महाराष्ट्र से राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) द्वारा नासिक और अहमदनगर के डीएम, एसपी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने का मामला सामने आया है. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने आदिवासी बच्चों को बेचने से जुड़े एक मामले में पेश नहीं होने पर महाराष्ट्र के नासिक और अहमदनगर के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है.
आयोग ने सोमवार को महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) रजनीश सेठ को चारों अधिकारियों को गिरफ्तार कर एक फरवरी को पेश करने का आदेश दिया.
एनसीएसटी के एक अधिकारी के मुताबिक, आयोग ने नासिक जिले के इगतपुरी तालुका में कातकरी समुदाय के आदिवासी बच्चों की बिक्री से संबंधित मीडिया की खबरों का खुद संज्ञान लिया था.
क्या है मामला?
यह मामला पिछले साल सितंबर में एक आदिवासी लड़की की मौत के बाद सामने आया था. लड़की की मौत की जांच से पता चला कि पिछले कुछ वर्षों में लगभग 30 आदिवासी बच्चों को 5 हज़ार रुपये और एक भेड़ के लिए बेचा गया था.
आयोग ने कहा कि पुलिस ने किसी भी मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं की और नासिक के जिलाधिकारी (डीएम) गंगाधरन डी, अहमदनगर के जिलाधिकारी राजेंद्र बी भोसले, अहमदनगर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) राकेश ओला और नासिक (ग्रामीण) के एसपी शाहजी उमप को इस महीने की शुरुआत में मामले के संबंध में पेश होने के लिए कहा गया था.
आदेश के अनुसार, जब अधिकारी आयोग के सामने पेश नहीं हुए तो उसने संविधान के अनुच्छेद 338ए की धारा 8 के तहत उसे दी गई दीवानी अदालत की शक्ति का प्रयोग किया और उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी किया.
दरअसल, पिछले साल सितंबर में नासिक के इगतपुरी तालुका के उभाडे गांव के 8 आदिवासी बच्चे लापता हो गए थे और 10 साल की एक बच्ची गौरी अगिवले की मौत हो गई थी जिसके बाद ये खबर सुर्खियों में आया था.
कातकरी समुदाय के गरीब माता-पिता ने पैसों के लिए इन बच्चों को अहमदनगर में बंधुआ मजदूर के तौर पर काम करने के लिए गिरवी रखते थे. इन बच्चों को भेड़ चराने वाले अपने साथ ले जाते थे.
मां-बाप के कहने पर दलाल इन बच्चों को भेड़ और बकरी मालिकों तक पहुंचाते थे. इसके बदले में बच्चों के घरवालों को कुछ पैसे और दलालों को कमीशन मिलता था. इस मामले में बिचौलिए इगतपुरी के बहुत गरीब आदिवासी परिवारों से मिलते हैं और उन्हें अपने बच्चों को गिरवी रखने के लिए मनाते हैं.
इगतपुरी तालुका में घोटी-सिन्नार रोड पर उभाडे गांव में कातकरी समाज के 138 आदिवासी रहते हैं. यहां कुल 26 परिवार झोपड़ियों में रह रहे हैं. आदिवासी कल्याण के लिए सरकार द्वारा घोषित कई योजनाओं के बावजूद ये समुदाय बिना किसी मदद के अत्यधिक गरीबी में जी रहा है. इस बस्ती में रहने वाले आदिवासियों का आरोप है कि कई बार सरकार की ओर से उन्हें राशन भी नहीं मिलता है.
महाराष्ट्र में आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन श्रमजीवी संगठन का कहना है कि इन आदिवासियों को अभी तक भी जीने के लिए ज़रूरी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिली हैं. ये आदिवासी बेहद ख़राब हालातों में जीते हैं. इसलिए इस तरह से बच्चों को गिरवी रखने के मामले सामन आते हैं.
बिल्कुल सही सटिक धन्यवाद आप का गरीब और बिल्कुल सरकार या सरकारी आफिस यहां वहां पदा डाला कि इस मानव कृत्य हो सकता छुपने कु कोशिश कर रहे है मगर आप की खबर कि असर है ये बहुत बहुत अच्छा
आप की पत्रकारिता वे आवाजो की
आवाज है