दो साल पहले गोंड आदिवासी नेता कुमरमभीम की पुण्यतिथि पर, तेलंगाना के वन और बंदोबस्ती (Forest and Endowment) मंत्री ए इंद्रकरन रेड्डी ने जोदेघाट गांव के आदिवासियों को डबल बेडरूम के घर देने का वादा किया था. जोदेघाट गांव में ही कुमरमभीम रहते थे.
घोषणा के बाद, अगली कार्रवाई में अधिकारियों ने इसके लिए 30 लाभार्थियों की पहचान भी की थी. उनमें से एक कुमरमभीम की पोती कुमरा सोमबाई थीं.
लेकिन इसके बाद काम ज़्यादा आगे नहीं बढ़ा. अब तक, एक भी लाभार्थी के लिए वादे के मुताबिक़ 2 बीएचके का मकान पूरा नहीं हुआ है. गांव के आदिवासी इसके लिए अपने इलाके के चुने गए निर्वाचित प्रतिनिधियों, एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (आईटीडीए) के अधिकारियों और जिला कलेक्टर से मिल रहे हैं. उन्होंने अपने घरों के निर्माण के जल्द से जल्द पूरा होने का आग्रह किया है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ सोमबाई का कहना है कि ज़्यादातर लाभार्थियों ने अपने पुराने घरों को छोड़ दिया था, इस उम्मीद में कि उन्हें जल्द ही अपने 2 बीएचके मकान मिल जाएंगे.
सोमबाई ने अखबार को बताया, “हम अपने रोज़ के खर्चों को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं. अब तो नए मकान मिलने की उम्मीद भी धीर-धीरे गायब हो रही है.”
कुछ लाभार्थियों ने अपने मवेशियों और आभूषणों को बेचकर घरों का काम खुद ही पूरा करना शुरू कर दिया है.
कौन हैं कुमरमभीम?
कुमरमभीम तेलंगाना के वीर योद्धा के तैर पर जाने जाते हैं. वह एक गोंड आदिवासी थे और उनका जन्म 22 अक्टूबर को तेलंगाना के आदिलाबाद ज़िले में जोदेघाट गांव में हुआ था.
गोंड जनजाति का बाहरी दुनिया से संपर्क कम ही था. कुमरमभीम का भी बाहरी दुनिया से लेना-देना कम ही था, और वह एक अशिक्षित व्यक्ति थे. लेकिन इसके बावजूद, उन्होंने निज़ाम की क्रूरता के खिलाफ़ एक विद्रोह आंदोलन चलाया और इलाक़े में एक घरेलू नाम बन गए.
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