उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में जारी जातीय हिंसा को आज एक साल पूरा हो गया है. लेकिन एक साल बाद भी राज्य में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच तनाव जारी है.
3 मई, 2023 को शुरू हुई इस जातीय हिंसा में अब तक करीब 226 लोगों की मौत हो चुकी है.
वहीं 1,500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं और करीब 60 हज़ार लोग आज भी राहत शिविरों में अपना जीवन बिताने को मजबूर हैं.
राज्य में जातीय संघर्ष शुरू होने के पहले हफ्ते के अंदर बड़े पैमाने पर आगजनी और हिंसा हुई. चुराचांदपुर, कांगपोकपी और मोरेह जैसे कुकी-ज़ोमी बहुल क्षेत्रों में रहने वाले मैतेई लोगों को मैतेई-बहुसंख्यक घाटी में ले जाया गया.
वहीं इंफाल और अन्य मैतेई-बहुल क्षेत्रों से कुकी-ज़ोमी लोगों को चुराचांदपुर और कांगपोकपी जिले में ले जाया गया. जबकि कई लोग राज्य से पड़ोसी मिजोरम या देश में कहीं और भाग गए.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने MBB को बताया कि समय के साथ हिंसा के प्रसार में थोड़ी कमी आई है. हालांकि, 13 अप्रैल के बाद फिर से हिंसा की आग दोबारा भड़क उठी है.

इसमें कांगपोकपी जिले में दो लोगों की हत्या और बिष्णुपुर जिले में सीआरपीएफ चौकी पर हमले में दो सीआरपीएफ जवानों की हत्या शामिल है.
अगर अब बात राज्य की कानून- व्यवस्था की करें तो हालात इतने खराब हैं कि राज्य के सीएम एन बीरेन सिंह कुकी-जोमी इलाके में जानमाल के नुकसान का आकलन करने के लिए भी नहीं जा पाए हैं.
यहां पर समाज का पूरी तरह से बिखराव हो चुका है. ऑफिस हों या हॉस्पिटल, कहीं भी सरकारी सिस्टम नजर नहीं आता है.
एक अधिकारी ने इस बात पर जोर दिया कि जनता के प्रतिनिधियों को ही बातचीत के लिए आगे आना होगा. उन्होंने कहा कि हम उग्रवादी संगठनों से आसानी से निपट सकते हैं. लेकिन उसके लिए जनता को बीच में नहीं आना होगा.
अधिकारी ने यह भी कहा कि अगर लोग बीच में आ जाते हैं तो लोगों को काफी ज्यादा नुकसान हो सकता है. अधिकारी ने इस हफ्ते की शुरुआत में हुई एक घटना का जिक्र कर कहा कि बड़ी संख्या में महिलाओं ने सेना के द्वारा हिरासत में लिए गए 11 लोगों को छुड़ा लिया और इतना ही नहीं बल्कि उनके द्वारा जब्त किए गए हथियारों को वापस करने की मांग भी की.
इस सब के बीच इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) के सचिव मुआन टोम्बिंग ने कहा केंद्र को यह अच्छी तरह से जानते हुए कि हम एक प्रशासन के तहत एक साथ नहीं रह सकते. हमारे मुद्दे का समाधान करना होगा.

उन्होंने कहा कि यही आगे का रास्ता है और हम उस पर जोर देते रहेंगे. किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं हो सकता. यह बहुत साफ है कि मणिपुर सरकार इसके बारे में कुछ नहीं करेगी लेकिन हम केंद्र सरकार के साथ अपनी राजनीतिक मांग पर जोर देते रहेंगे, जबकि हम अपनी जमीन की रक्षा करना जारी रखेंगे.
वहीं दूसरी तरफ मैतेई हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन COCOMI के प्रवक्ता खुराइजम अथौबा ने कहा कि केंद्र के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका कुकी-ज़ोमी विद्रोही गुटों के साथ सख्त रुख अपनाना है. साथ ही उनके साथ युद्धविराम समझौते को निलंबित करना है.
कैसे शुरू हुई हिंसा?
मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए. उनका कहना है कि मणिपुर के भारत में विलय से पहले उन्हें जनजाति का दर्जा मिला हुआ था.
समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिए जाने की याचिका पर विचार करने को कहा. इसके विरोध में कुकी समुदाय ने 3 मई, 2023 को आदिवासी एकता मार्च निकाला और जिसके बाद हिंसा भड़क उठी.
निर्वस्त्र महिलाओं की परेड का वीडियो
पिछले साल 19 जुलाई को मणिपुर से महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड निकालने का वीडियो सामने आया, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया.
इस वीडियो में भीड़ दो महिलाओं को बिना कपड़ों के परेड करा रही थी. एक महिला की उम्र लगभग 20 साल और दूसरे की उम्र लगभग 40 साल है.
वीडियो में ये भी देखा गया कि भीड़ से कुछ लोग पीड़िताओं को घसीट रहे हैं और उनका यौन उत्पीड़न कर रहे हैं. वीडियो के वायरल होने के बाद देशभर में इसपर चर्चा शुरू हो गई.
वहीं हाल ही में इस घटना को लेकर आई सीबीआई की चार्जशीट में इस बात का ज़िक्र किया गया है कि जिस समय भीड़ इन महिलाओं का पीछा कर रही थी उस दौरान वो सड़क के किनारे खड़ी पुलिस की एक जिप्सी के अंदर बैठने में कामयाब हो गई थीं.
लेकिन जब उन्होंने पुलिस से गाड़ी चलाने का अनुरोध किया तो पुलिस चालक ने उन्हें बताया कि “गाड़ी की चाबी नहीं है.”
सीबीआई की जांच में सामने आया है कि पुलिस ने दोनों ही महिलाओं को उनके हालात पर छोड़ दिया था. पुलिस का कहना था कि वहां उन्हें कोई खतरा ही नहीं है, जबकि उसके बाद जो कुछ भी हुआ उसने पूरे देश को शर्मसार किया.
अधिकारियों और नेताओं के घर पर भी हुए हमले
मणिपुर में हिंसा से नेता और सरकारी अधिकारी भी अछूते नहीं रहे. 27 सितंबर, 2023 को प्रदर्शनकारियों ने इंफाल पश्चिम जिले में डिप्टी कलेक्टर के घर पर हमला कर परिसर में खड़ी 2 गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया था. इसी दिन थाउबल जिले में भाजपा कार्यालय में आग भी लगा दी गई.
इस बीच जुलाई, 2023 तक पुलिस ने 6,000 FIR दर्ज की, लेकिन मात्र 657 लोगों की गिरफ्तारियां हुईं. उग्रवादियों ने सुरक्षाबलों से सैकड़ों हथियार लूटे.
बीरेन सिंह के इस्तीफे को लेकर हाईवोल्टेज ड्रामा
हिंसा के बीच विपक्षी पार्टियां मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग करने लगीं. इस बीच जून में बीरेन सिंह ने इस्तीफा देने के लिए राज्यपाल से मिलने का वक्त मांगा. कथित तौर पर वे इस्तीफा देने जा रहे थे कि नाटकीय घटनाक्रम में भीड़ ने उन्हें घेर लिया और इस्तीफे के पन्ने ही फाड़ दिए.
इसी दौरान राहुल गांधी ने मणिपुर का 2 दिवसीय दौरा किया और लोगों से मिले.
अविश्वास प्रस्ताव
मणिपुर के मुद्दे पर विपक्ष गठबंधन INDIA केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया. उसका कहना था कि इसी बहाने प्रधानमंत्री को इसी मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ेगी.
हालांकि, ये प्रस्ताव गिर गया लेकिन इस दौरान संसद में खूब बहस हुई. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर मणिपुर में भारत मां की हत्या का आरोप लगाया. जवाब में प्रधानमंत्री ने मणिपुर की समस्याओं के पीछे कांग्रेस को वजह बताया.
प्रधानमंत्री की चुप्पी
कुकी और मैतेई समुदाय के बीच छिड़े संघर्ष की वजह से राज्य में कई दौर की हिंसा, मौत और इंटरनेट बंदी देखी गई.
इन सबके बीच विपक्ष बार-बार मणिपुर के हालात को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर सवाल उठाता रहा है. विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी से ये भी पूछता रहा है कि आख़िर वो मणिपुर क्यों नहीं जा रहे हैं?
हिंसा के बीच 19 जुलाई, 2023 को जब मणिपुर की दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का एक भयावह वीडियो सामने आया तो पूरा देश हिल गया.
इस घटना के लंबे समय बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के मॉनसून सत्र से पहले मीडिया से बातचीत में मणिपुर की घटना का ज़िक्र करते हुए कहा था कि उनका “हृदय पीड़ा से भरा हुआ है.”

पीएम मोदी ने कहा था कि देश की बेइज़्ज़ती हो रही है और दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा. यह पहली बार था कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर में जारी हिंसा पर कुछ कहा.
असम ट्रिब्यून को हाल में दिए गए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “राज्य की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है.”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे गृह मंत्री अमित शाह, संघर्ष के दौरान राज्य में रहे और इसे सुलझाने के लिए कई पक्षों के साथ 15 से अधिक बैठकें की.
अमित शाह ने अपनी यात्रा के दौरान कुकी सिविल सोसाइटी समूहों से शांति की अपील की थी और उनसे हथियार सरेंडर करने के लिए कहा था.
हालांकि, अमित शाह तो राज्य के दौरे पर पहुंचे लेकिन हिंसा भड़कने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार भी राज्य का दौरा नहीं किया.
सरकारी रिकॉर्ड से पता चलता है कि मणिपुर में शुरुआती उथल-पुथल के सप्ताह में प्रधानमंत्री मोदी ने दो घरेलू यात्राएं की थीं. पहली यात्रा कर्नाटक की और दूसरी राजस्थान की.
मई, 2023 से अप्रैल, 2024 के बीच उन्होंने अलग-अलग राज्यों की लगभग 160 यात्राएं कीं लेकिन एक बार भी मणिपुर नहीं गए.
मणिपुर में जारी हिंसा का मूल कारण
मणिपुर में मौजूदा अशांति लंबे समय से चले आ रहे जातीय तनाव में निहित है जो कई वर्षों से जारी है. इन तनावों की उत्पत्ति का पता कई दशकों पीछे जा कर लगाया जा सकता है.
1949 के बाद जब मणिपुर राज्य का भारतीय राज्य में विलय हुआ, जिसे मणिपुरी राष्ट्रवादियों ने प्रभावी रूप से एक जबरन विलय बताया तो भारत सरकार को मणिपुर की जटिल जातीय संरचना विरासत में मिली.
1949 में मणिपुर का भारत में विलय अपने साथ एक जटिल जातीय परिदृश्य लेकर आया जिससे भारत सरकार को निपटना पड़ा.
नागा और कुकी, इस क्षेत्र के दो प्रमुख जातीय समूह के बीच विशेष रूप से 1990 के दशक की शुरुआत से लेकर मध्य तक इंजीनियर्ड हिंसा के दौर के कारण शोर-शराबे वाला रिश्ता रहा है. शांति बनाए रखने के प्रयासों के बावजूद इन दोनों समूहों के बीच अंतर्निहित तनाव कभी भी पूरी तरह से हल नहीं हुआ है, जिससे अविश्वास और संदेह का माहौल बना हुआ है.
कई वर्षों से मणिपुर में चार मुख्य जातीय समूहों – नागा, ज़ो, कुकी और मैतेई ने अपने समुदाय के बाहर के लोगों के प्रति अविश्वास का भाव रखा है. यह संदेह व्यक्तिगत संबंधों से परे और राज्य के भीतर राजनीति और संसाधन आवंटन के दायरे तक फैला हुआ है.
गैर-मैतेई समूह लंबे समय से मणिपुर के राजनीतिक परिदृश्य में मैतेई की प्रमुख भूमिका को लेकर सतर्क रहे हैं. उन्होंने बुनियादी ढांचे के विकास और लाभों के वितरण में असमानता के बारे में भी चिंता व्यक्त की है. जिसने मुख्य रूप से गैर-मैतेई आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्रों की कीमत पर इम्फाल घाटी, जो मैतेई बहुमत का घर है का पक्ष लिया है.
मणिपुर का इतिहास जातीय तनाव और विस्थापन के उदाहरणों से चिह्नित है। अतीत में, आदिवासी और गैर-आदिवासी समूहों के बीच भड़कने वाली हिंसा से बचने के लिए नागा जैसे पहाड़ी समुदाय बड़ी संख्या में इंफाल घाटी से भाग गए हैं.
मणिपुर में हालिया अशांति के लिए मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की लंबे समय से चली आ रही मांग को जिम्मेदार ठहराया गया है. संवैधानिक तरीकों का उपयोग करके राज्य के भीतर स्वायत्तता की मांग करने वाले कुकी और नागाओं के साथ-साथ यह मांग कोई नई घटना नहीं है.
हालांकि, एसटी दर्जे के लिए मैतेई के प्रयास ने वर्तमान संदर्भ में नए सिरे से गति पकड़ ली है.
मणिपुर के आदिवासी समुदायों ने लंबे समय से मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने को अपने अधिकारों, क्षेत्रों और भूमि के लिए खतरे के रूप में माना है. यह काफी समय से एक विवादास्पद मुद्दा रहा है.
वर्तमान संघर्ष में क्षेत्रीय मुद्दा
इसके मूल में वर्तमान संघर्ष एक क्षेत्रीय विवाद के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसमें भूमि एक केंद्रीय कारण है. मैतेई मुख्य रूप से इंफाल घाटी और उसके आसपास के क्षेत्रों को घेरने वाले भूभाग तक ही सीमित हैं.
राज्य की आबादी का लगभग 80 फीसदी होने के बावजूद वे केवल 20 फीसदी भूमि पर कब्जा करते हैं, शेष क्षेत्र पहाड़ियों में स्थित है.
मैतेई समुदाय की लंबे समय से यह भावना रही है कि मणिपुर की जनजातीय आबादी को अपनी पैतृक भूमि और पारंपरिक रीति-रिवाजों पर विशेष अधिकार प्राप्त है, जैसा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371सी में निहित है.
यह संवैधानिक प्रावधान गैर-आदिवासी जातीयता से संबंधित लोगों को जनजातीय क्षेत्रों के रूप में निर्दिष्ट क्षेत्रों में भूमि खरीदने से प्रभावी रूप से प्रतिबंधित करता है.
मैतेई समुदाय इंफाल घाटी के किसी भी क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण करने की क्षमता की मांग कर रहा है जबकि आदिवासियों को पहले से ही ऐसा करने की अनुमति है.
ये सब कब शुरू हुआ?
मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग काफी समय से की जा रही है यानि कई वर्षों से चली आ रही है. हालांकि, 2017 के बाद से इस आंदोलन ने महत्वपूर्ण गति ली और समुदाय इस मांग को लेकर तेजी से मुखर और सक्रिय है.
अपनी वर्तमान परिस्थितियों से मुक्त होने की मैतेई की इच्छा को गैर-मैतेई आबादी उनके क्षेत्रीय अधिकारों और सपनों का अतिक्रमण करने के प्रयास के रूप में देखती है. यह धारणा दो समूहों के बीच जटिल गतिशीलता के कारण उत्पन्न होती है.
भले ही मानचित्र पर अल्पसंख्यक गैर-मैतेई आदिवासी समुदायों को अधिक विस्तृत क्षेत्र आवंटित किया गया है लेकिन वास्तविकता यह है कि इस भूमि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा न तो रहने के लिए उपयुक्त है और न ही खेती के लिए. स्पष्ट भूमि वितरण और इसकी वास्तविक उपयोगिता के बीच यह विसंगति स्थिति को और जटिल बनाती है.
मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग को गैर-मैतेई लोगों ने अपने भविष्य के लिए संभावित खतरे और अपने अधिकारों पर थोपे जाने के रूप में माना है. दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क और दृष्टिकोण हैं जो स्वीकार करने और समझने लायक हैं.
मणिपुर में अब कैसे हैं हालात?
मणिपुर में चल रहे सांप्रदायिक संघर्ष ने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को काफी हद तक बाधित कर दिया है, जिससे समुदायों के बीच तनाव, अविश्वास और विभाजन बढ़ गया है.
लोकसभा चुनाव के बावजूद मणिपुर में मतदाताओं में उत्साह की कमी देखी गई है. वर्तमान चुनावों पर जातीय हिंसा का प्रभाव छाया हुआ है. नागरिक समाज समूह और प्रभावित व्यक्ति उथल-पुथल के बीच चुनावों की प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहे हैं.
पहले चरण के मतदान में मणिपुर में अपेक्षाकृत कम 68 प्रतिशत मतदान हुआ. इसके साथ ही गोलीबारी, धमकी, ईवीएम को नष्ट करने और बूथ कैप्चरिंग के आरोपों की घटनाएं भी हुईं.
इसके अलावा भारत के चुनाव आयोग ने मतदाताओं को डराने-धमकाने और ईवीएम को नष्ट करने की रिपोर्ट के बाद आउटर मणिपुर निर्वाचन क्षेत्र के छह बूथों पर पुनर्मतदान का आदेश दिया है, जहां शुक्रवार को दूसरे चरण में मतदान हुआ था.