HomeAdivasi Daily2014 के बाद आदिवासी विकास के कुछ तथ्य और सरकार के दावे

2014 के बाद आदिवासी विकास के कुछ तथ्य और सरकार के दावे

सरकार का दावा है कि 2014 के बाद आदिवासी विकास के लिए बजट कई गुना बढ़ा दिया गया है. लेकिन सरकार के ही आँकड़े उसके इस दावे का समर्थन नहीं करते हैं.

पीआईबी (Press Information Bureau) ने मंगलवार, 24 जनवरी को आदिवासी विकास से जुड़ा एक ट्वीट किया. इस ट्वीट में सरकार का दावा है कि 2014 से पहले आदिवासी इलाकों और समुदायों के विकास के लिए मात्र 21000 करोड़ रूपये ख़र्च किये जाते थे. लेकिन साल 2014 के बाद यह ख़र्च चार गुना से ज़्यादा बढ़ गया है.

अब सरकार आदिवासी विकास के लिए 88000 करोड़ रूपये ख़र्च कर रही है. पीआईबी, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के आधीन काम करने वाला एक विभाग है. इस विभाग का काम समाचार माध्यमों और प्रचार प्रसार के दूसरे तरीक़ों से सरकार की उपलब्धियों का बखान करना है.

आदिवासी विकास पर ख़र्च बढ़ाने के दावे से जुड़ी एक ख़बर का लिंक भी इस ट्वीट में दिया गया है. जब इस लिंक पर क्लिक करते हैं तो इस ख़बर का विस्तार मिलता है. 

सरकार की समाचार नाम की एक डिजिटल पत्रिका में इस ख़बर में बताया गया है कि 2014 से पहले देश में सिर्फ़ 100 एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल होते थे. अब आदिवासी इलाक़ों में इनकी संख्या 500 पहुँच रही है.

इसके अलावा इस ख़बर में सरकार की तरफ़ से दावा किया गया है कि आदिवासियों से वन उत्पाद ख़रीदने के लिए कम से कम 50, 000 वन धन केंद्र स्थापित किये गए हैं. 

आदिवासी विकास के बारे में दावा करते हुए यह भी कहा गया है कि आदिवासी छात्रों को दी जाने वाली अलग अलग स्कॉलरशिप भी दोगुनी हो गई हैं. 

सरकार के दावे से जुड़ा ट्वीट

सरकार के दावे और सच्चाई में फ़र्क़ है

सरकार ने आदिवासी विकास के जो दावे किये हैं अगर उनकी एक-एक कर पड़ताल करें तो पता चलता है कि इन दावों और सच्चाई में काफ़ी फ़र्क़ है. 

पहली सच्चाई तो सरकार यह छुपाती है कि एकलव्य स्कूलों की शुरूआतें साल 1997-98 में की गई थी. इन स्कूलों की स्थापना आदिवासी छात्रों के लिए एक बेहतरीन शुरुआत थी. 

यानि क़रीब 14 सालों में देश भर के आदिवासी इलाक़ों में 100 एकलव्य आदिवासी मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल खोले गए थे.  2018 में मोदी सरकार ने इस सिलसिले में एक बड़ी घोषणा की थी. 

सरकार ने ऐलान किया था कि 2022 तक कम से कम 452 नए एकलव्य स्कूल स्थापित कर दिये जाएँगे. जब सरकार ने इन स्कूलों को बनाने का ऐलान भी किया और इसी साल कैबिनेट कमेटी की मंज़ूरी भी मिल गई.

सरकार ने 2022 तक 452 एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय बनाने का टार्गेट रखा गया था. इसमें सरकार ने 12 Day Boarding स्कूलों की स्थापना का लक्ष्य भी रखा था.

लेकिन सच्चाई ये है कि इन 452 नए स्कूलों की स्थापना तो दूर की बात है इनमें से 332 स्कूलों के भवन का निर्माण का काम भी शुरू नहीं हुआ है. 

अब सरकार ने बताया है कि यह लक्ष्य 2025 तक हासिल किया जाएगा. इसके अलावा एकलव्य स्कूलों में कोविड महामारी के दौरान पढ़ाई लिखाई जिस तरह से ठप्प हुई, उससे भी पता चलता है कि इन स्कूलों में जो सुविधाएँ दी जानी चाहिए थीं, वो नहीं दी गई हैं. 

आदिवासी छात्रों को स्कॉलरशिप

संसीय स्थाई समिति ने जब साल 2020-21, 2021-22 और 2022-23 के लिए प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप के आंकड़े देखे तो पाया कि इन आंकड़ों में कोई ख़ास फर्क नहीं है. 

यानि पिछले दो साल और अगले एक साल के टारगेट को देखा जाए तो प्री मैट्रिक की स्कॉलरशिप की संख्या लगभग वही रखी गई है.

संसद की स्थाई समिति का मानना है कि यह संख्या बढ़नी चाहिए थी. समिति का कहना है कि इस स्कीम का जो मकसद है उसके हिसाब से स्कॉलरशिप की संख्या बढ़ाई ही जानी चाहिए थी. 

आदिवासी मंत्रालय ने यह स्कीम स्कूलों में आदिवासी छात्रों की ड्रॉपआउट रेट कम करने के मकसद से शुरू की थी. 

संसद की स्थाई समिति ने यह देखा कि साल 2019-20 में कुल 14.51 हज़ार आदिवासी छात्रों को प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप दी गई थी. इसके बाद 2021-22 में यह स्कॉलरशिप 12.7 लाख आदिवासी छात्रों को मिली है. 

स्टैंडिंग कमेटी ने इस मामले में अपनी राय देते हुए कहा है कि ऐसा लगता है कि आदिवासी मंत्रालय ने देश में आदिवासी आबादी से जुड़े सही सही आंकड़ों का पता लगाए बिना ही यह योजना शुरू की है. 

कमेटी का कहना है कि अगर इस स्कीम से जुड़ी जानकारी की पड़ताल की जाए तो लगता है कि आदिवासी छात्रों की संख्या में एक ठहराव है. 

सरकार ने आदिवासियों से वन उत्पाद ख़रीदने के लिए वन धन योजना शुरू करने के जो दावे किये हैं उन्हें साबित करने के लिए पर्याप्त आँकड़े पेश नहीं किये गये हैं. 

आदिवासी मंत्रालय के बजट में कटौती

सरकार का दावा है कि 2014 के बाद आदिवासी विकास के लिए बजट आवंटन में बढ़ोतरी की गई है. लेकिन जब आदिवासी मंत्रालय के बजट आवंटन को देखा जाता है तो पता चलता है कि उसके बजट में लगातार कटौती की गई है. 

आदिवासी मंत्रालय के बजट आवंटन को देखा जाता है तो पता चलता है कि उसके बजट में लगातार कटौती की गई है. साल 2020-21 के बजट में आदिवासी मंत्रालय के लिए 7 हज़ार 355.76 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था.

लेकिन रिवाइज्ड एस्टिमेट स्टेज पर इसे घटाकर 5 हज़ार 472.50 करोड़ कर दिया गया. यानी के मंत्रालय के लिए आवंटित धन में 2 हज़ार करोड़ रुपए की कटौती की गई थी.

उसी तरह से साल 2021-22 के बजट में भी कटौती की गई थी और बजट में आवंटित 7 हजार 7484.07 करोड़ रुपए को घटाकर 6 हजार 126.46 करोड़ कर दिया गया. पिछले बजट में यानी 2022-23 में भी वित्त मंत्रालय ने आदिवासी मामलों के मंत्रालय के बजट में काफी बड़ी कटौती की थी.

आदिवासी मंत्रालय ने 13 हजार 208. 52 करोड़ रुपए का प्रोजेक्शन दिया था लेकिन उसे मात्र 8 हजार 406. 92 करोड़ रुपए ही आवंटित किए गए थे. 

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