तेलंगाना के अमराबाद इलाक़े के चेंचू आदिवासियों के एक दल ने मानवाधिकार आयोग से न्याय की मांग की है. इन आदिवासियों का आरोप है कि उनके घर अधिकारियों द्वारा तोड़ दिए गए हैं.
हालांकि वन विभाग इस आरोप से इंकार कर रहा है. विभाग का कहना है कि उसके अधिकारी कभी रायलेटपेंटा गांव में नहीं गए, तो घरों को कैसे तोड़ेंगे.
Deccan Herald से बात करते हुए, रायलेटपेंटा की निवासी 25 साल की येलम्मा ने कहा, “हम पास के गांव वटेल्लपल्ली गए थे, तो हमें पता चला कि पीछे से सरकारी अधिकारियों ने हमारे घरों को ध्वस्त कर दिया है. ख़बर सुनकर तुरंत हम अपने गांव लौटे, और पाया कि हमारे घरों की जगह मलबे के ढेर हैं. हम इस जगह पर दशकों से रहते आए हैं, यहां हमारे पूर्वज रहते थे. अब वन विभाग कह रहा है कि हम अवैध रूप से यहां रह रहे हैं, लेकिन हमें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.”
येलम्मा कहती हैं कि एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी यानि आईटीडीए (Integrated Tribal Development Agency – ITDA) ने 1995 में घरों का निर्माण कर, आदिवासियों को सौंप दिया था. लेकिन अब वन विभाग दावा करता है कि यह ज़मीन सरकार की है. इससे एक बात तो साफ़ है कि दो सरकारी विभागों के बीच में आदिवासी पिस रहा है.
एक और आदिवासी महिला चिगुल्ला एदम्मा ने कहा कि वन विभाग के अधिकारी आधी रात को उनके गांव रायलेटपेंटा आए और उनके घरों को ध्वस्त किया. “अचानक, हमारे पास रहने के लिए जगह नहीं है.”
रायलेटपेंटा में पिछले 100 सालों से 22 परिवार रह रहे हैं, और नागरकुरनूल ज़िले के अमराबाद मंडल के रायलेटपेंटा में 90 एकड़ वन भूमि पर सालों से खेती कर रहे हैं.
मानवाधिकार आयोग से संपर्क करने वाले चेंचू आदिवासियों ने आयोग से अनुरोध किया है कि वह अधिकारियों को तोड़े गए घरों का पुनर्निर्माण करने और उनके द्वारा खेती की जाने वाली कृषि भूमि के पट्टे देने का निर्देश दें.
अमराबाद संभागीय वन अधिकारी जी रोहित का कहना है कि रायलेटपेंटा के निवासी पहले ही वटेल्लपल्ली शिफ़्ट हो गए, और अब उस गांव में कोई नहीं रहता है. उन्होंने यह भी कहा कि कोई घर नहीं तोड़ा गया है.
वो चेंचू आदिवासियों के आरोप को पूरी तरह से ग़लत बताते हैं.
(तस्वीर प्रतीकात्मक है. Photo Credit: Down To Earth)
government ko dhayan dene ki jarurat h.adiwasiyo k sath is tarah ka behave achha nhi h…