महाराष्ट्र में आदिवासी बहुल ज़िला नंदुरबार में भी कोविड 19 की दूसरी लहर का प्रकोप पहुँचा. लेकिन देश के बाक़ी शहरों और ज़िलों की स्थिति और नंदुरबार की स्थिति में एक बड़ा फ़र्क़ है.
यह बड़ा फ़र्क़ ये है कि जब देश के अलग अलग शहरों का कोविड 19 ने दम घोंट दिया, नंदुरबार की साँसें सामान्य गति से चलती रहीं. एक अफ़सर की दूरदर्शिता की वजह से यह संभव हो पाया.
देश की राजधानी दिल्ली और आस-पास के कई शहरों में लोग ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे थे. इस मसले पर बहस हो रही थी कि आख़िर सरकार ने पिछले एक साल में ऑक्सीजन प्लांट क्यों नहीं लगाए.
क्या सरकार को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि कोरोनावायरस की दूसरी लहर भी आ सकती है. दिल्ली या केंद्र सरकार के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है.

लेकिन कोरोनावायरस की पहली लहर के कमज़ोर पड़ने पर जब देश के ज़्यादातर ज़िम्मेदार नेता और अफ़सर बेफ़िक्र हो गए उस समय नंदुरबार के कलेक्टर ने दूरदर्शिता दिखाई.
नंदुरबार के कलेक्टर राजेंद्र भारूड़ ने यह ख़तरा भाँप लिया था. उन्हें अंदेशा था कि कोरोनावायरस की दूसरी लहर आ सकती है. उन्हें इस बात का भी अहसास था कि यह लहर पहली लहर से ज़्यादा ख़तरनाक हो सकती है.
उन्होंने यह भी भाँप लिया था कि दूसरी लहर के साथ ही ऑक्सीजन की ज़रूरत भी बढ़ जाएगी.
कोविड 19 की दूसरी लहर के बीच अपने ज़िले के लोगों को सुरक्षित रखने के लिए कलेक्टर डॉक्टर राजेन्द्र भारूड ने वो सब किया जो एक ज़िम्मेदार अफ़सर को करना चाहिए.
उन्होंने ज़िले में मेडिकल ऑक्सीजन की सुचारू सप्लाई, हॉस्पिटल बेड, आसोलेशन वार्ड से लेकर ज़िले में वेक्सीनेशन अभियान सुनिश्चित किया.
डॉक्टर से अफ़सर बने राजेन्द्र भारूड के प्रयासों से प्रशासन ना सिर्फ़ ज़िले में कोविड 19 से प्रभावित लोगों को इलाज दे पाया है बल्कि यहाँ पर कोरोनावायरस की रफ़्तार को भी कमज़ोर करने में कामयाबी मिली है.
बताया जा रहा है कि नंदुरबार में कोरोनावायरस की रफ़्तार 30 प्रतिशत तक धीमी हुई है.

ज़िले में आज दो ऑक्सीजन प्लांट काम कर रहे हैं जो हर मिनट 2400 लीटर मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन कर रहे हैं. इसके अलावा ज़िले में कम से कम 150 कोविड बेड उपलब्ध हैं.
जब कोरोनावायरस की पहली लहर आई थी उस समय इस ज़िले में कोई ऑक्सीजन प्लांट नहीं था. लेकिन ज़िला कलेक्टर राजेन्द्र भारूड को इस बात का अहसास हो चुका था कि कोरोनावायरस की दूसरी लहर आ सकती है.
इसलिए उन्होंने पिछले सितंबर महीने में ही ज़िले में ऑक्सीजन प्लांट लगाने का काम शुरू कर दिया.
इसके अलावा उन्होंने ज़िले की दूसरी मेडिकल सुविधाएँ भी दुरूस्त करनी शुरू कर दी थीं.
डॉक्टर राजेन्द्र भारूड की कहानी संघर्षों और कामयाबी की एक दिलचस्प कहानी है. नंदुरबार के कलेक्टर राजेंद्र भारूड एक आदिवासी परिवार से आते हैं. उन्हें उनकी माँ ने ही पाल पोस कर बड़ा किया.
लेकिन राजेन्द्र भारूड ने भी अपनी मेहनत से कामयाबी की इबारत लिखी. पहले उन्होंने डॉक्टर की पढ़ाई की. उसके बाद वो सिविल सर्विस में आए. यहाँ भी उन्होंने पहले आईपीएस बनने में कामयाबी पाई और उसके बाद उन्होंने आईएएस की परीक्षा पास की.
दिल से सेल्यूट डीएम सा।ब को
जय जोहार जय आदिवासी