HomeAdivasi Daily‘आदिवासियों की भूमि हड़पने वालों का साथ दे रही केरल सरकार’

‘आदिवासियों की भूमि हड़पने वालों का साथ दे रही केरल सरकार’

"यह सरकार और व्यवस्था आदिवासी भूमि पर अतिक्रमण का समर्थन करती है. सरकार ने महामारी के बावजूद आदिवासी लोगों के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई है. सरकार के इस रवैये ने हमें विरोध करने पर मजबूर किया है.”

“हमारे गावों की अपनी एक व्यवस्था है, तब पुलिस ने हमारे गांव में ऐसा अत्याचार करने की हिम्मत कैसे दिखाई,” आदिवासी नेता चेम्मौर्ति श्रीकांतन ने केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में सचिवालय के सामने एक विरोध प्रदर्शन में कहा.

कई आदिवासी संगठनों ने मिलकर कासरगोड और कोझीकोड ज़िलों को छोड़कर राज्य के बाकि ज़िलों में यह विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था. विरोध की वजह रविवार को पालक्काड ज़िले के अट्टपाडी में वट्टुलक्की आदिवासी गांव के मुखिया और उनके बेटे की गिरफ्तारी थी.

आदिवासियों का आरोप है कि गिरफ्तारी के पीछे भूमाफिया का हाथ है, और यह एक नॉन-प्रॉफ़िट संगठन और पुलिस की साजिश का नतीजा है.

पुलिस ने 8 अगस्त को आदिवासी बस्ती के मुखिया और उसके 15 साल के बेटे को उनके पड़ोसी की शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया था. गांव के लोगों के विरोध के बावजूद पुलिस ने दोनों को उनके घर से उठाया.

मामला विधान सभा तक पहुंचा, जहां मुख्यमंत्री पिणराई विजयन ने सफ़ाई दी, लेकिन पुलिस का साथ दिया.

चेम्मौर्ति श्रीकांतन ने राज्य सरकार की आलोचना करते हुए द न्यूज़ मिनट से कहा, “यह सरकार और व्यवस्था आदिवासी भूमि पर अतिक्रमण का समर्थन करती है. सरकार ने महामारी के बावजूद आदिवासी लोगों के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई है. सरकार के इस रवैये ने हमें विरोध करने पर मजबूर किया है.”

Photo Credit: The News Minute

प्रदर्शन को लेकर वेदन गोत्रमहासभा समेत आदिवासी संगठनों के नेताओं द्वारा जारी प्रेस रिलीज़ में भी यही आरोप लगाए गए हैं. उसमें आदिवासी बस्तियों में काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन पर आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों के पीछे होने का आरोप लगाया है.

आदिवासी संगठनों का आरोप है कि यह एनजीओ, एचआरडीएस, एक ट्रस्ट का बेनामी फ़्रंट है जो अनधिकृत रूप से वट्टुलक्की बस्ती में काम कर रहा है.

प्रदर्शन कर रहे आदिवासी नेताओं का कहना है कि सरकार आदिवासियों के कल्याण को पूरी तरह से चैरिटी संगठनों को सौंप चुकी है. वो चाहते हैं कि गैर सरकारी संगठनों को सरकार की विकास गतिविधियों के एक हिस्से के रूप में गांवों में काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए, ताकि उनपर नज़र रखी जा सके.

आदिवासी संगठन मुखिया और उसके बेटे की गिरफ़्तारी को आदिवासियों के खिलाफ़ नस्लीय भेदभाव का हिस्सा बताते हैं. वो कहते हैं कि गिरफ्तारी आदिवासी लोगों को चुप कराने की साजिश है.

विरोध के दौरान आदिवासी लोगों के लिए COVID वित्तीय पैकेज लागू करने, वन अधिकार अधिनियम, 2006 को लागू करने, और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए जारी फ़ड को डाइवर्ट करने पर रोक लगाने की भी मांग उठी.

इसके अलावा सभी आदिवासी छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली में शामिल करने EWS के लिए आरक्षण, और कण्णूर में आरलम फ़ार्म का भी मामला उठाया गया.

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