HomeAdivasi Dailyछत्तीसगढ़ के पीवीटीजी समुदाय कमार आदिवासी कौन है?

छत्तीसगढ़ के पीवीटीजी समुदाय कमार आदिवासी कौन है?

छत्तीसगढ़ के कमार आदिवासियों को पीवीटीजी श्रेणी में रखा गया है. इनकी उत्पत्ति गोंडा समुदाय से मानी जाती है. कमार आदिवासियों का कहना है कि वे पहले सैनिक थे. बाद में इन्हें मजबूरी में खेती-बाड़ी और मज़दूरी का काम करना पड़ा. आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं.

कमार जनजाति (Kamar tribe) छत्तीसगढ़ (tribes of Chhattisgarh) राज्य के गरियाबंद, धमतरी और महासमुंद ज़िले में मुख्य रूप से रहते हैं. छत्तीसगढ़ की कमार जनजाति विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति (पीवीटीजी) है.

पीवीटीजी (PVTG) में उन आदिवासी समुदायों को रखा जाता है, जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हो, खेती में पांरपरिक तकनीक का इस्तेमाल करते हो, जनसंख्या घट रही हो.

आइए आज छत्तीसगढ़ की कमार जनजाति के बारे में जानते हैं.

कमार आदिवासियों की उत्पत्ति गोंड समुदाय से मानी जाती है. कमार आदिवासियों का कहना है कि वे पहले सैनिक थे. बाद में इन्हें मजबूरी में खेती-बाड़ी और मज़दूरी का काम करना पड़ा.

कमार आदिवासियों की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से खेती पर निर्भर है. यह आदिवासी झूम खेती करते हैं. इस खेती की तकनीक को कमार भाषा में बेवरा खेती या डहिया खेती कहत हैं.

यह आदिवासी  धान, कुरथी, कोदो -कुटकी आदि आनाजों की खेती करते हैं.

कमार आदिवासी घर बनाने से पहले चयन भूमि पर स्थानीय देवी देवताओं की पूजा करते हैं. पूजा करने के बाद भूमि पर चवाल के 21 दाने रखे जाते हैं. अगर अगले दिन यह चवाल के दाने बिखरे नहीं होते, तो भूमि को शुभ माना जाता है.

इन आदिवासियों के घरों के एक कोने में पूर्वज देवी देवताओं का स्थान होता है, जिसे पीतर कुरिया कहा जाता है.

कमार आदिवासियों के प्रमुख स्थानीय देवी-देवता – छोटेमाई-बड़ेमाई वामनदेव, पूर्वज देव, मागरमाटी, शीतला माता, ठाकुरदेव, भीमा, माता पहुंचानी इत्यादि हैं.

इसके अलावा यह आदिवासी बांस से बर्तन बनाते हैं. आदिवासी जंगलों से वनोपज जैसे लकड़ी, महुआ के फल, महुआ इकट्ठा करते हैं.

कमार आदिवासी खेती के अलावा महुआ के फल(डोरी), तेंदू के पत्ते, साल के पत्ते और बीज आदि को बाज़ारों में बेचते हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार कमार आदिवासियों की जनसंख्या 26,530 हैं. कमार आदिवासी पहले जानवरों का शिकार किया करते थे.

इनके घरों में आज भी तीर-धनुष और मछली पकड़ने का जाल दीवारों में लटका रहता है.

कमार आदिवासियों को दो भागों में बांटा गया है. पहले वो है जो पहाड़ों में रहते हैं, इन्हें पहाड़पट्टिया कहा जाता है.

वहीं जो कमार समूह समतल इलाकों में रहते हैं, उन्हें बुन्दरजीवा कहा जाता है.

कमार आदिवासियों में शिशु पैदा होने के 6 दिन बाद नामकरण किया जाता है. इसके अलावा बच्चे की मां को काकेपानी नाम का काड़ा पिलाया जाता है.

इसके साथ ही कमार जनजाति में मृत्यु का तीन दिनों तक शोक मनाया जाता है.. इसके अलावा मृत्यु के पांचवे और तेरहवें दिन सभी को खाना खिलाया जाता है.

कमार जनजातियों में शादी

कमार आदिवासियों में लड़के के मुछे आने पर और लड़की के मासिक धर्म आने के बाद विवाह योग्य माना जाता है.

इन आदवासियों में बुआ की लड़की के साथ शादी मान्य होती है और उन्हें प्राथमिकता दी जाती है.
इसके अलावा कमार आदिवासियों के विवाह स्थल पर महुआ की लकड़ी और मड़वा गाड़ा जाता है.

वहीं जब दुल्हन शादी के बाद अपने ससुराल जाती है, तो सभी लोग शिकार करने जंगल जाते है, उसे मृग मारना कहा जाता है.

दीपावली पर्व के अवसर पर कमार आदिवासी महिलाएं सुआ नृत्य करते हैं. कमार आदिवासियों में महिलाएं और पुरूष मिलकर शादियों में नाच-गाना करते हैं.

कमर आदिवासियों के मुख्य त्योहार नवाखाई, बीजबोनी, हरेली, माटीजात्रा, होली, दशहरा, दीपावली, छेरछेरा, पोरा इत्यादि हैं.

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