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Lok Sabha Elections 2024: झारखंड और छत्तीसगढ़ में एसटी सीटों को जीतने के लिए क्या है बीजेपी की रणनीति

गोंड, कंवर और भतरा छत्तीसगढ़ के सबसे अधिक संख्या वाले और प्रभावशाली आदिवासी समुदाय हैं. जबकि झारखंड में राजनीति संथाल, मुंडा और हो जनजातियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है. एकमात्र अपवाद उराँव आदिवासी हैं जो दोनों राज्यों में पाए जाते हैं.

झारखंड और छत्तीसगढ़ सिर्फ दो उत्तर भारतीय राज्य हैं जहां बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी है. दोनों राज्यों में कुल मिलाकर 25 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से पांच झारखंड में और चार छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक, झारखंड की 26.21 प्रतिशत आबादी एसटी श्रेणी में आती है. जबकि छत्तीसगढ़ की 34 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति से बनी है. हालांकि, सीमाएं साझा करने के बावजूद दोनों राज्यों में कुछ बड़े अंतर हैं.

छत्तीसगढ़ की राजनीति ज्यादातर द्विध्रुवीय है और कांग्रेस और भाजपा के इर्द-गिर्द घूमती है. जबकि झारखंड की राजनीति हमेशा बहुध्रुवीय रही है जहां चुनावी सफलता के लिए गठबंधन एक जरूरी कुंजी है.

इसके अलावा जनसांख्यिकी के संदर्भ में जब राजनीतिक गतिशीलता तय करने वाले प्रमुख एसटी समुदायों की बात आती है तो दोनों राज्य काफी भिन्न हैं.

गोंड, कंवर और भतरा छत्तीसगढ़ के सबसे अधिक संख्या वाले और प्रभावशाली आदिवासी समुदाय हैं. जबकि झारखंड में राजनीति संथाल, मुंडा और हो जनजातियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है. एकमात्र अपवाद उराँव आदिवासी हैं जो दोनों राज्यों में पाए जाते हैं.

इन मतभेदों के बावजूद कोई यह मान सकता है कि ये दोनों राज्य उत्तर भारत या हिंदी बेल्ट में आदिवासी राजनीति के लिए बैरोमीटर हैं. ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर इन राज्यों में एसटी मतदाताओं का मूड क्या है?

NDA का परफॉर्मेंस

2019 के चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने झारखंड में 14 में से 12 सीटें और छत्तीसगढ़ में 11 में से नौ सीटें जीतकर दोनों राज्यों में जीत हासिल की थी.

प्रदर्शन बेहतरीन लगता है लेकिन करीब से देखने पर सीट-दर-सीट एक अलग कहानी बताती है. झारखंड के संथाल बहुल संथाल परगना क्षेत्र में दो एसटी सीटें हैं- राजमहल और दुमका.

राजमहल एसटी सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के विजय कुमार हंसदक ने बीजेपी के हेमलाल मुर्मू को लगभग 1 लाख वोटों से हराया. लेकिन दुमका एसटी सीट पर झामुमो संस्थापक शिबू सोरेन भाजपा के सुनील सोरेन से लगभग 47,000 वोटों से हार गए.

इसके अलावा खूंटी एसटी सीट पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, भाजपा के अर्जुन मुंडा ने कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को लगभग 1,400 वोटों के बेहद कम अंतर से हराया. इसी तरह लोहरदगा एसटी सीट पर बीजेपी के सुदर्शन भगत ने कांग्रेस उम्मीदवार सुखदेव भगत को करीब 10 हजार वोटों के अंतर से ही हरा दिया.

पिछले आंकड़ों से पता चलता है कि भले ही बीजेपी इन सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही लेकिन मार्जिन काफी कम था. इसलिए मतदाताओं के मूड में छोटा सा बदलाव भी चीजों को पूरी तरह से बदल सकता है. दूसरी ओर कांग्रेस के उम्मीदवारों ने बड़े अंतर से जीत हासिल की.

राजमहल की तरह हो जनजाति बहुल सिंहभूम एसटी सीट पर कांग्रेस की गीता कोड़ा ने बीजेपी के लक्ष्मण गिलुआ को करीब 72 हजार वोटों से हराया.

झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा यहां हो आदिवासियों की नेता मानी जाती हैं और हाल ही में वह भाजपा में शामिल हो गई हैं. जिससे यहां भगवा पार्टी की संभावनाएं बेहतर हो गई हैं.

आंकड़ों से पता चलता है कि जहां झारखंड में भाजपा की स्थिति थोड़ी डांवाडोल है. वहीं छत्तीसगढ़ में उसके लिए चीजें थोड़ी बेहतर हैं.

उत्तरी छत्तीसगढ़ की गोंड बहुल सरगुजा एसटी सीट पर भाजपा की रेणुका सिंह ने कांग्रेस के खेलसाई सिंह को हराकर 1.5 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी. इसी तरह कंवर बहुल रायगढ़ एसटी सीट पर भाजपा की गोमती साय ने कांग्रेस के लालजीत सिंह राठिया को हराकर करीब 66 हज़ार वोटों के अंतर से जीत हासिल की.

दोनों सीटों पर मार्जिन काफी ज्यादा है.

दक्षिण छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में भाजपा के मोहन मंडावी ने कांकेर एसटी सीट पर कांग्रेस के बीरेश ठाकुर को 6,914 वोटों के मामूली अंतर से हराया. वहीं मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज का अंतर भी बस्तर एसटी सीट पर लगभग 38 हज़ार वोटों का था.

हालांकि, इस बार बीजेपी को नए चेहरों पर भरोसा करना होगा क्योंकि 2023 के विधानसभा चुनाव में उसकी दोनों महिला आदिवासी सांसद रेणुका सिंह और गोमती साय को मैदान में उतारा गया था और दोनों अब राज्य में विधायक हैं.

द्रौपदी मुर्मू फैक्टर, हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और आदिवासी सीएम मुद्दा

देश के आदिवासी मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए बीजेपी नेतृत्व ने ओडिशा की नेता द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाया.

मुर्मू, जो संथाल जनजाति से आती हैं. जिसका पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा और बिहार के सीमांचल क्षेत्र के कुछ हिस्सों में काफी प्रभाव है. उन्होंने आसानी से चुनाव जीत लिया.

वास्तव में भाजपा का कदम इन राज्यों में संथाल मतदाताओं की सद्भावना अर्जित करने में सफल रहा क्योंकि ओडिशा और झारखंड के विपक्षी नेताओं ने भी उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया.

हालांकि, झारखंड में सद्भावना अल्पकालिक थी क्योंकि केंद्र में भाजपा सरकार के इशारे पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार के आरोप में संथाल नेता और पूर्व सीएम हेमंत सोरेन को जेल में डाल दिए जाने से माहौल पूरी तरह से बदल गया.

राज्य भर के आदिवासी अधिकार संगठनों और समूहों ने इसे आदिवासियों पर हमले के रूप में पेश किया और परिणामस्वरूप भाजपा को इस चुनाव में आदिवासी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है.

रांची स्थित वरिष्ठ पत्रकार दिव्यांशु कुमार के मुताबिक, “हेमंत सोरेन की कैद का इस्तेमाल झामुमो ने आम तौर पर आदिवासी मतदाताओं और विशेष रूप से संथाल मतदाताओं को भाजपा के खिलाफ एकजुट करने के लिए किया और काफी हद तक वे इसमें सफल भी हुए हैं. इसके चलते झारखंड की एसटी आरक्षित सीट पर बीजेपी की संभावनाएं थोड़ी निराशाजनक दिख रही हैं क्योंकि 2019 के चुनाव में इन सीटों पर बीजेपी का मार्जिन भी बहुत अच्छा नहीं था.”

छत्तीसगढ़ और झारखंड में मतभेदों को ध्यान में रखते हुए दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने दोनों राज्यों में अलग-अलग रणनीतियाँ अपनाईं.

झारखंड में जहां हमेशा एक आदिवासी मुख्यमंत्री होता था, उसने 2014 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद एक गैर-आदिवासी सीएम रघुबर दास को चुनने का प्रयोग किया. यह प्रयोग निश्चित रूप से उल्टा पड़ गया क्योंकि पार्टी 2019 के विधानसभा चुनावों में केवल एक एसटी आरक्षित सीट जीत सकी.

उससे सीखते हुए बीजेपी ने इस बार 2023 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद छत्तीसगढ़ में एक कंवर आदिवासी, विष्णु देव साई को सीएम के रूप में चुना. जहां इस फैसले से पार्टी को अपने कंवर वोट बैंक को हासिल करने में मदद मिलेगी जो उत्तरी छत्तीसगढ़ में राजनीतिक सफलता की कुंजी है. वहीं इससे उसे 2024 के चुनावों के संबंध में राज्य के अन्य एसटी समुदायों तक पहुंचने में भी मदद मिलेगी.

हालांकि आदिवासी झारखंड और छत्तीसगढ़ दोनों की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनमें महत्वपूर्ण अंतर हैं. पहले चुनाव को प्रभावित करने वाले मुद्दे और कारक दूसरे से काफी अलग हैं.

जहां झारखंड की बहुध्रुवीय राजनीति में गठबंधन मायने रखता है. वहीं छत्तीसगढ़ की द्विध्रुवीय राजनीति में आदिवासी वोट हासिल करने के लिए उम्मीदवार और जीतने वाले समीकरण अधिक मायने रखेंगे.

जहां एनडीए झारखंड की एसटी सीटों पर अपने पिछले रिकॉर्ड को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करती दिख रही है. वहीं मौजूदा स्थिति में छत्तीसगढ़ की एसटी सीटों पर बीजेपी की संभावनाएं अधिक आशाजनक लग रही हैं.

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