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असम की डबल इंजन सरकार के ख़िलाफ़ उतरेंगे आदिवासी, 14-30 नवंबर आंदोलन होगा

बीजेपी पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान इन समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का वादा कर चुकी है. लेकिन राज्य और केंद्र दोनों जगह सत्ता पाने के बाद भी बीजेपी ने यह वादा पूरा नहीं किया है.

असम में अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल ना किये जाने से नाराज़ कम से कम 6 समुदायों (ethnic groups) ने 14 नवंबर को धेमाजी ज़िले में रेल रोको का ऐलान किया है.

इन 6 नाराज़ समुदायों ने एक मंच पर आने का फैसला किया है. इन समुदायों का यह मंच केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए लगातार आंदोलन करने की रणनीति बना रहा है. 

सोय जनगोष्ठी जोठा मंच (Soy Janagosthi Joutha Mancha) नाम से बनाए गए इस मंच में वो सभी 6 समुदाय शामिल हैं जो लंबे समय से असम में अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किये जाने की माँग कर रहे हैं. इन समुदायों में टी ट्राइब, चुटिया, कोच राजबंशी, मटक, मोरन और ताई अहोम समुदाय शामिल हैं.

इस संगठन में शामिल अलग अलग समुदाय के नेताओं का कहना है कि अनुसूचित जनजाति में उन्हें शामिल करने की माँग को ज़ोरदार तरीक़े से उठाने के लिए यह मंच तैयार किया गया है. 

ताओ अहोम युवा परिषद के महासचिव दिगांत तामुली ने कहा, “दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव बीत चुके हैं, लेकिन बीजेपी ने असम के इन समुदायों को एसटी का दर्जा देने का वादा पूरा नहीं किया है. लेकिन अब हमने यह तय कर लिया है कि अगर हमें अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल नहीं किया जाता है तो फिर 2024 में हम बीजेपी का कोई भी मिशन सफल नहीं होने देंगे.”

चाय बाग़ान में काम करने वाले आदिवासी समुदायों के संगठन ऑल असम आदिवासी स्टूडेंट्स एसोसिएशन के नेता स्टीफ़न लाकड़ा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “अनुसूचित जनजाति की सूचि में कुछ और समुदायों को शामिल करने के मसले पर सरकार ने मंत्रियों का एक समूह बनाया था. लेकिन इस समूह ने अभी तक सरकार को अपनी रिपोर्ट नहीं दी है. इससे साफ़ है कि बीजेपी और सरकार में उसके सहयोगियों की नीयत साफ़ नहीं है.”

इस मंच में शामिल नेताओं ने बताया है कि 14 नवंबर को रेल रोको कार्यक्रम के बाद 15 नवंबर को 12 घंटे का असम बंद किया जाएगा. उसके बाद दिल्ली में भी 30 नवंबर को एक धरना आयोजित होगा.

इस मंच में शामिल संगठनों के नेताओं ने कहा है कि उनके सदस्य असम के सभी संसद सदस्यों को पत्र लिखेंगे. इस पत्र के ज़रिए सांसदों को संसद में अनुसूचित जनजाति की सूचि के मसले को उठाने को कहा जाएगा. सांसदों को पत्र लिखने का कार्यक्रम 28-30 नवंबर के बीच चलाया जाएगा. 

बीजेपी पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान इन समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का वादा कर चुकी है. लेकिन राज्य और केंद्र दोनों जगह सत्ता पाने के बाद भी बीजेपी ने यह वादा पूरा नहीं किया है.

हाल ही में केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश में हाटी और जम्मू कश्मीर में पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का फ़ैसला किया है. इन दोनों  ही समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने को लीक से हट कर किया गया फ़ैसला बताया जा रहा है.

लेकिन असम में इन 6 समुदायों को किया गया वादा पूरा नहीं किया गया है. जबकि इन समुदायों की अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने की माँग ज़्यादा मज़बूत है.

इसकी एक वजह ये है कि अगर असम में इन समुदायों को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया तो बीजेपी को इसकी बड़ी राजनीतिक क़ीमत चुकानी पड़ सकती है. क्योंकि यह मुद्दा असम की राजनीति में बेहद संवेदनशील मुद्दा है.

बोडो समुदाय सहित कम से कम 9 आदिवासी समुदाय इन 6 समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के सख़्त ख़िलाफ़ हैं. अगर सरकार अपना वादा पूरा करती है और इन 6 आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करती है तो फिर दूसरी तरफ़ से लोग सड़क पर उतर सकते हैं.

असम एक ऐसा राज्य है जिसने लंबे समय तक पृथकतावादी जातीय हिंसा झेली है. इसलिए सरकार को कोई भी फ़ैसला बहुत सोच समझ कर करना होगा. 

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