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एक हाथ में विकास दूसरे में डीलिस्टिंग, आदिवासी भारत में संघ परिवार की रणनीति

यह संगठन अखिल भारतीय उपस्थिति का दावा करता है. लेकिन इसकी गतिविधियां छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक तीव्र रही हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा समर्थित एक संगठन – जनजाति सुरक्षा मंच (Janjati Surksha Manch) ने त्रिपुरा में 26 दिसंबर को एक रैली का आयोजन किया. यह रैली डीलिस्टिंग यानि धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों का आरक्षण ख़त्म करने की मांग को बल देने के लिए की गई.

इस रैली में मंच से दो नारे लगातार गूंज रहे थे “कुल देवी तुम जाग जाओ, धर्मांतरित तुम भाग जाओ”, “जो भोलेनाथ का नहीं, वह हमारी जात का नहीं.”

जनजाति सुरक्षा मंच का त्रिपुरा में आदिवासी डीलिस्टिंग के मुद्दे पर यह पहला कार्यक्रम था. इस रैली में जो आदिवासी शामिल हुए उनमें त्रिपुरा की मूल जनजातियों के लोग कम ही नज़र आ रहे थे. इनमें आधे से ज्यादा बाहर से आकर बसे लोग थे.

लेकिन इसके बावजूद इस रैली को फ्लॉप शो नहीं कहा जा सकता है. दरअसल त्रिपुरा की यह रैली जनजाति सुरक्षा मंच की साल 2023 में की गई 100 से ज़्यादा रैलियों में शायद आख़री थी. अब यह मंच राजधानी दिल्ली में एक बड़ी जनसभा करने की घोषणा की है.

ये रैलियां ईसाई मिशनरियों को आदिवासियों का धर्मांतरण करने से रोकने और उन्हें हिंदू धर्म में वापस लाने के लिए पिछले कुछ वर्षों में संघ परिवार द्वारा शुरू किए गए अभियानों का हिस्सा हैं.

आरएसएस से संबंधित वनवासी कल्याण आश्रम (Vanvasi Kalyan Ashram,VKS) जो मिशनरियों का कड़ा विरोध करता है, 1950 के दशक की शुरुआत से आदिवासी समूहों के बीच काम कर रहा है.

धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों के सूची से बाहर किये जाने के मुद्दे को उठाने के उद्देश्य से 2006 के आसपास गठित जेएसएम का नेतृत्व राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत कर रहे हैं. जो रमन सिंह के नेतृत्व वाले छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल में मंत्री रहे हैं. इसके सह-संयोजक राज किशोर हांसदा वनवासी कल्याण आश्रम के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं.

जेएसएम ने पिछले कुछ वर्षों में मध्य और पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी बहुल जिलों में रैलियों और सार्वजनिक बैठकों के साथ अपनी गतिविधियों को बढ़ाया है.

यह संगठन अखिल भारतीय उपस्थिति का दावा करता है. लेकिन इसकी गतिविधियां छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक तीव्र रही हैं.

संगठन ने हाल ही में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से पहले एसटी-आरक्षित सीटों पर परिवर्तित आदिवासियों को टिकट दिए जाने के खिलाफ अभियान चलाया था.

इन रैलियों में “कुल देवी तुम जाग जाओ, धर्मांतरित तुम भाग जाओ”, के नारे लागए गए थे. इसके अलावा जेएसएम के प्रयासों में छत्तीसगढ़ में परिवर्तित आदिवासियों के लिए आरएसएस से जुड़ी धर्म जागरण समिति के “घर वापसी (घर वापसी) अनुष्ठान”, अरुणाचल प्रदेश में कथित रूप से धर्मांतरण को वित्त पोषित करने वाले निगमों के खिलाफ सामाजिक न्याय मंच की रैली, परिवर्तित आदिवासियों के लिए कोटा के खिलाफ वीएचपी के राष्ट्रव्यापी अभियान के समानांतर चलते हैं.

डीलिस्टिंग अभियान भी धारा 370 को निरस्त करने, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण, काशी और मथुरा में मंदिरों पर विवाद जैसी वैचारिक परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के संघ के विचार के अनुरूप है.

त्रिपुरा में JSM के नेता प्रकाश सिंह उईके ने कहा, “कार्तिक ओरांव जैसे कांग्रेस नेताओं ने भी यह मांग उठाई थी. हालांकि, बाद में यह ख़त्म हो गया क्योंकि सत्ता में बैठे लोग मिशनरियों को बुलाना नहीं चाहते थे. लेकिन अब डीलिस्टिंग आंदोलन जोर पकड़ रहा है और आदिवासियों को एहसास हो रहा है कि उनके अधिकार छीने जा रहे हैं.”

इस रैली में एक और वक्ता शांति बिकास चकमा का कहना था “आदिवासी परंपरा को बचाने के लिए संविधान की धारा 342 में संशोधन करके धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों का आरक्षण ख़त्म करना होगा.”

जेएसएम संयोजक का कहना है कि अगली रैली दिल्ली में होगी, जहां पांच लाख लोगों को इकट्ठा करने की योजना बनाई जा रही है. वह कहते हैं, ”हम संसद का घेराव करेंगे और तब तक धरना देंगे जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं.”

जनजाति सुरक्षा मंच की यह रैलियां उस समय में तेज़ हो रही हैं जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनकी पार्टी यानि बेजेपी आदिवासी समुदायों के विकास की बात कर रही हैं.

15 नवंबर यानि जनजातीय गौरव दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीवीटीजी के विकास के लिए 24 हज़ार करोड़ रूपए ख़र्च करने की घोषणा की है.

इस दृष्टि से ऐसा लगता है कि यह पूरा मामला काफी जटिल और पेचीदा है. लेकिन संघ परिवार के काम करने के तरीके को जो लोग समझते हैं, उन्हें यह पता है कि डीलिस्टिंग का मुद्दा और आदिवासियों के विकास के सरकार के दावे और घोषणाएं एक दूसरे के विरुद्ध नहीं हैं.

बल्कि यह एक ऐसा समीकरण है जिसका तोड़ ढूंडना विपक्ष के लिए बेहद मुश्किल हो सकता है.

डीलिस्टिंग बिल क्या है

Delisting (आदिवासी डीलिस्टिंग)

विशिष्ट जातियों/जनजातियों से संबंधित व्यक्ति जिन्होंने अपनी पारंपरिक प्रथाओं को त्याग दिया है और ईसाई या इस्लाम में परिवर्तित हो गए हैं, वर्तमान में आरक्षण लाभ का आनंद ले रहे हैं। विभिन्न संगठनों और संबंधित जाति श्रेणियों के सदस्यों की ओर से ऐसे व्यक्तियों को आरक्षित जाति श्रेणियों से बाहर करने के लिए एक कानून लाने की मांग की जा रही है।

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