HomeAdivasi Dailyआर्टिकल 244(ए) क्या है, असम के आदिवासी क्यों इसे महत्वपूर्ण मानते हैं

आर्टिकल 244(ए) क्या है, असम के आदिवासी क्यों इसे महत्वपूर्ण मानते हैं

पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य में कुल 14 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से एक है दिफू (स्वायत्त जिला) संसदीय सीट, यानी Diphu Parliamentary Constituency, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

देश में हुए पिछले लोकसभा चुनाव में, यानी लोकसभा चुनाव 2019 में इस सीट पर कुल 795945 मतदाता थे. उस चुनाव में BJP प्रत्याशी होरेन सिंह बे को जीत हासिल हुई थी.  उन्होंने कुल 381316 वोट  यानि 47.91 प्रतिशत मत हासिल किये थे.

इस सीट पर INC प्रत्याशी बीरेन सिंह एंगटी दूसरे स्थान पर रहे थे, जिन्हें 141690 वोट मिले थे, जो संसदीय सीट के कुल मतदाताओं में से 17.8 प्रतिशत का समर्थन था. 

उन्हें कुल डाले गए वोटों में से 22.93 प्रतिशत वोट मिले थे. इस सीट पर आम चुनाव 2019 में जीत का अंतर 239626 रहा था.

साल 2024 में इस सीट पर दूसरे चरण यानि 26 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. दिफु लोकसभा सीट में सबसे बड़ा मुद्दा आर्टिकल 244(A) को लागू कराना है. इस चुनाव में लड़ रहे सभी पार्टियों के उम्मीदवार यही वादा भी कर रहे हैं कि अगर वे जीतेंगे तो लोगों की इस मांग को पूरा कराएंगे. 

दिफु की सामाजिक संरचना कैसी है

दिफु असम के लोकसभा क्षेत्रों में वो सीट है जिसमें जनसंख्या घनत्व सबसे कम है. यहां कुल मतदाताओं की संख्या मात्र 8.9 लाख है. यह सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. 

इस लोकसभा सीट के अंतर्गत तीन जनजातीय बहुल ज़िलों कार्बी आंगलोंग, पश्चमी कार्बी आंगलोंग और दिमा हसाओ शामिल हैं. ये ज़िले संविधान की छठी अनुसूचि के अंतर्गत हैं जो असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में आदिवासी क्षेत्रों में स्वायत्त ज़िला परिषद का प्रावधान करती है.

इस लोकसभा क्षेत्र में कई जनजातीय समुदाय रहते हैं. इन समुदायों में कार्बी सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है. इसके अलावा यहां पर दिमासा, हमर, कुकी, रेंगमा, नागा, ज़ेमे, नागा, बोडो और गारो जैसे समुदाय भी रहते हैं.

असम के आदिवासी-बहुल दीफू लोकसभा क्षेत्र (Diphu Lok Sabha constituency) में जहां 26 अप्रैल को मतदान है, सभी दलों के उम्मीदवारों ने एक स्वायत्त ‘राज्य के भीतर राज्य’ बनाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 244 (ए) (Article 244(A)) को लागू करने का वादा किया है.

दरअसल, यह दशकों से दीफू में प्राथमिक चुनावी वादा रहा है. तो आइए जानते हैं संविधान का आर्टिकल 244(ए) क्या है और यह इस निर्वाचन क्षेत्र में क्यों महत्वपूर्ण है?

संविधान का आर्टिकल 244(ए) क्या है?

आर्टिकल 244(ए) को 22वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1969 के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था. यह अनुच्छेद संसद को असम के कुछ जनजातीय और अनुसूचित क्षेत्रों को मिलाकर एक स्वायत्त राज्य का गठन करने की शक्ति प्रदान करता है.

आर्टिकल 244(ए) के जरिए स्थानीय प्रशासन के लिए एक स्थानीय विधायिका या मंत्रिपरिषद अथवा दोनों की स्थापना भी की जा सकती है.

आर्टिकल 244(ए) छठी अनुसूची के मुकाबले आदिवासी क्षेत्रों को अधिक स्वायत्त शक्तियां प्रदान करता है. इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण शक्ति कानून व्यवस्था पर नियंत्रण की है.

लेकिन उनके पास सीमित विधायी शक्तियां हैं, कानून और व्यवस्था पर नियंत्रण नहीं है और केवल सीमित वित्तीय शक्तियां हैं.

स्वायत्तता की मांग कब शुरू हुई और अब तक इसका क्या प्रभाव रहा है?

स्वायत्तता की मांग उतनी ही पुरानी है जितनी अविभाजित असम के पहाड़ी इलाकों में एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर आंदोलन, जो 1950 के दशक में शुरू हुआ था. इस आंदोलन के परिणामस्वरूप 1972 में मेघालय के पूर्ण राज्य का निर्माण हुआ.

उस समय कार्बी आंगलोंग और उत्तरी कछार पहाड़ी समुदाय के नेता इस आंदोलन में शामिल रहे थे. सरकार ने उन्हें तब असम में रहने या फिर नए राज्य मेघालय में शामिल होने का विकल्प चुनने को दिया था.

हालांकि, आर्टिकल 244(ए) के माध्यम से किए गए वादे के कारण कार्बी आंगलोंग क्षेत्र के नेताओं ने असम के साथ रहने का विकल्प चुना.

स्वायत्त राज्य मांग समिति (ASDC), जिसे क्षेत्र की स्वायत्तता के लिए दबाव डालने के लिए एक जन संगठन के रूप में स्थापित किया गया था और जो आज भी क्षेत्र में छात्र निकायों के साथ काम कर रही है.

उसने 1995 में क्षेत्र में दो स्वायत्त परिषदों की शक्तियों को बढ़ाने के लिए उनके प्रभार वाले विभागों की संख्या 10 से बढ़ाकर 30 करने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए.

पूर्ववर्ती स्वायत्त जिला लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व 1991 से 1998 तक एएसडीसी के उम्मीदवार के रूप में जयंत रोंगपी ने किया था. मौजूदा चुनाव में एएसडीसी के पास दीफू सीट पर भी एक उम्मीदवार है.

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र के लिए स्वायत्तता अस्पष्ट रही. आर्टिकल 244(ए) के कार्यान्वयन की मांग ने भी एक सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया. दिल्ली और गुवाहाटी में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों ने कार्बी और दिमासा सहित उग्रवादी समूहों के साथ कई शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.

2021 में कार्बी आंगलोंग में पांच उग्रवादी समूहों – कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स, पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी, कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट, कुकी लिबरेशन फ्रंट और यूनाइटेड पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के साथ एक शांति समझौता हुआ. जिसके तहत अधिक स्वायत्तता और पांच वर्षों में 1,000 करोड़ रुपये के विशेष विकास पैकेज का वादा किया गया.

पिछले साल इसी तर्ज पर दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.

राजनीतिक दल अब क्या वादा कर रहे हैं?

शांति समझौते पर हस्ताक्षर आर्टिकल 244(ए) के आसपास की चर्चाओं पर पर्दा डालने में सफल नहीं हुए हैं.

दीफू से निवर्तमान भाजपा सांसद होरेन सिंग बे खुद एक पूर्व कार्बी उग्रवादी हैं, जो यूनाइटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सॉलिडेरिटी के महासचिव थे. जिसने केएएसी के लिए बढ़ी हुई स्वायत्तता और विशेष पैकेज के लिए केंद्र और राज्य के साथ 2011 में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे.

2019 के चुनाव के दौरान होरेन सिंग बे ने विद्रोह के नेता के रूप में अपने दिनों को याद करते हुए स्वायत्तता की मांग के प्रति अपने समर्पण की बात की थी. हालांकि, अन्य सभी उम्मीदवारों ने अपने प्राथमिक अभियान मुद्दे के रूप में आर्टिकल 244(ए) के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया.

शुक्रवार को होने वाले चुनाव के लिए भाजपा उम्मीदवार केएएसी कार्यकारी सदस्य अमरसिंग टिस्सो हैं. उन्होंने एक निर्वाचन क्षेत्र-विशिष्ट घोषणापत्र प्रस्तुत किया है, जिसका पहला वादा अनुच्छेद 244 (ए) का कार्यान्वयन है.

इसमें दावा किया गया है कि “भाजपा अपने आर्टिकल 244(ए) कार्यान्वयन के लिए नई दिल्ली में प्रचार करने के लिए सभी उपलब्ध अवसरों का लाभ उठा रही है. अन्य लोग केवल अपनी निष्क्रियता की परवाह किए बिना आलोचना करते हैं.”

एएसडीसी के अनुभवी सदस्य और 2019 के लोकसभा चुनाव में इसके उम्मीदवार होलीराम तेरांग ने कहा, “हर चुनाव में हर राजनीतिक दल इस मुद्दे को उजागर करता है लेकिन एक बार चुनाव हो जाने के बाद कभी कोई प्रगति नहीं होती है. यहां भले ही बीजेपी उम्मीदवार या कोई अन्य उम्मीदवार इसका वादा करे लेकिन पार्टी खुद उनके साथ नहीं है. किसी भी पार्टी ने अपने राष्ट्रीय घोषणापत्र में इसका उल्लेख नहीं किया है. राज्य और केंद्र में लगातार सरकारों का मूल रवैया अधिक स्वायत्तता प्रदान करना नहीं बल्कि शक्तियां वापस लेने का प्रयास करना रहा है.”

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