में बिहार सरकार या केन्द्र सरकार को यह भी पता चल जाए कि बिहार के कई और गाँव हैं जिनमें आदिवासी रहते हैं. 

जहां तक बात स्मार्ट विलेज की है तो सरकार ने साफ़ साफ़ कह दिया है कि इस बारे में सरकार के पास तो कोई जानकारी नहीं है.

इस जवाब के साथ ही सरकार ने यह भी बता दिया है कि जिन गाँवों में आदिवासी आबादी रहती है उनके विकास में जो अंतर के डेटा है वो राज्य सरकारों को दे दिया गया है. 

हम, आप और सांसद महोदय समझ ही नहीं पाते हैं कि सरकार आदिवासियों के लिए कितना काम कर रही है…बस सवाल पूछते रहते हैं.

1 COMMENT

  1. 🇮🇳जय भीम🐘
    #Caste_Census2021
    🇮🇳भारत के स्कूलों, कालेजों व विश्वविद्यालयों में छात्र-छात्रा वही शिक्षा प्राप्त करते हैं।जिसका शैक्षणिक पाठ्यक्रम जनेऊधारियों ने बनाया होता है।
    👾इसलिए शिक्षार्थी बचपन से ही झूठ, पाखंड, पोंगापंथ, मूढ़ता, मक्कारी, अन्याय आदि जैसी अवैज्ञानिकता अमानवीयता सीखकर बर्बादी के रास्ते पर चल रहे हैं।🔥
    🇮🇳भारत में स्कूली शिक्षा शेरनी का दूध नहीं है।बल्कि शिक्षा ग्रहण किए हुए लोग मानसिक गुलाम और गोबर पूजक बन रहे हैं।☸️

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